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पं. आनन्द स्वरूप भारद्वाज

Anand Swaroop Bhardwaj


12 अक्टूबर 1968 से आनन्द स्वरूप जी भारद्वाज जांगिड ब्राह्मण महासभा के प्रधान बनाये गये। आपका महासभा कार्यकाल साहित्यिक उन्नयन ऐतिहासिक तथ्यों का संकलन, वर्गीकरण और प्रकाशन का सर्वश्रेष्ठ काल रहा है। यदि यह कहें कि गुरूदेव श्री जयकृष्ण मणिठिया के बाद महासभा के लगभग 7 दशकों के लिखित दस्तावेजों का एकत्रीकरण करने और उसे पठनीय बनाने की दिशा में वैज्ञानिक सूझबूझ से किसी ने उल्लेखनीय कार्य किया, तो वह केवल श्री आनन्दस्वरूप जी भारद्वाज ने ही किया। दोनों ही महापुरुषों ने अपनी संपूर्ण योग्यता, विद्वता व क्षमता का समाज कल्याणार्थ भरसक सदुपयोग किया।

परिचय -
श्री आनन्द स्वरूप जी, सत्यनिष्ठ, धैर्यशील, कर्तव्यपरायण, कठोर परिश्रमी, दृढ़ संकल्पित शक्ति के व्यक्तित्व के धनी और मानवीय सद्गुणों से युक्त रहे हैं। बाल्यकाल जब आप की आयु मात्र 13 वर्ष थी तब ही आपके सिर से पिताजी का संरक्षण छिन गया था। आपके पिता श्री शिवलाल जी भारद्वाज मूलरूप से रोहतक जिले से संबंधित थे। अल्पायु में श्री आनन्द स्वरूप जी धैर्यता धारण करते हुए अत्यन्त विपरीत परिस्थिति पर विजय प्राप्त की। आप बहुत मेधावी एवं विलक्षण बुद्धिशाली विद्यार्थी रहे। मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर आपने अपने पैतृक व्यवसाय को सम्भाला तथा कठिन परिश्रम करते हुए परिवार के भरण पोषण का भार वहन करते हुए आर्थिक रूप से उन्नत हुए।
प्रारम्भ से ही श्री आनन्द स्वरूप जी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गये तथा संघ की गतिविधियों में बढ़चढ़ कर भाग लिया करते थे। इसके साथ-साथ सामाजिक सेवार्थ समाज की गतिविधियों में भी रूचि लेते हुए प्रभाकर एफ.बी.ए. की परीक्षायें प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और प्रभाकर तथा एन.ए. दोनों ही परीक्षाओं की योग्यता सूची में तृतीय स्थान प्राप्त किया। आपने स्वाध्याय से वेद, पुराण, उपनिषद, दर्शनशास्त्र, जैन व बौद्ध धर्म ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया । विधि एवं इतिहास विषय को भी श्री भारद्वाज जी ने गहराई से पढ़ा। श्री आनन्द स्वरूप जी निष्काम कर्मयोगी साहित्यिक ज्ञान के विपुल भंडार, भाषा ज्ञान व अनेक विषयों के प्रकाण्ड पंडित थे। आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। शिक्षा के प्रति जिज्ञासु व समर्पण भाव रखते थे। प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी और कठोर परिश्रमी, अनुशासित व समय की कठोरता से पालना करने वाले महापुरुष थे, अपनी बात को तार्किक ढ़ंग से करने और उसे मनवा लेने की अद्भूत विलक्षण प्रतिभा आप में थी ।

कृतित्व सार्वजनिक क्षेत्र –
सर्वप्रथम आपने तरूणावस्था में अपने व्यवसाय को जमाया और आर्थिक रूप से उन्नत हुए। कठोर परिश्रमी होने से उच्च शिक्षा में कीर्तिमान स्थापित किया। 1940 से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कार्यकर्त्ता बने। 1957, 1962 से 1966 तक उसके प्रधान बनकर अनुकरणीय कार्य किया। 1954 में भारती कन्या विद्यालय की स्थापना की तथा 14 वर्ष तक लगातार उसके प्रधान रहे । वस्तुतः उस विद्यालय को जिले में जो अनुपम स्थान प्राप्त है वह उसके सतत् कठोर परिश्रम का ही फल है। 1947 में हिन्दु सहायता समिति की स्थापना कर विस्थापितों की महान सेवा की। संघ द्वारा संचालित सत्याग्रह, गौरक्षा तथा हिन्दी आन्दोलनों में अनेक बार जेल की यात्रा की और गिरफ्तार किये गये। अन्याय का प्रतिकार करने के लिये योल कैम्प जेल में 1949 में 34 दिन का आमरण अनशन किया। 1967 में हरियाणा प्रदेश व्यापार मंडल की स्थापना की तथा 1979 तक उसके महामंत्री रहे । हरियाणा प्रदेश टिम्बर मर्चेन्ट एसोशियेशन के भी संस्थापक महामंत्री रहे। विवेकानन्द स्मारक कन्याकुमारी के लिये भी आपने कार्य किया। दो वर्ष तक व्यापारी जागो पत्र का सफल सम्पादन किया।

सामाजिक क्षेत्र -
श्री आनन्द स्वरूप जी भारद्वाज 1968 में जांगिड ब्राह्मण महासभा के प्रधान बनाये गये। सर्वप्रथम आपने महासभा के संपर्क सूत्र गतिमान कर नियमित किया । फिर महासभा को क्रियाशील बनाने हेतु भारत भ्रमण का कार्यक्रम बनाया। सभी स्थानों पर पहुँचने की तिथि, समय व कार्यक्रम निश्चित कर योजनाबद्ध तरीके से जन संपर्क के व्यापक कार्यक्रम बनाया।

जांगिड ब्राह्मण निर्देशिका का प्रकाशन -
महासभा अधिवेशनों में लगभग 50 वर्षों से समाज की निर्देशिका करने संबंधी प्रस्ताव पारित होते रहे किन्तु किसी भी महापुरूष ने इस चुनौतिपूर्ण कार्य की महति योजना का प्रारूप तक नहीं बनाया। अपनी साहित्यिक रूची और विलक्षण क्षमता के आधार पर श्री आनन्दस्वरूप जी ने 1972 में इस चुनौती को स्वीकार किया। विधिवत रूप से निर्देशिका की योजना बनाई, जन-जन से सहयोग लेने वास्ते व्यक्तिशः संपर्क अभियान चलाया।
वेद-पुराणों, संबंधित साहित्यिक पुस्तकों, जांगिड ब्राह्मण महासभा को प्रकाशित पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं का गहन व सूक्ष्म अध्ययन किया। आपकी दृढ़ इच्छा शक्ति से ढ़ाई वर्षों की रात दिन के कठोर परिश्रम के बाद अन्ततः जांगिड ब्राह्मण निर्देशिका का प्रकाशन संभव हुआ। इस निर्देशिका का विमोचन माघ शुक्ला त्रियोदशी सम्वत् 2031 अर्थात् 24.2.1975 में जयपुर में किया गया। निर्देशिका की उपयोगिता सिद्ध हुई। श्री विश्वकर्मा के विविध स्परूप ब्रह्मर्षि अंगिरा जी का वंश विस्तार जांगिड व अंगिराजी का व्यावहारिक पर्याय संबंध, स्वयं भू ब्रह्म जी मानस दृष्टि रचना तथा समाजोत्थान के लिये की गई गतिविधियाँ तथा महासभा के गठन की प्रारम्भिक प्रक्रिया से लेकर संस्थानों के गठन व कार्य तथा समाज जगह-जगह निर्मित मंदिर, स्कूल, छात्रावास, धर्मशाला भवन का इतिवृत एवं समाज के सन्त महात्मा प्रेरक व्यक्तित्व तथा देशभर में एकत्रित किये गये नाम - विवरण की 20 हजार से अधिक इन्द्राजों से परिपूर्ण यह निर्देशिका जांगिड समाज के वृहद् गंथ के रूप में प्रकाशित होने से यह ग्रन्थ समाज के प्रत्येक बंधु के लिये संग्रहणीय है।
इसकी उपयोगिता इसी से सिद्ध है कि प्रस्तुत अजमेर जांगिड ब्राह्मण निर्देशिका 2002 के लिये लेखक-संपादक ने इसी ग्रंथ से उदाहरण उद्धत किये है। अन्य शहरों में प्रकाशित निर्देशिकाओं की मूल विषय वस्तुत भी इसी ग्रंथ से ली जाती रही है। श्री भारद्वाज जी ने यह रचना करके समाज पर बहुत उपकार एवं कृपा की हैं।

विश्वकर्मा शोध संस्थान ट्रस्ट बनाया -
पं. आनन्द स्वरूप जी ने विश्वकर्मा शोध संस्थान ट्रस्ट बना कर उसके सात उद्देश्य निर्धारित किये और उनकी प्रतिपूर्ति करने की उर्वरा भूमि के रूप में उक्त ट्रस्ट को रजिस्टर्ड करवाया। यह दस्तावेज नं. 97 बडी 1 जिल्द नं. 561 के सफा पृष्ठ नं. 208 तिथि 30.5.89 तद्नुसार 6 ज्येष्ठ शक सम्वत् 1911 को रजिस्टर्ड कराया।

श्री विश्वकर्मा महायज्ञ पुष्कर में भारद्वाज जी की भूमिका -
विश्वकर्मा जयन्ति वर्ष 1976 को श्री विश्वकर्मा मंदिर पुष्कर के तत्वाधान में श्री विश्वकर्मा महायज्ञ के आयोजन का ऐतिहासिक निर्णय किया गया। जांगिड बंधु विश्वकर्मा महायज्ञ के प्रबल पक्षधर थे किन्तु यह किस प्रकार और किस प्रक्रिया से पूरा हो इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं थी। इस महायज्ञ के लिए पोंगा पण्डितों एवं मठाधीश साधु महात्मा यज्ञ ब्रह्मा और यज्ञ अधिष्ठाता बनने को तैयार थे। अजमेर के सर्व श्री सौभागमल शर्मा, रामबक्ष जी भारद्वाज, सत्यदेव जी शर्मा, गुलाबचन्द आसल्या और खेमराज बांस आदि के साथ लेखक भी महायज्ञ संबंधी तैयारियों के लिये आयोजित बान्दनवाड़ा मीटिंग में भाग लेने गये जहाँ मीटिंग में एक बालकदास जी महाराज नामक साधु महात्मा विश्वकर्मा महायज्ञ अपने माध्यम से करवाने की व्यूह रचना कर चुके थे। इन लोगों के जाने से उसकी योजना भंग हो गई किन्तु समाज बन्धुओं की भावना के अन्तर्गत महायज्ञ में पूरा-पूरा सहयोग करने का दायित्व हमने स्वीकार कर लिया। यह चुनौती स्वीकार करने और अपने भाईयों को आश्वस्त करने का मुख्य आधार श्री आनन्द स्वरूप जी भारद्वाज द्वारा रचित जांगिड ब्राह्मण निर्देशिका और उसकी विस्तृत विषय वस्तु ही थी। श्री रामबक्ष जी भारद्वाज ने निर्देशिका की रचना को बहुत बड़ा यज्ञ बताया।
श्री भारद्वाज जी ने इस यज्ञ की तिथि से पूर्व विश्वकर्मा महायज्ञ नामक पुस्तक छपवा कर उसी के अनुसार विधिपूर्वक यज्ञ करवाया । अपने वादे के मुताबिक श्री भारद्वाज ने न केवल यह पुस्तक लिखी अपितु श्री ओमदत्त जी शास्त्री को यज्ञबह्मा बनने के लिए मना लिया। पूना के श्री निरन्जन शास्त्री यज्ञाचार्य बने ।
श्री भारद्वाज जी ने यज्ञ तिथि से पूर्व 4 बार अजमेर - पुष्कर आ कर कार्यकत्ताओं का हौंसला बढ़ाया, अनेक उत्तरदायित्व स्वयं पर ओढ़ लिये। अनेक प्रकार मार्गदर्शन किया। महायज्ञ के दौरान सात दिनों तक वे पुष्कर में ही रहे। ऐतिहासिक महायज्ञ पूर्णतः सफल हुआ।
ऐसे कर्मनिष्ठ, साधु प्रकृति के महापुरूष जो जीवन में मशीन की भाँति कार्य करते नहीं थकते थे।