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भक्ति और विश्वास

काफी वर्षों पहले की बात है, जब मैं झुंझुनु जिले के चिड़ावा कस्बे में सहायक अभियंता विद्युत मंडल में सेवारत था। वहाँ एक पहले अघोड़ी बाबा श्री गजेश नारायण जी रहते थे। जो दिनभर बाजार में घूमते बैठते तथा वहाँ रात्रि विश्राम करते थे। वे मैले, फटे कपड़े पहनते, दाढ़ी मूछें बढ़ी हुई, न स्नान व न सफाई का ध्यान रखते थे। उनके पास एक मिट्टी का बड़ा कुल्लड़ रखते थे। जो भी भिक्षा मिलती उसी कुल्लड़ में लेकर खाते। जब वे पेशाब करते तब उस क्षेत्र में गुलाब की सुगंध पैदा होती थी। लोग बताते थे कि जब वे मल त्यागते तो चारों तरफ केसर की सुगंध प्रवाहित होती। उनके आत्मा को सीधा सम्पर्क परमात्मा से था, ऐसी लोगों में आम धारणा थी ।
कहते हैं कि एक दिन सीकर के ठाकुर के पुत्र चिड़ावा बाजार में अपने घोड़े पर बैठकर निकल रहे थे। उन्होंने वहाँ बाबाजी का सड़क पर देखा तो तिरस्कृत दृष्टि से हटने को कहा। जब वे शाम को सीकर पहुँचते तो उनके पेट में असहनीय दर्द शुरू हो गया कि उनको हॉस्पिटल में ले जाया गया। डॉक्टर ने चैक कर बताया सुबह इनके पेट का ऑपरेशन करना पड़ेगा। जैसे-तैसे दवाईयाँ लेकर रात निकाली। सुबह उनकी माताजी ने पूछा कि चिड़ावा में ऐसी क्या चीज खाई, जिससे यह गड़बड़ हुई। लड़के ने बताया कि बाजार में एक अघोड़ी बाबा मिले थे, उनसे मैंने अभद्र व्यवहार किया था। माताजी ने कहा वे देवता रूप में बाबा हैं, तुम उनका ध्यान कर माफी मांगते रहो। उनके लड़के ने वैसे ही किया और उनका भयंकर दर्द धीरे-धीरे छुमन्तर हो गया। डॉक्टर ने बाद में देखकर बताया कि अब ऑपरेशन करने की जरूरत नहीं है।
एक और मामला बाबाजी के चमत्कार का सुना था। श्री घनश्याम दास जी बिड़ला, पिलानी के रहने वाले साधारण परिवार से थे। वे बाबाजी के दर्शन करने के लिए पिलानी से चिड़ावा यदा-कदा आया करते थे। एक दिन बाबाजी ने उनको कलकत्ता की तरफ इशारा करके वहाँ जाकर कोई धंधा शुरू करने के लिए कहा तो बिरला जी ने वैसा ही किया और उसके बाद धंधा इतना फलीभूत हुआ कि 1975 वर्ष के मेरे प्रवास पर अपने देश के सबसे धनाढ्य व्यक्ति बन गए थे।
अब आप देखिए, उपरोक्त बाबाजी ने कितनी आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त कर ली थी। उनके देवलोक गमन के बाद चिड़ावा निवासियों ने एक शहर के बाहर एक बड़ा चबूतरा बनाकर उनकी मूर्तिमय माटी का कुल्ड समेत स्थापित कर दी थी। जिसके मैंने भी वहाँ रहते दर्शन किए थे। बाबाजी को गांठिया खाना पसन्द था अतः हर बुधवार वहाँ मेला भरता है और गांठियों का प्रसाद चढ़ाया जाता है। वहाँ की जनता को उस बाबाजी पर इतना विश्वास था कि जो भी वहाँ दर्शन के समय अपनी समस्या बताते उसका समय पर निदान हो जाता था।
इससे मैं यह सोचता हूँ कि शुद्ध मन से परमात्मा का ध्यान लगाया जाए तो इसी जन्म में परमात्मा का अकल्पनीय आशीर्वाद मिल सकता है। अब मैं आपके साथ विश्वास के बारे में चर्चा करता हूँ। शुरू में मेरी शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई थी। जब मैंने सातवीं कक्षा में प्रथम स्थान पाया तो मेरे चाचाजी ने अपनी घड़ी उपहार में मुझे दी थी। उस समय अध्यापकों को बहुत आदर दिया जाता था तथा उस जमाने में घड़ी विलासिता की वस्तु समझी जाती थी। इसलिए अध्यापक जी के सामने हाथ पर हम बच्चे घड़ी नहीं बांधते थे।
एक दिन की बात है, मैं अपने साथियों के साथ शाम को घूमने गाँव के समीप सुकड़ी नदी के उस पार जाते थे, वहीं अध्यापक जी भी घूमने आते। मैं जाते समय अध्यापक जी को सामने देख लिया, अतः अपनी हाथ से घड़ी खोलकर जेब में रख ली जेब के नीचे एक जगह फटी हुई थी, अतः घड़ी निकलकर गिर गई। अंधेरा हो गया था। घर आकर पिताजी को बताया नहीं। हमारे गाँव में रात को भैरूजी देवता के यहाँ भौपा जी से घड़ी के बारे में पूछा। भौपा जी ने कहा बच्चे घड़ी मिल जाएगी वह सुरक्षित जगह पर है। मैं घर आकर सो गया। उस भैरूजी स्थान पर मौहल्ले का एक आदमी बैठा हुआ था। उसने वहाँ से मेरे घर आकर पिताजी को बताया। पिताजी ने जोरदार डांट लगाई। चार-पांच मौहल्ले के आदमियों को इक्ट्ठा कर पिताजी मुझे लेकर नदी की तरफ गए, लेकिन घड़ी नहीं मिली। तत्पश्चात् वापिस नदी को पार कर घर लौटने वाले थे, तब एक आदमी ने कहा मैं अभी लघुशंका करके आता हूँ उस दरम्यान उनको नदी के पानी के पास कांच जैसे चमकने वाली वस्तु दिखी, क्योंकि उस दिन चांदनी रात थी।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वह चमकने वाली वस्तु मेरी घड़ी थी। उस व्यक्ति ने बताया कि घड़ी का पट्टा नदी में बहते पानी में था तथा घड़ी बिल्कुल पानी के किनारे इस तरह भीपाजी के कहे अनुसार घड़ी सुरक्षित तथा चालू हालत में मिली।
कहने का तात्पर्य है कि आप किसी वस्तु / देवता में पक्का विश्वास कर लो, तो वह वस्तु मिल सकती है। इसलिए कहावत है कि जो अपने पर पूरा विश्वास कर किसी मिशन पर आगे बढ़ता है तो उसे सफलता अवश्य मिलती है।

-- ताराचन्द जांगिड (से.नि. अधिशाषी अभियन्ता) जोधपुर