स्वामी भवानन्द जी महाराज
आप हरियाणा प्रदेश के माने हुये महात्मा हुये है। आपका जन्म रोहतक जिले के महम कस्बे में पं. गंगादत्त के सुपुत्र पं. जसराम शासन काले गोत्र वात्स्य के यहां हुआ।
माता भगवती देवी ने आपका नाम भोलादत्त रखा था, परन्तु कुटुम्बी जन प्यार से भोला नाम से पुकारते थे। 30 वर्ष तक विधिवत् गृहस्थाश्रम का पालन कर सौभाग्य से श्री 103 स्वामी परमानन्द जी से समागम हुआ और उन्हीं के सत्संग से आपको उपरामता प्राप्त हुई। शिष्य बनकर आपने जीन्द शहर से 6 मील दूर दक्षिण में ईगरा ग्राम में भक्तों द्वारा निर्मित आश्रम में 14 वर्ष तक स्वाध्याय एवं योगाभ्यास किया।
सन् 1915 में आपने सदुपदेश प्रारम्भ किया और 1934 में 'सत्य सिद्धान्त' नाम श्रेष्ठ वेदानुकूल ग्रन्थ की रचना की। आपने ईगरा, बोबीपुर जीन्द के बीड में, बहबलपुर तथा दुर्जनपुर में पांच आश्रम बनाये। उनमें पूर्ण मर्यादा का पालना अनिवार्य है। कोई भी व्यक्ति किसी प्रकार का नशा नहीं कर सकता।
पौष कृ. 10 सन् 1936 को सूर्यास्त के समय आप ब्रह्मलीन हुये। वहीं पर ईगरा में आपकी समाधि तथा स्मृति चिन्ह है। आपके अनेक प्रसिद्ध शिष्य हुये जिनमें ब्रह्मर्षि गीतानन्द सरस्वती ने अपने अलग आश्रम बनाये।