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स्वामी पृथ्वीधराचार्य

स्वामी विश्वरूपाचार्य के पश्चात् उसी गद्दी पर दूसरे आचार्य स्वामी पृथ्वीधराचार्य हुए। ये भी विश्वब्राह्मण थे। इन्होंने सूक्त भाष्यादि ग्रन्थों की रचना की।
शंकर पद्धति प्रकरण भी इसका समर्थन करता है। इसका विशेष विवरण कन्नड़ भाषा में प्रकाशित चितुर जेल की अदालत का फैसला नामक पुस्तक में मिलता है।