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स्वामी खुशियान्द जी महाराज

ब्रह्मर्षि योगेश्वर स्वामी गीतानन्द सरस्वती के प्रमुख शिष्य थे। अत्यन्त सरल स्वभाव एवं निःस्पृह संन्यासी थे। आपने घोर तपस्या द्वारा वचनसिद्धता प्राप्त कर ली थी।
देखने में बहुत सीधे-सीधे परन्तु वस्तुतः बहुत ऊंचे दर्जे के महात्मा थे। स्वामी गीतानन्द जी के साथ-साथ आपने भी अनेक महोत्सवों में भाग लेकर उनका हाथ बँटाया। स्वामी जी के ब्रह्मलीन होने के समय आप लुधियाना में थे। संस्कार के पश्चात् आगामी व्यवस्था के लिए सभी भक्तों ने सर्व श्री आनन्दस्वरूप भारद्वाज तथा लक्ष्मीनारायण शर्मा रोहतक, सोहनलाल शर्मा, ब्रह्मदत्त सरपंच हरियाहेडा तथा स्वामी रामेश्वरानन्द को सर्वसम्मति से पंच मनोनीत किया। पंचों ने सबकी सहमति से गुड़गावां आश्रम में स्वामी खुशियानन्द जी का ब्रह्मर्षि योगेश्वर स्वामी गीतानन्द सरस्वती पीठ बाधौल के पीठाधीश्वर के पद पर अभिषेक किया।
स्वामी जी ने पीठ व आश्रम के कार्य का समुचित रीति से सम्पादन किया। 1973 की शरद पूर्णिमा को आप भी ब्रह्मलीन हो गये। आप बहुत दूरदर्शी थे। आपने 1973 को गुरू पूर्णिमा महोत्सव पर ही अपना उत्तराधिकारी स्वामी चेतनानन्द सरस्वती को नियुक्त कर दिया था तथा वहां उपस्थित भक्तों के सम्मुख उसकी घोषणा भी कर दी थी। उस समय भक्तों को यह सब कुछ अनावश्यक सा लगा था, परन्तु 3 मास पश्चात् ही उनके ब्रह्मलीन होने पर उस घोषणा की सार्थकता का बोध हुआ।