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क्यों नहीं समुझत!

मानव इस जगत का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। यही एक समझदार कहलाने वाला प्राणी है। विधाता ने इसे अद्वितीय गुण अर्थात् सोचने-विचारने की शक्ति से नवाजा है। लेकिन बड़े आश्चर्य की बात है कि यह सर्वश्रेष्ठ बुद्धिमान प्राणी एक छोटी सी बात को कैसे भूल बैठा है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि मानव ने अपने इस अमूल्य हथियार की सहायता से अनेकानेक आविष्कार कर देवताओं तक को आश्चर्यचकित कर दिया है। विश्व में एक से बढ़कर एक वैज्ञानिक उत्पन्न हो रहे है। नेतागण उत्पन्न हो रहे हैं। यहाँ तक कि बड़े बड़े ज्ञानी महात्माओं का निरन्तर इस धराधाम पर आगमन होता रहता है। फिर भी यह प्राणी अज्ञान रूपी अंधकार से क्यों सोया सा पड़ा है। उसका विवेक कहां गुम हो गया? उसकी विशुद्ध बुद्धि कहां कुण्ठित हो गई ? क्योंकर वह अपना अमूल्य मानव जीवन व्यर्थ प्रलाप में खोता जा रहा है? उसे जीवन का सार्थक मार्ग क्यों नहीं दिखाई देता?
प्रश्न बिल्कुल सरल और स्पष्ट है। इस भौतिक जगत में अनवरत रूप से अनेकानेक जीवों की भांति मानव का भी आगमन होता है और कुछ समय पश्चात वह विलीन हो जाता है। फिर उसका कहीं अता-पता नहीं रहता। वह कहां से आता है? और फिर कहां चला जाता है ? यहां आकर वह विविध कर्मों में ऐसा खो जाता है कि सारी सुधबुध भूल जाता है। यह भी नहीं सोच पाता कि इस अनोखे संसार में उसे क्या तो करना है और क्या नहीं करना चाहिए? वह यह भी विचार नहीं करता कि उसके द्वारा किये गये कर्म का क्या नतीजा होगा? उन कर्मों का कैसा-कैसा फल भोगना पड़ेगा? उसे इस बात की भी चिन्ता नहीं कि उसके द्वारा किये गये कर्मों का फल दुःख रूप होगा या सुखरूप? बिना कुछ सोचे समझे क्षणिक उद्वेगों से प्रभावित हो नाना प्रकार के कर्मों में वह प्रवृत्त हो जाता है।
मानव का निर्माण माता के गर्भ में ईश्वरी शक्ति से होता है। वही शक्ति उसका नख-सिख तक बड़ी कुशलता पूर्वक निर्माण करती है। हर अंग प्रत्यंग को अपनी जगह फिट करती है। उनके निर्माण व स्थापना में तनिक भी लापरवाही नहीं बरतती।शरीर का निर्माण पूर्ण कर बाहरी लिबास भी कुशलतापूर्वक प्रदान करती है। सुन्दर चेहरा उसी की कलाकारी का नतीजा है। विश्वसुन्दरी अपने सौन्दर्य पर इठलाती है लेकिन उसे पता नहीं किस कारीगर ने उसकी सुन्दर रचना कर डाली कि हर कोई उसे देखने मात्र से मोहित हो जाता है, उस रचना पर लट्टू हो जाता है? वह सुन्दरी अपने सौन्दर्य के लिये विश्व नियंता की कलाकारी को क्यों भूल बैठी है?
इधर एक महान वैज्ञानिक महाशय विराजमान हैं। उन्हें भी पता नहीं उनके इस भव्य मस्तिष्क की रचना किस अदृश्य शक्ति द्वारा की गई। वह भी अपने को ही इसका हकदार एवं सर्वे-सर्वा मान बैठा है। अन्य किसी को इस विभूति का श्रेय देना नहीं चाहता। क्या हम ऐसे महाशय को समझदार कहेंगे?
इधर एक वयोवृद्ध महाशय बैठे हैं जो सम्भवत् सौ वर्ष पार कर चुके हैं। वे भी अपनी जीवन शैली को ही दीर्घायु का श्रेय देते हैं। वे नहीं समझते कि नौ माह के गर्भावस्था काल में किस शक्ति ने उसके अवयवों का निर्माण इतनी सावधानी से किया कि वे सौ वर्ष पर्यन्त बेखटके काम कर सके और शारीरिक विकृति से बचा जा सके। हर स्थूल शरीर के निर्माण में ईश्वरीय शक्ति को ही श्रेय जाता है। न तो माता गर्भ में बच्चे का निर्माण करती है और न पिता का उस कलाकारी से कोई सम्बन्ध होता है। बालक को माता-पिता की कृति मान बैठना कितनी बड़ी भारी भूल है। न मालूम क्यों यह गलतफहमी मानव समाज में सर्वत्र छा रही है।
हमें प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ रहा कि इस सृष्टि में हर जीव की रचना ईश्वरी शक्ति द्वारा होती है। वनस्पति के क्षेत्र में भी हर पेड़-पौधे की रचना कुशलता पूर्वक वही शक्ति करती है। हर जड़ी बूटी में उसमें व्याप्त गुण-दोष उसी शक्ति की देन है। हर फल-फूल में उनके गुण दोष वही शक्ति निर्धारित करती है। यहां तक ही नहीं इस खगोल (Cosmos) में स्थित हर ग्रह-नक्षत्र की रचना व संचालन वही शक्ति करती है। यह सब देखते हुए, जानते हुए भी इस बात को क्यों भूल बैठा है कि वह परम शक्ति ही हमारे आराध्य योग्य है। उसी का यजन-पूजन करना मुख्य कर्तव्य है, धर्म है। उसके प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करना सभ्य समाज की पहली पहिचान रूपरेखा है। जब तक मानव इस मूल तत्व को नही समझेगा, उसे समझदार कदापि नहीं कहा जाएगा।
जिस धरती पर हम निवास कर रहे हैं, उसे जीवन योग्य किसने बनाया। वह शक्ति कौन थी जिसने पृथ्वी को सूर्य भगवान से इतनी दूरी पर स्थित किया कि उनका ताप इतना तेज न हो कि जीव-जन्तु भस्म हो जाय और इतना न्यून भी न हो कि सारा भूमण्डल बर्फीली चादर से सर्वदा ढ़का रहे। इसके अतिरिक्त एक और विशेष बात प्रभु ने की- उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव की धुरी को 23 डिग्री टेढ़ा कर दिया ताकि हमे छ: ऋतुओं का लाभ प्राप्त हो और विविध प्रकार की वनस्पति उत्पन्न होती रहे। वर्षा का सिस्टम बना रहे। नियत समय पर वर्षा हो और अन्नादि खाद्य पदार्थ निरन्तर उत्पन्न होते हैं। ऐसे सुविधा जनक वातावरण की व्यवस्था करने के उपरान्त ही तो प्रभु ने अपने परम प्रिय प्राणीमानव को इस धरती पर उतारा है- उसे आश्रय दिया है। वह सर्वसमर्थ शक्तिमान अपनी प्रजा की सुख-सुविधा के प्रति कितना सावचेत रहा है। इस पृथ्वी पर वे सभी पदार्थ उत्पन्न हो रहे है जो मानव की हर आवश्यकता को पूर्ति करते रहें, चाहे वे खानों से आया हो अथवा वनस्पति का उत्पादन हो। उन्हीं वस्तुओं का उपयोग करते हुए मानव जीवन इतना सुख-सुविधापूर्ण हो रहा है। हर रोज विज्ञान द्वारा कुछ न कुछ विकास होता जा रहा है ताकि और अधिक आनन्दपूर्वक इस ग्रह पर हम जीवन व्यतीत कर सके। पृथ्वी पर पाये जाने वाले पदार्थों से ही तो आश्चर्यजनक औषधियों का निर्माण हो रहा है जो मानव को पूर्णरूपेण स्वस्थ व दीर्घायु बना सके। हर क्षेत्र में अप्रत्याशित गति से विकास हो रहा है जिसके लिये सृष्टि रचयिता को ही तो श्रेय जाता है। इस धराधाम पर वे सभी सामग्रियाँ विधाता ने जमा कर रखी है जिनकी बदौलत मानव संसार में देव-तुल्य जीवन व्यतीत करने में सफल हुआ है। ऐसे कृपालु जगत निर्माता को हम कैसे भूल बैठे हैं। हमारी हर साँस उसके द्वारा प्रदत्त सामग्री से जुड़ी है। सारा जीवन उसी की बदौलत है। हर वस्तु में उसी की कृति का दर्शन होता है। महापुरुषों ने इसे ठीक ठीक समझा और कहा भी-
"सियाराम मय सब जग जानी।
करऊँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।" (रामचरित मानस)
अतएव एकमात्र शाश्वत सत्य यही सिद्ध होता है कि इस जगत में हर वस्तु अथवा प्राणी का आकट्य, स्थायित्व एवं संवरण उस अदृष्ट शक्ति द्वारा निरन्तर अनादि काल से हो रहा है जिसे हम परमेश्वर कहते हैं। हर व्यक्ति संसार में परमात्मा द्वारा न मालुम कहाँ से लाया जाता है, एक निश्चित समय तक वास करता है और फिर अदृश्य हो जाता है। उसका कोई अता-पता नहीं रहता। वही नर (पुरुष) नागर प्राणियों को अनादि काल से लोक-परलोक में नचा रहा है। उस सर्वशक्तिमान को यह बुद्धिमान मानव क्यों भूल बैठा है। यह सोचनीय स्थिति है।

-- तुलसीराम शर्मा से.नि. (सेशन जज), जयपुर