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धीरज रामजी महाराज

कुछ महानुभाव ऐसे होते हैं जो जन कल्याणार्थ ही इस लोक में अवतरित होते हैं, जैसे कि स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द सरस्वती आदि। ऐसे महापुरुष हर काल में होते आये हैं। ऐतिहासिक काल में, जैसा कि चैतन्य महाप्रभु, स्वामी रामानुजाचार्य व स्वामी बल्लभाचार्य एवं शंकराचार्य जी आदि तो वर्तमान युग में इन देखते हैं जैसे कि महात्मा गांधी, प्रभुपाद गोस्वामी तथा स्वामी कल्याण देव जी महाराज आदि हैं। इन्हीं की कोटि में आते हैं हमारे चरित्र नायक श्री धीरज राम जी महाराज जिन्होंने जनता जनार्दन की भलाई के लिए अनेकानेक कार्य किये।
आपने जिला नागौरान्तर्गत ग्रान गगराना में वि.सं. 1964 भाद्रपद शुक्ला त्रयोदशी को विश्वकर्मा वंश में माता श्रीमती सुगनी बाई के गर्भ से जन्म लिया। आपके पिताश्री का नाम श्री लादूराम जी बरडवा है। अपनी ग्यारह वर्ष की अल्पायु में ही आपको आपके पूर्व जन्म के शुभ संस्कारों के फलस्वरूप सन्त समागम प्राप्त हो गया और आपने रामस्नेही सन्प्रदाय के स्वामी हरिमुख रामजी महाराजा से दीक्षा ली। तत्पश्चात दस वर्ष तक शाहपुरा के प्रधान पीठाधीश आचार्य श्री 1008 श्री निर्भय राम जी महाराज की सेवा में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आचार्य श्री की सेवा में रहते हुए उनके साथ आपने देशाटन भी किया। पुनः अपनी जन्म भूमि के निकट ग्राम कूपडावास में विराजते हुए भगवत् भजन में लीन रहे और इस अवधि में आपने चारों धामों की यात्रा भी की।
आपने भगवान के अनेक रूपों में से समस्त प्राणियों के हृदय में विराजमान अन्तयांमी रूप की सेवा का व्रत लिया और दीन दुःखियों के लिए अनेक जनकल्याणकारी कार्य किये। मरु प्रदेश में जहाँ जल का अभाव है, आपने अनेक स्थानों पर जलाशय एवं शीतल जल की प्याऊएँ बनवाई। नागौर में मेडता सिटी जाने वाले मार्ग पर मगरा में आपने जलाशय के साथ एक धर्मशाला व शिवालय तथा वहाँ एक सुरम्य बगीचा भी बनवाया। यह स्थान अब राम सागर के नाम से विख्यात है। ग्रान कूपडावास में एक पाठशाला तथा एक धर्मशाला भी आपने बनवाई। इसके अतिरिक्त सन्त श्री हरिदास जी महाराज व उनके शिष्य श्री बाजिन्द जी महाराज के समाधि स्थलों का जीर्णोद्वार व नये कमरों का निर्माण, समुचित विकास करवाया। ग्रान कलरू में भक्त श्री परसराम जी महाराज और ग्रान बडगांव में सन्त धेनुदास जी महाराज के मणि विग्रहों की प्रतिष्ठा करवाने का श्रेय भी आप ही को है। इन जनकल्याणकारी कार्यों में सम्पादन में तत्-तत् स्थानों की जनता ने आपको उन्मुक्त हृदय से सहयोग दिया।
उपरोक्त पारमार्थिक कार्यों के अतिरिक्त आपने एक और जो महान कार्य किया वह है जांगिड ब्राह्मण भक्तमाल की रचना। शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए राजस्थान में जहाँ यातायात के साधनों का भी अभाव है। वहां ग्राम-ग्राम में जाकर समाज में हुए भगवत् भक्तों के साखी दोहे और उनके जीवन चरित्रों का संग्रह कितना दुरह एवं श्रम साध्य कार्य होगा यह हम कल्पना कर सकते हैं। महानुभावों का कहना है कि भगवान को अपने भक्तों की यशोगाथा अति प्रिय है। ध्रुवदास जी महाराज ने भी भक्तमाल की रचना कर कहा है कि -
हरि को निज जस से अधिक भक्तन जस पर प्यार।
ताते यह माला रची करि ध्रुव कठ श्रृंगार।।

इस भक्त माल में भक्त श्री परसराम जी एवं श्री शोभाराम जी महाराज जैसे महान चमत्कारिक भक्तों के अतिरिक्त राजस्थान की इस वीर वसुन्धरा में हुए ऐसे ही दस अन्य भक्तों की गाथा है तथा जयपुर के निकट पवित्र तीर्थ गालवाश्रम (गलता) में अग्रदास जी महाराज के कृपा पात्र-महान त्यागी, तपस्वी श्री तुलसी राम जी शिल्पकार का भी वर्णन है।
श्री परसराम जी महाराज का तो भक्तवत्सल भगवान ने स्वयं हाथ में करौती और वसैला लेकर तथा श्री शोभाराम जी महाराज का अपनी विचित्र लीलाओं के द्वारा यश बढ़ाया है। इन भक्तों के चमत्कारों का तो इनमें से अनेकों ने भी प्रत्यक्ष अनुभव किया है। इस प्रकार महान् परोपकारी एवं समाज भूषण स्वामी श्री धीरज रामजी ने इस भक्तमाल की रचना कर न केवल जांगिड जाति का गौरव बढ़ाया है, अपितु भक्त वत्सल भगवान हरि का भी मुखोल्लास किया है जिसके लिए समाज सदा आप का ऋणी रहेगा।