महात्मा शोभाराम जी
यह सत्य है कि जब कभी किसी समाज अथवा देश का पतन होने लगता है तो परमात्मा की कृपा से उस समाज अथवा देश में कोई महापुरुष पैदा होता है,
जो अपना सारा वर्चस्व समाज और देश की उन्नति में और उसके उद्धार में लगा देता है।
अपने समय के सर्वोत्तम समाज सुधारक परमहंस 108 महात्मा शोभाराम जी महाराज अत्यन्त उच्चकोटि के त्यागी योगसिद्ध संन्यासी थे।
आपका जन्म मारवाड़ राज्य के ठिकाने देवली के निकट मांडावाड़ ग्राम में भादवा शुल्क 14 सं. 1910 (सन् 1853) को जांगिड ब्राह्मण बलदवा शासनोत्पन्न भक्त डाडराम व माता सायरबाई के यहां हुआ।
पांच पुत्र उत्पन्न होने से आपने सन्यास लेकर योगाभ्यास द्वारा अच्छी प्रसिद्धि पाई। हृदय में समाजोन्नति की तीव्र तड़प थी।
आप मारवाड़ एवं मेवाड़ क्षेत्र में व्यापक भ्रमण करते हुए बाल्यकाल से समाज सुधार के लिए उपदेश करने लगे। आपने संस्कारों की महत्ता प्रतिपादित कराते हुये सहस्त्रों व्यक्तियों को यज्ञोपवित धारण कराया।
इन्होंने समाज सुधार के लिये जो काम किये उन्हीं के कारण चिरस्मरणीय बन गये।
जब-जब किसी देश या जाति पर अत्याचार होते हैं या कोई देश व जाति अधोगति को प्राप्त होने लगती है तो परमात्मा उस देश या जाति में ऐसी महान आत्माओं को (शरीर देकर) उत्पन्न करता है
कि उनकी दशा सुधर जाती है। इसी अटल नियम के अनुसार मारवाड़, मेवाड़ में सुधार प्रचार हेतु ईश्वर ने महात्मा शोभाराम जी के मन में जाति-भक्ति का प्रेम उत्पन्न किया जिसके वश होकर
वे घर से चल पड़े और लोगों को जो धर्म विरुद्ध हो रहे थे उन्हें जगाया, उन्हें संस्कारों द्वारा धर्म पर कायम किया और जो कुरीतियां समाज में थीं उनको बंद कराकर मर्यादा बांधी।
शोभाराम जी एक योगी पुरूष थे और चारित्रिक गुणों से सम्पन्न थे। उन्होंने समाज सुधार के लिए जो यत्न और कार्य किये उन्हें भुलाया नहीं जा सकता। इनकी भक्ति के प्रभाव से सरवाड़ के
कई रईसों पर बड़ा भारी असर पड़ा और उनकी आज्ञा से उन लोगों ने सिवाय शेर को छोड़कर दूसरे जानवरों का शिकार करना छोड़ दिया।
मारवाड़ में कई सनातनी पंडितों ने जांगिडा जाति की उन्नति को देखा उनके कामों में रोड़ा अटकाने लगे और उनके ब्राह्मणत्व का विरोध करने लगे। तब योगी संत शोभारामजी ने उनके साथ
शास्त्रार्थ करके उनकी शंकाओं का समाधान किया। जहां-जहां भी वे गये यज्ञोपवीत संस्कार कराये। इस कान में पं. छगनलालजी कश्यप (वर्तमान में स्वामी केवलानंदजी) ने
इनको सहयोग दिया और लोगों को उपदेश दिये।
पूज्य महात्मा शोभारामजी ने सबसे बड़ा महत्वपूर्ण काम धर्म मर्यादा पत्र बनाकर किया। उस ओर आज समाज की संस्थाओं के कार्यकत्ताओं को ध्यान देना चाहिये और ऐसे ही समाज के लिये
वैदिक-आचार-संहिता का निर्माण करें ताकि समाज बंधुओं के आचार-व्यवहार में उत्कृष्टता लाई जा सके। संत शोभाराम जी ने अपने "धर्म मर्यादा पत्र" में जो नियम रखे उनमें से कुछ निन्न प्रकार से है :
1. कन्या के घर पर बरौठी ना हो। यह रस्म बिल्कुल बंद हो।
2. दांत का चूड़ा बिल्कुल मना हो। इसे मौकूफ किया जायें।
3. दंड का रूपया पंचों द्वारा धर्म कार्य में लगाया जायें।
4. हर एक जांगिड़ा का धर्म है कि वह 8-10 वर्ष के बालक का यज्ञोपवीत संस्कार करा दे और बिना संस्कार के विवाह कदापि न करे और जिन लोगों का संस्कार न हुआ हो ये सब संस्कार करावें।
"धर्म मर्यादा पत्र" में दंड-विधान भी बताया गया है। वह इस तरह कि जो भाई धर्म-मर्यादाओं का उल्लंघन करेगा, चोरी छिपे कन्या के विवाह में रुपया लेगा,
बिना यज्ञोपवीत संस्कार कराये विवाह करेगा, दांत का चूड़ा पहरायेगा, विवाह में बंद की गई रस्नों को अदा करेगा व गऊ मारने की हत्या का पापी समझा जायेगा।
उस पर पंचों की तरफ से रू. 151/- जुर्माना और 12 वर्ष जाति के बाहर रखा जावेगा।
महात्मा शोभाराम जी द्वारा बनाया गया "धर्म मर्यादा पत्र" जांगिडा समाचार के पुराने अंकों में छपा है। इस "धर्म मर्यादा पत्र" पर अजमेर, नसीराबाद, सरवाड़, केकड़ी
आदि के समस्त पंचो ने हस्ताक्षर कर स्वीकार किया और उस पर चलना मंजूर किया।
आपने योगबल से द्वारकापुरी में द्वारकाधीश की पोशाक को आग लगते जानकर उसे दूर से ही बुझा दिया। ठाकुर राव विजयसिंह ने स्वयं द्वारकापुरी दूत भेजकर घटना की
पुष्टि कर के देखा और इन्हें गुरू बनाकर 61 बीघा भूमि देकर बेगार भी सदैव के लिये बन्द करवा दी। यही नहीं राव का असाध्य सिर दर्द भी महात्मा जी के हाथ स्पर्श करने
मात्र से दूर हो गया। आप चमत्कारिक महात्मा थे। अनेक चमत्कारों की कहानी मारवाड़ - मेवाड़ के घर-घर में सुनी जाती रही है।