पं. ओमदत्त शास्त्री
सम्प्रति जांगिड ब्राह्मण महासभा के प्रधान पं. ओमदत्त जी शास्त्री का जन्म ( दिनांक 29 अप्रेल, 1905 ई.) में मुजफ्फर नगर जिले के शामली ग्राम में एक सन्भ्रान्त आर्य परिवार में हुआ। शास्त्रीजी की प्राथमिक शिक्षा गांव में तथा 1918 में जाति के एक मात्र जांगिड ब्राह्मण विद्यालय दिल्ली में प्रारम्भ हुई। आपने दिल्ली से ही 1921 में पंजाब विश्वविद्यालय की प्राज्ञ परीक्षा, 1922 में विषारद परीक्षा, अमृतसर में संस्कृत पाठशाला में अध्ययन कर 1924 में शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की। आपने अजमेर राजपुताना म्यूजियम के तत्कालीन अधीक्षक प्रसिद्ध इतिहासकार श्री गौरीशंकर ओझा से ब्राह्मी, खारोष्ठी गुप्त आदि प्राचीन भारतीय लीपियों का सफलतापूर्वक अध्ययन किया। आपकी रूचि प्रारम्भ से ही अधिक से अधिक अध्ययन की ओर रही है। लाडोर सेन्ट्रल ट्रेनिंग कॉलेज में संस्कृत अध्यापन का सफल प्रशिक्षण प्राप्त कर आपने 1930 में ओ.टी. (संस्कृत अध्यापन) में पंजाब में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया तथा इस अवसर पर आपको स्वर्ण पदक प्रदान कर सम्मानित किया गया।
1926 में एम.ए. संस्कृत प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की तथा आपने हिरण्य केशी स्त्रोत सूत्र की थीसिस में 100 में से 95 अंक प्राप्त कर विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त कर एक कीर्तिमान कायम किया। 1937 में शास्त्री व एम. ए. दोनों उत्तीर्ण करने के कारण आपको एम. ओ. एल. की डिग्री सम्मान स्वरूप प्रदान की गई। 1925 से 1926 तक विक्टोरिया प्राप्त स्कूल, जलालपुर में संस्कृत का अध्यापन कार्य, 1926 से 1937 तक पंजाब राज्य के शिक्षा विभाग में हिन्दी संस्कृत का अध्यापन कार्य, 1938 से 1940 तक गवर्नमेन्ट हाई स्कूल दिल्ली में अध्यापन का कार्य, 1941 से 1956 तक दिल्ली पोलिटेक्निक में हिन्दी के प्राध्यापक का कार्य तथा 1956 से 1960 तक केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय में रिसर्च कार्य बहुत ही सफलतापूर्वक सम्पन्न किये।
आप हिन्दी व संस्कृत के एक अच्छे ज्ञाता है। आपने "संस्कृत परिचय" नामक संस्कृत की प्रारम्भिक प्रस्ताव की रचना है। जिसे ख्याति प्राप्त संस्था इंडियन प्रेस प्रयाग द्वारा प्रकाशित किया गया है। हिन्दी- व्याकरण तथा स्वजाति की महत्ता पर प्रकाश डालने के लिए जांगिड वंश दिवाकर जैसी अनुपम पुस्तकों की सफल रचना का श्रेय आपको ही है। आपने आप्टे की संस्कृत इंग्लिश डिक्सनेरी का संस्कृत हिन्दी कोष का सफल सम्पादन भी किया है जिसे मोतीलाल बनारसी दास ने प्रकाशित किया है। आपने विश्वकर्मा समाज का गौरव बढ़ाने वाली विश्वकर्मा महायज्ञ पद्धति का भी सफल सम्पादन किया है।
आपकी रुचि प्रारम्भ से ही जाति उत्थान कार्यों में रही है आप ही वह आदर्श व्यक्ति है, जिन्होंने 1926 में हनुमान दत्त जोशी के विरुद्ध मानहानि के केस में साथ दिया व अनेकों प्रकार से सहायता प्रदान की। 1938 में दिल्ली में आकर आपने महासभा के कार्यों में सक्रिय भाग लिया तथा 1940-41 में महासभा के प्रधान के रूप में सफलता पूर्वक कार्य कर आपने महासभा को काफी योगदान प्रदान किया। शास्त्री जी समाज के एक जाज्वलयमान रत्न है। समाजोत्थान की आपकी प्रबल इच्छा है। अखिल भारतीय जांगिड ब्राह्मण महासभा दिल्ली के प्रधान के रूप में विश्वकर्मा वंशीय विशेषकर जांगिड समाज आप जैसे विद्वान व समाज सेवी को पाकर अपने आपको गौरान्वित महसूस करता है।