आचार्य देवव्रत
आप उच्च कोटि के सर्वप्रिय संन्यासी है। संपूर्ण जीवन राष्ट्र के युवकों के चरित्र निर्माणार्थ अर्पित हुआ है। आपका जन्म गुड़गावां जिलान्तर्गत फतेहपुर (दडौली) गांव में 15 फरवरी 1943 को पं. उमराव सिंह जांगिड के यहां हुआ।
बचपन में ही विवाह हुआ, परन्तु विवाह बन्धन इनको अपने कर्तव्य से विमुख न कर सका। फलतः यह संन्यासी बन गये। गुरुकुल झज्जर में रहकर व्याकरण, साहित्य दर्शन एवं सिद्धान्त में अच्छी योग्यता प्राप्त की। तदनन्तर पूज्य स्वामी वेदानन्द जी वेदवागीश गुरूकुल चित्तौड़गढ़ के चरणों में बैठकर विद्यामृत का पान किया तथा वेदवागीश उपाधि से अलंकृत हुए।
1970 में प्रथम श्रेणी में व्याकरणाचार्य की परीक्षा पास की। शारीरिक शिक्षा का सर्वोत्तम प्रशिक्षण प्राप्त किया। नवयुवकों में आदर्श का मंत्र फूकने के लिए शिविर लगाकर उन्हें मन युद्धि एवं शरीर से सुडौल बनाने का प्रशिक्षण देने लगे। आप अब तक सैकड़ों शिवरों का आयोजन कर सहसों कोमलमति युवकों का सन्मार्ग दिखा चुके हैं। इस समय आपने गुलकणी (जीन्द) में आश्रम खोल रखा है।