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रोटी बिना भोजन अधूरा

भारतीय घरों में रोटी बनाना एक महत्वपूर्ण काम है आजकल सम्पन्न घरों में रोटी बनाने का काम नौकरों के द्वारा करवाया जाता है। वे आटा लगाकर तुरंत रोटी बनाना शुरू कर देते हैं। रोटियाँ खूब करारी बनाई जाती हैं। पराठे बनाने में खूब सारा घी तेल आदि डालकर उसे खूब लाल होने तक सेकते हैं। पराठों को चाकू खुरपी आदि से खूब भली-भांति गोदा जाता है, जिससे अधिक मात्रा में चिकनाई उसमें प्रविष्ट हो जाए। इन सब तरीकों में सुधार अत्यावश्यक है। रोटी बनाने के लिए गेहूँ, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि का आटा काम में लिया जाता है। सर्वप्रथम यह देखना चाहिए कि आटा पूर्णान्न का होना चाहिए। आटे को पीसते समय तथा बाद में उसमें से चोकर नहीं निकालना चाहिए, क्योंकि इन सभी धानों की ऊपरी सतह में आवश्यक पोषक तत्त्वों की भरमार होती है। ऊपरी सतह का छिलका छानकर फेंक देने से बहुत अधिक पोषक तत्त्व कचरे में चले जाते हैं।
चपाती बनाने से लगभग 2 घंटा पहले गेहूँ का आटा गूंथकर रखना चाहिए। तदनंतर चपाती बनाने से पहले दुबारा गूंथना चाहिए। आटा सदैव नरम गूंथना चाहिए। रोटी बेलने के समय रोटी को बहुत पतला नहीं बेलना चाहिए। रोटी को सेकने का काम सावधानी से करना चाहिए। सर्वप्रथम तवा अच्छा गरम होना चाहिए, इसकी जाँच करने के लिए तवे पर पानी के छींटे डालकर देख सकते हैं। छींटे तुरंत भाप बनकर उड़ जाने चाहिए। रोटी को तवे पर डालकर उसे गौर से देखेंगे तो दिखेगा कि उसका रंग गहरा हो रहा है। जैसे ही पूरी रोटी की ऊपरी सतह का रंग गहरा हो जाए, उसे उलट देना चाहिए। रंग गहरा होने में कुछ ही सैकण्ड का समय लगता है। उलटने के पश्चात् रोटी को सिकने में कुछ अधिक समय लगता है। इस समय रोटी में भाप के बुलबुले बनने लगते हैं। बुलबुले बनते ही रोटी को उलटकर अंगारों पर डाल देते हैं। रोटी तुरंत फूलने लगती है। जैसे ही रोटी पूरी फूल जाए उसे आँच से उतार लेना चाहिए। सर्वश्रेष्ठ रोटी वही होती है, जो पूरी फूल गई हो तथा जिस पर किसी भी प्रकार का दाग न हो। इस दृष्टिकोण से तथाकथित करारी रोटी निम्न श्रेणी की ही मानी जाएगी। वास्तव में रोटी जितनी अधिक समय तक आग के संपर्क में रहती है, उतने ही अधिक पोषक तत्त्वों की हानि होती है ज्वार, बाजरा, मक्का आदि का आटा गूंथकर ज्यादा देर रखा नहीं जा सकता। अतः इन अनाजों की रोटी तुरंत बनानी होती है। इसे सेकने की क्रिया भी गेहूँ की रोटी की तरह ही है।
परांठे, पूरियाँ आदि तले गए पदार्थों में पोषक तत्त्वों की भारी हानि हो जाती है। साथ ही स्टार्च के कण तथा चिकनाई के कण मिलकर दुष्पाच्य पदार्थों में परिवर्तित हो जाते हैं। ऐसे पदार्थों का सेवन करने के कारण ही अपच, भूख की कमी, मोटापा आदि कष्टों का सामना करना पड़ता है।
यदि भरवाँ खाद्य बनाना ही हो तो न चिपकने वाले तवे पर भरवाँ परांठे बिना घी तेल के भी सेके जा सकते हैं। इन पराठों पर तवे से उतारने के बाद इच्छानुसार घी तेल आदि लगा सकते हैं। इस प्रकार बनाए गए परांठे भी पोषण युक्त तथा सुपाच्य होंगे। पूरियाँ जिन्हें खौलते हुए घी में डालकर बनाया जाता है। पोषक तत्त्वों से पूर्णतया रिक्त हो जाती है। पोषक तत्त्वों के विषय में सतर्क लोगों को इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए। चील्हे, डोसा, उत्तप्पम आदि भी भरवाँ पराठों की भांति ही न चिपकने वाले तवों पर घी, तेल डाले बगैर बनाना चाहिए।
इस प्रकार रोटी चपाती परांठे आदि बनाने से उनके पोष तत्त्वों की काफी सीमा तक रक्षा हो सकेगी तथा अनाज का पूरा लाभ खाने वालों को अवश्य ही मिलेगा। है न रोटी की महिमा अपरमपार ?

-- ताराचन्द जांगिड (से.नि. अधिशाषी अभियन्ता) जोधपुर