Jangid Brahmin Samaj.Com


श्री ब्रह्मर्षि योगेश्वर गीतानन्द जी सरस्वती (बाघौल आश्रम)

आपका जन्म पाटौदी जिला महेन्द्र गढ़ (हरियाणा) के निकट विरहेडा गांव में चैत्र शुक्ला (रामनवमी) के शुम दिन पर सन् 1882 में श्री तोताराम जी जांगिड के परिवार में हुआ। आपकी माता श्रीमती जीवनी सद्गृहस्था थी।
गीतानन्द जी महाराज ने गुरु भवानन्द जी महाराज से दीक्षा लेकर अनेक वर्षों तक एकान्त तथा मयानक पर्वत गुफाओं में घोर तप और योगाभ्यास किया। बिल्कुल मौन एवं जन-शून्य स्थान में रहने के कारण किसी को भी आपकी उपस्थिति का ज्ञान नहीं था। सर्वप्रथम गीतानन्द जी महाराज ने नौरंगपुर में अपना -आश्रम बनाया और शनैः शनै अठारह स्थानों पर आपके आश्रम स्थापित हुए पर बाघौल आश्रम में अपनी पीठ स्थापित की। यह स्थान बाघौल गुडगांवा से सोहना जाने वाले मार्ग पर स्थित अलीपुर की प्याऊ से तीन मील अन्दर पहाड़ पर स्थित है।
कठिन तप साधना, योगाभ्यास और परिश्रम से आप ब्रह्मर्षि योगेश्वर गीतानन्द जी सरस्वती कहलाये। आपका प्रमाव क्षेत्र बहुत व्यापक था। जैसलमेर की महारानी और अनेक महाराजा आपके शिष्य बने। अनेकों राजनेता मन्त्री तथा धनपति आपके आदेश की प्रतीक्षा करते थे किन्तु आप निःस्पृही योगी थे। अपने तल बल से उनकी देदीप्यमान भृकुटी महिमा मण्डल से परिपूर्ण थी। श्री गीतानन्द जी महाराज ने 21 ग्रन्थों की रचना की जिनमें वेद प्रकाश मुक्ति प्रकाश, हितोपदेश आदि प्रमुख हैं।
29 जनवरी 1971 को गुडगांवा आश्रम में ब्रह्मलीन होने के पश्चात् उनके परम शिष्य स्वामी खुशियानन्द जी सरस्वती का पीठाधीश्वर के रूप में अभिषेक हुआ। 11 अक्टूबर 1973 को स्वामी खुशियानन्दजी भी ऋषिकेश के गंगा किनारे भजन करते हुए ब्रह्मलीन हो गये। तत्पश्चात् ब्रह्मऋषि गीतानन्द जी के परमशिष्य स्वामी चेतनानंद जी सरस्वती, व्याकरणाचार्य 27 अक्टूबर 1973 से पीठाधीश्वर हुए। ये सभी सन्त जांगिड समाज के हैं।
अजमेर के अंगिरानगर में भी ब्रह्मर्षि गीतानन्द जी सरस्वती का एक आश्रम बनाया गया है, जिसे मदनलाल जी भदरेचा के सद्प्रयत्नों से, एक पंजीकृत समिति के माध्यम से निर्मित करवाया गया। अजमेर में ब्रह्मर्षि योगेश्वर गीतानन्द जी सरस्वती महाराज का गीतानन्द आश्रम सभी सुविधाओं से युक्त हैं। भण्डारा आदि के लिये बर्तन दरियां व आवश्यक समी सामग्री उपलब्ध हैं। इस आश्रम की व्यवस्था का भार श्री महेश चन्द शर्मा मदरेवा के सबल कन्धों पर हैं।