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शैव आचार्य

शंकराचार्य के पश्चात शिवपंथ के 73 प्रमुख आचार्य धर्मोपदेशक हुए, जिनमें 59 आचार्य विश्वब्राह्मण थे तथा 14 आचार्य अन्य ब्राह्मण हुए। इन विश्वब्राह्मण शैव आचार्यों ने अपने रसीले भक्ति भाव पूर्ण स्त्रोतों से लोकजीवन को आकर्षित कर शैवधर्म का प्रचार किया।
ई. सन 846 से 1135 तक के चोल राजा भी शिवभक्त बन गये तथा उसके फलस्वरूप शिल्प शास्त्रों तथा कला का विशेष उत्कर्ष हुआ। इन चोल राजाओं ने अनेक सुन्दर देवालय बनवाये। शिल्प कला को प्रोत्साहित किया। विश्वब्राह्मणों को शिल्पशास्त्र की शिक्षा देने के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। उसका आचार्य भी एक विश्वब्राह्मण को बनाया।
विश्वब्राह्मणों ने अपनी अनेक बस्तियाँ बनायी। कुम्भकोकण नगर के पश्चिम में 3 मील पर कावेरी तट पर स्वामीमालै नामक एक बस्ती में सवा सौ वर्ष पूर्व तक विश्वब्राह्मणों का एक संघ था। ये विश्वब्राह्मण सब प्रकार की वस्तुओं की हूबहू प्रतिमा बनाने में निष्णात थे।