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श्री 1008 श्री पदमाराम जी महाराज

एक छोटे से गांव आकोरा-पादर, जिला-जालोर, राजस्थान में मोती सुथार जी के परिवार में माता काकुदेवी की कोख से एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसका नाम पदमाराम सुथार रखा गया। मगर बचपन में ही पदमाराम सुथार के माता पिता का साया उठ गया।
एक दिन अचानक काम करते वक्त लकड़ी का छिलका उछला और उनकी एक आंख में गिर गया। जिससे उनकी आंख चली गई, उस आंख का इलाज करते-करते दूसरी आंख में भी अन्धापन आ गया। दोनों आंखों से नेत्रहीन होने के बाद छोटी सी उम्र में ही पदमाराम जी को वैराग्य हो गया और वे अपने घर में अकेले भगवान की भक्ति व भजन करते रहते थे।
उनको घर में अकेलापन महसूस होता था तब उन्होंने अपने ही खेत में एक छोटी सी कुटिया बना ली और भगवान का भजन करने लगे। धीरे-धीरे छोटी-सी उम्र में पदमाराम सुथार को समूचे समाज में श्री पदमाराम जी महाराज की उपाधि मिल गई। कई सालों बाद सुथार समाज के 48 गांवों का मंदिर आकोरा पादर के पास मंडला गाँव में भगवान श्री गणेश जी के मंदिर से श्री पदमाराम जी महाराज की गद्दी स्थापना करा दी। 25-30 वर्षों तक गणेश जी के मंदिर में तपस्या करते रहे, वहाँ पर मंदिर निर्माण करा दिया।
एक खेत में सारणेश्वर जी मंदिर में अपना आसन लगा दिया। 3-4 वर्ष तक वहां तपस्या की, स्वजातिय बंधुओं ने वहाँ महाराज की बहुत सेवा की हजारों भक्तों का वहां पर आना जाना चालु हो गया, महाराज जी के दर्शन के लिए। मगर विधाता की कलम से महाराज जी का ठहरना उतना ही लिखा था इसलिए उनके भक्तों द्वारा महाराज को तख्तगढ़ ले जाया गया और वहां महाराज जी ने श्री गणेश आश्रम की स्थापना की। तपस्या व भगवान के भजनों से महाराज जी की ख्याति इतनी बढ़ गई कि पदमाराम जी महाराज की विश्वकर्मा समाज के तेरह पट्टी में महाराज जी की पहचान होने लगी। तेरह पट्टी से विश्वकर्मा समाज व अन्य भक्तों का सैलाब हर दिन महाराज जी के दर्शन के लिए आने लगे। धीरे-धीरे गणेश जी के आश्रम में सारणेश्वर जी महादेव के मंदिर का निर्माण कराया गया। भगवान प्राण-प्रतिष्ठा के पहले महाराज जी ने यह गणेश आश्रम 24 गांव परगना हरजी के विश्वकर्मा बंधुओं को सौंप दिया गया।
मंदिर में श्री सारणेश्वर जी महाराज की प्राण-प्रतिष्ठा 4-4-1997 को रखी गई जिसमें तीन दिवसीय महोत्सव में तेरह दिवसीय महोत्सव में तेरह पट्टी के हजारों पुरुषों व महिलाओं ने भाग लिया, इस तरह गणेश आश्रम में महाराज की इच्छा के मुताबिक शान्ति यज्ञ किया गया। यह महोत्सव भी तीन दिन तक चला। इस महोत्सव में हजारों विश्वकर्मा बंधुओं व महिलाओं ने भाग लिया व सैंकड़ों साधु-संतों ने भी भाग लिया। महाराज की उम्र के साथ-साथ धीरे-धीरे तबीयत बिगड़ती गई तारीख 24-7-2003 को वे ज्यादा बिमार पड़ गये, समाज बंधुओं ने महाराज जी को अस्पताल में भर्ती करवाया, समाज के बंधुओं द्वारा महाराज जी की सेवा की गई मगर विधाता की लिखी के आगे किसी का कुछ नहीं चलता, महाराज जी को वापस गणेश आश्रम लाया गया।
धीरे-धीरे महाराज जी की तबीयत ज्यादा खराब होती गई और उन्होंने तारीख 6-8-2004 को शुक्रवार को सुबह 5 बजकर 33 मिनट पर अंतिम सांस ली और वे ब्रह्मलीन हो गये, उनके ब्रह्मलीन होने की खबर हवा की तरह पूरे विश्वकर्मा समाज में फैल गयी, सुबह से समाज बंधुओं ने गाड़ियों द्वारा महाराज जी के ब्रह्मलीन होने की खबर 12 बजे तक दी गई 2 बजे से हजारों पुरुषों व महिलाओं का आना चालू हो गया, तख्तगढ़ के नजदीक सभी साधु संतों को बुलाया गया। साधु संतों द्वारा शुभ मुहूर्त पर समाधि स्थल की घोषणा की व समाधि खुदाई का कार्य चालू कर दिया गया। दूसरी ओर श्री 1008 श्री पदमाराम जी की शोभायात्रा पूरे ग्राम में हजारों पुरुषों व महिलाओं द्वारा निकाली गई, शाम को साधु संतों की देखरेख में महाराज को समाधि दिलाई गई।