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पं. ब्रज किशोर शर्मा (रोलीवाल)

Brij Kishore Sharma


17 दिसम्बर 1936 को श्री ब्रजकिशोर शर्मा का जन्म स्व. पं. बहादुर सिंह जी शर्मा के यहां हुआ। पं. बहादुरसिंह जी का परिवार अति धार्मिक प्रवृत्ति का परिवार रहा है। पूज्य बाबूजी स्व. ग्यासीरामजी शर्मा के मागदर्शन में यह परिवार धार्मिक सोपानों पर सदैव सजता रहा और इस परिवार के रक्त की तासिर ही ऐसी है, जिसमें परोपकार, सेवा समाजसेवा के साथ-साथ धार्मिक आस्था कूट-कूटकर भरी हुई है और इसी क्रम में पंडित ब्रजकिशोरजी शर्मा भी लगातार इस विरासत को आगे बढ़ाने में कामयाब रहे हैं। अखिल भारतीय जांगिड ब्राह्मण महासभा के पूर्व प्रधान ब्रजकिशोर जी ने इंटर व विशारद की शिक्षा ग्रहण कर कर्मयोग की ओर कूच कर गए।
1967 में आगरा छोड़कर गुजरात के मेनचेस्टर सूरत में आ गए और अपना कर्मयोग का पहला पन्ना लिखना शुरू कर दिया। सूरत में कड़ा परिश्रम कर डायमंड (रत्न) के व्यवसाय में दक्षता प्राप्त की व अप्रैल 1970 में मुंबई को अपनी कर्मस्थली बना लिया। प्रवासी राजस्थानी समाज के हृदय स्थल मालाड में बसकर आप ने यहां से व्यवसाय व समाज सेवा की ओर कूच किया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा । रत्न व्यवसाय के पारखी होने के साथ-साथ भवन निर्माण के क्षेत्र में भी आपकी भारी उपलब्धियां रही है। इस सफल कर्मक्षेत्र के सिपाही के रूप में तो आपने अपनी पारिवारिक दीठ का परिचय दिया ही साथ ही साथ परोपकार व समाजसेवा का जो अध्याय आपने शुरू किया वह सभी समाज बंधुओं के लिए आज प्रेरणास्रोत है।
अप्रैल 1999 में महाराष्ट्र के नासिक में हुए विशाल अखिल भारतीय जांगिड महासभा के अधिवेशन में प्रथम बार तीन साल के लिए प्रचंड बहुमत से प्रधान चुने गए और कार्यकाल में आपने जो समाज सेवा का रिकॉर्ड बनाया वह भी अपने आप में सराहनीय है। इसी पारी मे अखिल भारतीय जांगिड ब्राह्मण महासभा द्वारा किए गए कार्यों का परिणाम यह रहा कि पूरे समाज ने 2002 में गुजरात के गांधीधाम में हुए अधिवेशन में पुनः एक बार आपको अध्यक्षता प्रदान की व एक बार फिर आपको सर्व सम्मति से प्रधान के रूप में चुना।
भुज में आए गयानक भूकंप ने पूरी पृथ्वी को हिलाकर रख दिया व पूरे गुजरात में हाहाकार मच गया ऐसी त्रासदी में समाज के बैनर के साथ जो राहत कार्य करवाए उसके लिए पूरा राष्ट्र आपकी पीठ थपथपाता है। आपके 6 साल की कार्यकाल में आपको समाजसेवा का जो मार्गदर्शन दिया वह विशाल सेवा का वटवृक्ष रूप लेता गया जिस पर एक पुस्तक लिख जाए तो भी कम है लेकिन समाज की जिम्मेदारी ओढ़ते हुए आपने महासभा के गवन का न केवल जीर्णोद्वार करवाया बल्कि महासभा भी हुई और वहां सुचारू रूप से कार्य शुरू हुआ जो आज भी अनवरत चल रहा है और उसका सारा श्रेय आपको ही जाता है। आपके मार्गदर्शन में ही महासभा भवन में यात्रियों के ठहरने के लिए जो सुविधायें उपलब्ध करवाई उसके लिए पूरा समाज सदैव आपका ऋणी रहेगा।
जांगिड ब्राह्मण पत्रिका जो 1997 तक मात्र 1700 प्रतियां छपती थी उसकी सदस्य संख्या बढ़कर 6000 हो गई व संस्था का संगठनात्मक स्वरूप एक परिवार की तरह आपने रच दिया, जिससे पूरे भारत का जांगिड समाज एक परिवार - सा लगता है। इसकी प्रेरणा अन्य समाजों को भी लेनी चाहिए। इसी पारिवारिक स्नेह के सूत्रधार श्री ब्रजकिशोर जी रोलीवाल ही हैं पूरे संघटनात्मक ढांचे का विकेंद्रीकृत लोकतंत्र का स्वरूप दिया गया व अखिल भारतीय संगठन का प्रादेशिक संगठन भी न केवल स्थापित हुआ बल्कि मजबूत हुआ और इसी क्रम में इसकी शाखाएं हर शहर व गांव तक गई और आज जो अखिल भारतीय स्वरूप संस्था का दिख रहा है, वह वास्तव में भारत की हर गली-गली में रचा बसा है। संघटनात्मक स्वरूप लोकप्रिय भी हुआ और इससे समाजसेवा भी विस्तृत हुई तथा प्रदेशों के चुनाव नियमित रूप से होने से संगठन को और शक्ति मिली व संस्था को लोकतांत्रिक स्वरूप भी मिला ।
मार्च 1999 में जहां संस्था के मात्र 6 लाख रूपए एकत्र धनराशि थी, वह बढ़कर 28 लाख हो गई और इसके अतिरिक्त अंगिरस भारतीय पब्लिक स्कूल के बकाया हाउसटैक्स की राशि जो लगभग 23 लाख रिकवरी थी उसे कम करवाकर वह भी अदा की गई व इसके साथ ही समय-समय पर समाजसेवा के बड़े-बड़े कार्य सफल होने संभव होने लगे। आपके प्रयासों से ही जयपुर व नारनौल (हरियाणा) में समाज के युवक-युवती परिचय सम्मेलन व सामूहिक विवाह सम्मेलन संपन्न हुए। समय-समय पर समाज के सहयोग से ही आप द्वारा समाज का प्रत्येक वर्ष हर्षोल्लास के साथ जो वार्षिक आयोजन होता है वह भी स्नेह सम्मेलन के स्वरूप से बाहर निकलकर समाज की समस्याओं का समाधान का सेतु बन रहा है। आपके ही मार्गदर्शन में समाजोपयोगी भवन व छात्रावास की स्थापना हुई जो समाज के सर्वागीण विकास की द्योतक हैं, न केवल जांगिड ब्राह्मण समाज में आपका वर्चस्व रहा बल्कि इससे भी पहले आपका पारिवारिक वरदान के रूप में पूरी जगती को लाभार्थ फल प्राप्त होता रहा है। फतेहपुर में जांगिड वैदिक विद्यालय हॉल का निर्माण आपके सौजन्य से ही हुआ व मथुरा मे अंगिरा अतिथिगृह (धर्मशाला) का निर्माण आपके सहयोग से ही हुआ।
आगरा में मुरली मनोहर मंदिर का जीर्णोद्धार आपकी प्रेरणा व सहयोग से ही हुआ व यहीं पर जांगिड छात्रावास का निर्माण कार्य हाथ में लिया गया। जिसमें आपके निजी सहयोग से 14 कमरे समाजपयोगी कार्यों के लिए निर्माणार्थ प्रेषित हुए। राजस्थान और हरियाणा में समाज की विधवाओं को 4 लाख 40 हजार की मदद की, साथ ही साथ अपंगों को भी आर्थिक सहायता दी गई है। अंगिरा समाज सेवा ट्रस्ट के बैनर तले ही मथुरा में सामूहिक विवाह संपन्न हुआ, जो आपके समाजसेवा के उस जज्बे को समाज के सामने लाया है, जिससे आज की युवा पीढ़ी भी सीख ले सकती है कि संगठन में ही शक्ति है व समाज समृद्धशाली हो इसके लिए प्रत्येक सदस्य को इसके लिए अपना तन-मन-धन न्यौछावर करना होगा।
वास्तव में अपने परिवार के साथ-साथ समाज की जिम्मेदारी का निर्वाहन करने वाला व्यक्ति विरले समाज को ही प्राप्त होता है क्योंकि आज के आपाधापी के युग में समाज का कार्य भी एक फैशन बन गया है व सस्ती लोकप्रियता का औजार बन गया है। इस विषम परिस्थितियों में भी रोलीवाल ने बिना किसी प्रचार व बिना किसी स्वार्थ के सेवा की है वह सदैव याद रहेगी। धन्य है वह मां जिसने ऐसा पुत्र समाज को दिया, धन्य है वह पिता जिसने ऐसी संतान समाजसेवा के लिए समाज को समर्पित की। धन्य है वह समाज जिसमें रोलीवाल जैसे कोहिनूर पैदा होते हैं।
हस्ती में मोहब्बत की फसा कौन करेगा...?
यह फर्ज आपके सिवा अदा और कौन करेगा।