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संत परमपूज्य गोविन्दराम जी महाराज

आपका जन्म 12 अप्रेल 1930 शनिवार हनुमान जयंति के दिन बाड़मेर जिले की सिवाणा तहसील के ग्राम गुडानाल के निवासी श्री पूनमारामजी सुथार के घर गंवरीबाई की कोखा से चवलेरा परिवार में हुआ। आपका जन्म नाम माधाराम था। गुरू दीक्षा व नामकरण आपके गुरू श्री हरिराम जी महाराज ने विक्रम संवत् 2002 के चतुर्मास से पूर्व शुक्ल पक्ष की पंचमी को भीमगोडा में हनुमान प्रतिमा के समक्ष मुण्डित कर आपको दीक्षा प्रदान की। गुरू आश्रम सिवाणा गादीपति श्री मंछारामजी महाराज की सेवा मे जसोल प्रवास ले जाने पर उन्होनें आपकों कमन्डल देकर कहा-समदडी बगीची तुम्हारी है। वहां सेवा-पूजा करना रामायण एवं मागवत पाठ करना व भजन-जागरण से भक्तजनों को जाग्रत करना। तभी से आप समदडी बगेची में विराजमान होकर अपने गुरु के आदर्शों पर चलते हुए धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे थे।
आपने विश्व हिन्द परिषद के बालोतरा प्रखण्ड के संरक्षक के रूप में रहकर गंगा जल रथ यात्रा में अग्रणी भूमिका निभाई। राम जन्म भूमि आंदोलन मे नेतृत्व प्रदान करते हुए इस क्षेत्र के धर्म परायण जनता को सक्रिय रूप से आंदोलन में सहभागी बनाया। राम शिला पूजन कार्यक्रम में गांव गांव जाकर धर्म सभाओं का आयोजन किया। राम मन्दिर निर्माण के लिए कार सेवक जत्थे आपके आशीर्वाद एवं नेतृत्व में रवाना हुए। श्री राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष श्री परमहंस श्री राम चन्द्र दास जी महाराज का कार्यक्रम प्रखण्ड में आपने आयोजित करवाया। वि. स. 2013 में आप श्री श्री 1008 श्री मंछाराम जी महाराज और श्री श्री 1008 श्री हरि राम जी महाराज के सानिध्य में 101 भक्त जनों के साथ उज्जैन के महाकुम्भ भी पहुंचे।
श्री श्री 1008 श्री मंछाराम जी महाराज तथा श्री श्री 1008 श्री हरि राम जी महाराज ने गोविन्द रामजी महाराज को आशीर्वाद प्रदान कर लक्ष्मण झूला ऋषिकेश से उत्तराखण्ड के चारों धामों की लगभग 300 कोस की पैदल तीर्थ यात्रा के लिए विदा किया। आपके साथ 15 साधू भी पैदल तीर्थ यात्रा पर चले।
श्री शालिगराम जी महाराज ने वि.सं. 1961 में समदडी मे नदी किनारे बगीची व शिव मंदिर बनाकर शिवलिंग की स्थापना की थी और गुरू आश्रम शिवाणा गुरू गादीपति श्री मंछाराम जी महाराज के आदेश से श्री गोविन्द राम जी महाराज श्री शालिगराम जी की बगीची की देखभाल के लिए समदडी पधारे तब बगीची के चारों ओर कांटों की बाड़ थी। श्री शालिगराम जी महाराज द्वारा बने शिव मंदिर की पूजा पहले श्री हरिराम जी महाराज करते थे। उसके पश्चात श्री गोविन्दराम जी महाराज करने लगे। जब गोविन्दरामजी महाराज के मन में बगीची के जीर्णोद्धार का विचार आया। परन्तु धनाभाव से हिम्मत नहीं जुटा पाये तब आपने गुरु महाराज का स्मरण किया, रात्रि ने श्री मंछाराम जी महाराज ने दर्शन देकर कहा- तू! चिन्ता क्यों करता है? मेरा शरीर तो शिवाणा में है, परन्तु आत्मा तुम्हारे साथ है। कार्य प्रारम्भ कर देना, किसी बात की कमी नहीं रहेगी। तुम्हारे बायीं ओर खड्डा खोदना, पत्थर खूब निकलेगा। परन्तु केवल पत्थर से तो निर्माण कार्य संभव नही था, अतः पुनः गुरु महाराज को स्मरण किया। गुरू महाराज ने दर्शन देकर अंगोछा झटका, तो पैसों की बरसात होने लगी। इस स्वप्न के बाद से आज दिन तक बगीची में कभी भी धन की कमी नहीं रही। वि. सं. 2025 में कोट के मुख्य द्वार का उद्घाटन किया गया। मन्दिर का जीर्णोद्धार करने के लिए शिवजी के मन्दिर के पास ही श्री राम तथा हनुमान जी का मन्दिर तथा गुम्बद बनाये गये। बजरंग वाटिका एवं राम दरबार का निर्माण सहित रावली ढाणी में मन्दिर एवं धर्मशाला के निर्माण कार्य करवाये। आपके मन्दिर प्रतिष्ठाओं सहित जो भी बगीची से आय प्राप्त होती हो आप इस निर्माण कार्य में लगा देते थे। गोविन्दरामजी महाराज के प्रमुख कृपा पात्र शिष्यों में श्री नृसिंह दास जी महाराज, श्री अयोध्यादास जी एवं श्री कौशल दास जी है जो महाराज की सेवा में लगे हुए थे।
समाज में योगदान गोविन्द राम जी महाराज ने सर्वप्रथम समदडी मे विश्वकर्मा जांगिड समाज को संगठित किया। यहां पर भगवान श्री विश्वकर्मा जी का भव्य मन्दिर एवं समाज का एक विशाल भवन का निर्माण करवाया व अन्य कई धर्मशालाएं, छात्रावास व प्याऊ आदि बनवायें। जसोल का प्राचीन विश्वकर्मा मन्दिर जो बाड़मेर जिले की पांचों पट्टियों का ऐतिहासिक स्थान रहा है, उसकी चिन्ता भी आपको थी अतः आप ने यहां के युवा कार्यकर्ताओ को एकत्रित कर आव्हान किया कि इस शुभ कार्य के लिए तैयार हो जाओं, धन की चिन्ता नहीं करना। आपके साथ रहकर अदम्य साहस से कार्य करवाया जो कि आज इस मन्दिर की संस्था के प्रगति के सौपान पर है। आप गांधीधाम, पाली सहित अन्य स्थानों पर समाज को संगठित करने में विशेष प्रेरणा स्त्रोत रहे। आपने इन कार्यों के बूतें मारवाड़ के क्षेत्र में अत्यंत ख्याति अर्जित की।
परमपूज्य वैष्णव शिरोमणी वैरागी सन्त श्री श्री 1008 श्री गोविन्दरामजी महाराज इस युग के महान सन्त थे। आप सदैव वैष्णव समाज को धर्मपरायण बनाते हुए समृद्ध सामाजिक व्यवस्था के लिए कर्मयोगी की तरह अनवरत संलग्न रहे। जिनसे समस्त वैष्णव समाज के जीवन में एक ऊर्जा का संचार हुआ। इसी कारण 7 फरवरी, 07 को श्री वैष्णव सम्प्रदायाचार्य जगद्गुरू रामानन्दाचार्य जी महाराज द्वारा आपकों वैष्णव शिरोमणी की पदवी से विभूषित किया। साक्षात लक्ष्मी, रिद्धि-सिद्धि इनके हृदय एवं वाणी में निवास करती थी। आपने नगर-नगर, ग्राम-नाम मे सम्पूर्ण भारतवर्ष में सैकड़ों विभिन्न मन्दिरों की प्राण-प्रतिष्ठाएं सम्पन्न करवायी। आप द्वारा जहां जहां भी मंदिरों की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई, वहां-वहां भगवान श्री विश्वकर्मा जी की मूर्ति की प्रतिष्ठा अवश्य करवायी। आपके सानिध्य में ही पाली शहर में वर्ष 1995 श्री विश्वकर्मा मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा धूमधाम व उल्लास के साथ सम्पन्न हुई।
श्री गोविन्द महाराज ने भर्तहरि की उस उक्ति को चरितार्थ कर दिखाया कि जिसमें कहा गया है कि इस परिवर्तन शील संसार में हर कोई मनुष्य जीवन जीता है और मर जाता है, परन्तु वास्तव में जीना उसी का सार्थक है जिसने जाति, समाज व देश की उन्नति के लिए कुछ किया हो। ऐसे कर्मठ पुरुषार्थी ईश्वर भक्त महान संत को हमारा शत् शत् नमन।
श्री सालिगराम जी महाराज, बगीची, समदडी (बाड़मेर) राजस्थान के वैष्णव शिरोमणी संत श्री श्री 1008 श्री गोविन्दरामजी महाराज का शुक्रवार 16 मार्च, 07 को साकेतवास (स्वर्गलोक) हो जाने पर 1 अप्रेल, 07 को विशाल भण्डारा समदडी में सम्पन्न हुआ। इस भण्डारें में गृह राज्य मंत्री अमराराम चौधरी सहित वैष्णव समुदाय के सैकड़ों साधु-संतों सहित देश के कोने-कोने से आए असंख्य भक्तजनों ने भाग लिया।