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जमीन से जुड़े रहना

जब विभाग ने मुझे हरिशचन्द्र माथुर प्रशिक्षण संस्थान, जयपुर में प्रशिक्षण के लिए भेजा, उस समय उस संस्थान में हमें पढ़ाने के लिए राजस्थान विश्वविद्यालय से प्रोफेसर शर्मा आते थे। कक्षा में उनका भाषण बहुत सारगर्भित और लाभकारी होता था कि उन्हें सुनने के लिए अन्य सेवाओं के अधिकारी भी हमारी कक्षा में आते थे। वह कभी कार से कभी स्कूटर से, कभी साइकिल रिक्शा से तो कभी साइकिल से संस्थान आते थे। विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण संस्थान तक की यात्रा निरन्तर बदलते. साधनों से होकर गुजरी।
एक दिन ये कार से इंस्टीट्यूट से शहर लौट रहे थे, तब मैं बस से शहर जाने के लिए इंस्टीट्यूट से बाहर निकल रहा था। उन्होंने मुझे देखकर कार रोकी और मुझे कार में बैठने का इशारा किया। मैंने कार में ही प्रोफेसर से पूछा, “आप ज्यादातर स्कूटर, साइकिल या साइकिल रिक्शा में बैठकर संस्थान आते हैं, क्या यह कार आपके किसी दोस्त की है, जो कभी-कभी आपको दे देता होगा।" शर्मा जी हंसने लगे और बोले ये कार भी मेरी है, लेकिन हर रोज आने-जाने के साधन बदलने से मुझे खुशी मिलती है।
उन्होंने आगे बताया कि जब मैं कॉलेज में पढ़ता था तो मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। मेरे पास केवल तीन पोशाकें थीं। एक पोशाक पहनता था, इस तरह दूसरी पोशाक धोता था और तीसरी पोशाक धोकर तथा प्रेस कर तैयार रखता था। मैंने अपनी कॉलेज की शिक्षा पूरी की और वित्तीय संकट से जूझते हुए कॉलेज में प्रोफेसर बन गया। भगवान की कृपा से मुझे अमेरिका में नौकरी मिल गई और सात साल तक वहाँ रहकर अच्छा पैसा कमाया, फिर जयपुर वापस आ गया। उसी पैसे से उन्होंने जयपुर में घर खरीदा और ये कार भी ।
उन्होंने आगे कहा- मुझे पुराना समय याद है, इसलिए मुझे कठिन परिस्थितियों का सामना करने में मजा आता है। इसलिए मैं आपके संस्थान में आने के लिए हमेशा अपने साधन बदलता रहता हूँ। समय बहुत बलवान है, यह राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है। इसलिए केवल एक ही साधन पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। शायद जैसे मैं नीचे से ऊपर चढ़ गया, लेकिन दुर्भाग्य से अगर ऊपर से नीचे गया तो तद्अनुसार खुद को ढालने में कोई दिक्कत नहीं होगी, तभी जीवन सार्थक है। श्री शर्मा जी धन्यवाद के पात्र हैं, जिनके जीवन से प्रत्येक को व्यक्ति प्रेरणा लेनी चाहिए।

-- ताराचन्द जांगिड (से.नि. अधिशाषी अभियन्ता) जोधपुर