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महासभा की स्थापना

महासभा की विधिवत स्थापना से पूर्व ही अनेकों व्यक्तियों के हृदयों में जाति उन्नति के विचार उद्भूत हुए। ऐसे व्यक्तियों में डॉ. इन्द्रमणी, लखनऊ का प्रथम स्थान है। सेना की सेवा करते समय विदेश भ्रमण तथा अन्य जातियों को उन्नति पथ पर आरूढ़ देखकर उनके हृदय में जाति उन्नति के विचार अंकुरित हुए ।
डॉ. इन्द्रमणी ने सन् 1890 में पं. पालाराम जी रायपुरवल ( पंजाब ) ठेकेदार से इस विषय पर विचार कर प्रथम पुस्तक 'ख्याति उपदेश' के नाम से प्रकाशित कराई, परन्तु समाज ने इस नाम को पसन्द नहीं किया। पं. पालारामजी ने पं. बुद्धसिंह शर्मा मुरादाबाद के सहयोग से सन् 1902 में जांगिडोत्पत्ति की रचना की। इसके पठन पाठन से जांगिड जाति में कुछ कुछ जागृति के अंकुर प्रस्फुटित होने लगे। इसी काल में मथुरा में गौड़ ब्राह्मण सभा की स्थापना हुई। इसके जन्मदाता पं. क्षेत्रपाल गौड़ थे, उन्होंने पं. गोरधनदास तथा पं. मुरलीधर मथुरा को प्रेरित करते हुए कहा- "हमने गौड़ ब्राह्मण सभा की स्थापना की है। मैं देखता हूँ कि तुम्हारे समाज में भी गौड़ ब्राह्मणों की भांति 1444 शासन प्रचलित हैं तथा अन्य सभी बातें उच्च ब्राह्मण समाज जैसी हैं, अतः तुम्हें भी अपनी एक सभा की स्थापना करनी चाहिए।"
इससे प्रेरित होकर 30 दिसम्बर 1905 को एक बैठक मथुरा नगर में हुई जिसकी अध्यक्षता श्री एन. आर. शर्मा ने की थी। इस बैठक में मथुरा से सर्व श्री गोरधनदास, मुरलीदास घड़ीसाज, दौलतराम, नकटाराम तथा प्रभुलाल आदि खेड़ के पं. राजाराम ठेकेदार, हाथरस से पं. किशनलाल, महमदपुर से पं. गोपालजी, पं. पालाराम रायपुरवल तथा पं. डालचन्द जहांगीरबाद से सम्मिलित हुए। पूर्ण विचार कर इसी बैठक में सभा के विचारों का अंकुरण हुआ ।
26 दिसम्बर 1907 को पं. धनीराम पटीकरा निवासी के केसरगंज अजमेर स्थित निवास पर रात्रि 7.00 बजे अमराजी पेड़वाल की अध्यक्षता में सभा हुई। 27 तारीख को बाबू गोरधनदास मथुरा तथा 28 तारीख को डॉ. इन्द्रमणी ने अध्यक्षता की। इस सभा में लगभग 30 व्यक्ति अजमेर के तथा बाहर से भी कई व्यक्ति उपस्थित हुए थे। मंत्री का कार्य पं. डालचन्द शर्मा ने किया। डॉ. इन्द्रमणी द्वारा प्रस्तुत तथा पं. पालाराम द्वारा अनुमोदित सर्वप्रथम यह प्रस्ताव पारित हुआ कि प्रत्येक स्थान पर एक सभा तथा शिक्षा देने के लिए एक पाठशाला स्थापित की जाएं। इसी प्रस्ताव के अनुसार सर्वप्रथम अजमेर में जांगिड योग वंश सभा की स्थापना हुई। पं. नाथूलाल प्रधान, पं. मोतीलाल मंत्री तथा पं. घीसूलाल पुस्तकाध्यक्ष चुने गए। इसी सभा से आगे चलकर महासमा का जन्म हुआ ।
1 जुलाई, 1908 की अन्तरंग सभा की बैठक में महासभा के लिए नियम उप-नियम बनाए गए तथा उन पर विचार विमर्श करने के पश्चात उनका प्रारूप जांगिडा समाचार के माह जुलाई 1908 के अंक में प्रकाशित किया गया।
स्थापना:
28, 29 दिसम्बर, 1913 को सिरकीवालान दिल्ली स्थित पं. जमनादास के निवास पर दूसरा अधिवेशन हुआ, जिसमें लखनऊ, आगरा, बुढ़ाना, मुरादाबाद, चन्दौसी, मुलतान, लाहौर, बम्बई, होडल, भरतपुर, अजमेर के अतिरिक्त 45 मुखिया दिल्ली के उपस्थित हुए। इन्होंने सर्वसम्मति से निश्चय किया कि "जांगिडा महासभा" की स्थापना दिल्ली में की जावे तथा इसका मुख्य कार्यालय भी दिल्ली में ही रहे। इसके अनुसार पं. जमनादास टिम्बर मर्चेन्ट दिल्ली प्रधान, पं. भवानीसहाय मंत्री तथा 36 सदस्य एवं पदाधिकारी बनाए गए।
सोनीपत अधिवेशन में पारित प्रस्ताव के अनुसार रजिस्टर्ड करने की कार्यवाही के फलस्वरूप 4 अप्रेल 1919 को जांगिड (योग) मैथिल महासभा के नाम से महासभा रजिस्टर्ड हो गई।
जयपुर में महासभा के आठवें अधिवेशन के अध्यक्ष रायसाहब पं. छज्जूसिंह ठेकेदार झांसी थे। इसी अधिवेशन में पं. जितेन्द्र मणि ने प्रस्ताव रखा कि महासमा का नाम जांगिड (योग) मैथिल महासभा के स्थान पर जांगिड ब्राह्मण महासभा' रखा जाए। पं. जयकृष्ण मणीठिया तथा पं. परशुराम शास्त्री द्वारा अनुमोदित यह प्रस्ताव करतल ध्वनि के मध्य सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ ।
श्रीमती सुन्दर देवी ने ग्यारह हजार मूल्य के हवेली हैदरकुली दिल्ली स्थित अपने दो मकान महासमा को दान कर 3 जनवरी, 1927 को उनकी रजिस्ट्री जांगिड ब्राह्मण महासभा के नाम करा दी। विरोधियों के बहकावे से हकीकियों ने दावा किया जिसका अंतिम निर्णय 22 फरवरी 1934 को लाहौर हाईकोर्ट से महासभा के हक में हुआ। इनमें से एक मकान को बेचकर उसके मूल्य से वर्तमान महासभा भवन का सन् 1935 में निर्माण हुआ। उसी समय से जांगिड ब्राह्मण महासभा का सम्पूर्ण कार्य इसी कार्यालय से किया जाने लगा।
आज अखिल भारतीय जांगिड ब्राह्मण महासभा एक सृदृढ़ एवं संगठित संस्था के रूप मे उभर कर सामने आई है। इसके अन्तर्गत प्रादेशिक सभाएं हैं तथा प्रादेशिक सभाओं के अन्तर्गत जिला सभाएं हैं। जिला सभाओं के अन्तर्गत प्रदेशों के कोने-कोने में शाखा सभाओं का एक जाल- सा बिछ गया है। जिसका सारा श्रेय अखिल भारतीय जांगिड ब्राह्मण महासभा व उसके पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को जाता है।