तपोनिष्ठ पंडित श्री राम शर्मा आचार्य
इनका जन्म आश्विन कृष्ण त्रयोदशी संवत् 20 सितम्बर 1911 को ग्राम आँवलखेड़ा जनपद आगरा के जांगिड ब्राह्मण परिवार में हुआ। बाल्यावस्था से ही अध्यात्म में गहरी रुचि थी।
महामना मदनमोहन मालवीय जी द्वारा गायत्री मंत्र की दीक्षा यज्ञोपवीत अखण्ड दीपक प्रज्ज्वलित कर चौबीस वर्ष तक 24-24 लक्ष्य के चौबीस गायत्री महापुरचरणों की श्रृंखला आरम्भ की। साधनाकाल में गाय को खिलाये और गोबर से छानकर निकाले गये संस्कारित जौ की रोट व छाछ पर रहे। कुण्डलिनी तथा पंचाग्नि विद्या की सिद्ध साधना इस बीच पूरी हुई। किशोरावस्था से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे।
वन्दनीया माताजी भगवती देवी का 1943 में उनके जीवन में प्रवेश हुआ, जिनका अपने पति को उग्र तपश्चर्या में पूर्ण योगदान रहा। नारी जागरण कार्यक्रम का वंदनीया माताजी द्वारा सफल संचालन किया गया। सन् 1958 में एक विशाल सहस्त्र कुण्डीय गायत्री यज्ञ मथुरा में सम्पन्न हुआ। जिसमें बीस लाख से अधिक गायत्री महाविद्या का वृहद् विश्वकोष स्तर का तीन खंडों में गायत्री महाविज्ञान प्रकाशित हुआ। युग निर्माण योजना, युग शक्ति गायत्री पत्रिका का लेखन सम्पादन एवं प्रकाशन किया। हिमालय में उग्र तपश्चर्या, शांतिकुज ब्रह्मवर्चस गायत्री साधकों ने भाग लिया। चौबीस सौ शक्ति पीठों की स्थापना की जो सभी जाग्रत-जीवन्त तीर्थ रूप में सक्रिय है।
क्रान्तिधर्मी साहित्य का जीवन के उत्तरार्द्ध में लेखन तथा इक्कीसवीं सदी उज्जवल भविष्य की घोषणा। भविष्य संबंधी सारे कथन अब तक सत्य प्रमाणित हुए हैं। अनगिनत सज्जनों को जीवनदान दिया। आने वाले दस वर्षों तक परिजनों के लिए मार्गदर्शन हेतु अखण्ड ज्योति पत्रिका का सम्पादन। स्वेच्छा से समाधि लेते हुए 2 जून 1990 गायत्री के दिन माँ गायत्री का नाम उच्चारित करते हुए महाप्रयाण कर गये।