त्वमिन्द्राभि भूरसि त्वं सूर्ये मरोचयः ।
विश्वकर्मा विश्वेदेवो महां असि ॥२॥
भाषार्थ :- (इन्द्र) परमेश्वर (त्वम्) तू (अभिभूः) सबको दबा सकने वाला (असि) है। (त्वम्) तू ही (सूर्येम्) सूर्य को (अरोचयः) प्रकाश देता है। तू (विश्वकर्मा) जगत्ताष्ठा (विश्वदेवः) जगत का देव (महान्) सर्वव्यापी (असि) है ॥२॥
भावार्थ :- हे विश्वकर्मा, तू सर्वशक्तिमान है। तू ही सूर्य को प्रकाश देता है, तू जगताष्ठा जगेश्वर, सर्वव्यापी है।
सामवेद उत्तराचिवो सप्रमंडल अध्याय १६ मंत्र ॥ २ ॥
ऋषि अंगिरस देवता इंद्र विश्वकर्मन हविषा वावृधानः स्वयं यजस्व तन्वाऽ३स्वाहिते।
मुह्यन्त्वन्ये अभितो जनास इहास्माकं मैघवा सूरिरेस्तु ॥१॥
ऋषि विश्वकर्मा भौवन देवता विश्वकर्मा
भाषार्थ :- (विश्वकर्मन) हे विश्वत्रष्टः परमेश्वर (वावृधान) जगत की वृद्धि करते हुए आप (स्वाहिते) अपने आप आधान किये हुए (तन्वाम) विस्तृत अग्निकुण्ड में (हविषा) हव्य से (स्वयम्) अपने आप (यजस्व) यजन करते हैं। अन्य साधारण, अन्य अज्ञानी (जनासः) मनुष्य (इह) इस विषय में (अभितः) सर्वत: (मुह्यन्तु) भूलते हैं तो भूलो, परन्तु अस्माकम इम में (मघवा) यज्ञ वाला पुरुष (सूरिः) पण्डित जानने वाला और आपके यज्ञ को देखकर स्वयं यज्ञ करने वाला (अस्तु) होवे ॥१॥
भावार्थ :- जगतों को धन धान्य आरोग्यादि से बढ़ाते हुए विश्वकर्मा ने स्वयं सूर्यादि लोक रूप बड़े विस्तृत यज्ञकुण्डों में अग्न्याधान करके उनमें औषधि वनस्पति आदि का होम कर रखा है, जिसको प्राय: अज्ञानी लोग नहीं जानते तो मत जानो, परन्तु इसमें से याज्ञिक लोग इस रहस्य को जानने वाले और आपके यज्ञ को देखकर स्वयं यज्ञानुष्ठान करने वाले होवे ॥१॥
ऋषि - विश्वकर्मा देवता
ऋग्वेद में विश्वकर्मा
यजुर्वेद में विश्वकर्मा
अथर्ववेद में विश्वकर्मा
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