ऐसे सज्जन पुरुष विरले ही
मेरा बचपन गांव में बीता और स्कूली शिक्षा गांव के पाठशाला में हुई। सन् 1959 में जब मेरा दाखिला जोधपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ, तो प्रथम बार शहर में रहने का मौका मिला। घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि कॉलेज के हॉस्टल में रह सकूँ। तब मेरे चाचाजी ने जोधपुर आकर उनके जान पहचान वाले शर्मा जी से बात कर उनके घर पर एक कमरे में रहने के लिये कहा तो स्वीकृति दे दी। वहां से साइकिल पर रोज इंजीनियरिंग कॉलेज करीब 6 किलोमीटर दूर पढ़ाई करने जाते थे। पूरे कॉलेज कार्यकाल में उनके घर रह कर पढ़ाई की। उन्होंने इतने वर्षों का कमरे का किराया नहीं लिया और मुझसे छोटे भाई की तरह व्यवहार किया। हालांकि मैंने भोजन व्यवस्था बाहर होटल में रख रखी थी।
पढ़ाई के बाद किस्मत से जोधपुर कनिष्ठ अभियंता के पद पर नौकरी लग गई और फिर उसी मौहल्ले में करीब 9 साल अलग मकान किराये लेकर रहा। बाद में भी उन्होंने अपार स्नेह दिया, जो कि उनके मृत्यु तक बरकरार रहा। उनकी दिवंगत आत्मा को पुन: नमन।
सन् 1970-71 में मेरा तबादला जोधपुर से जयपुर विद्युत मंडल में हो गया। सबसे पहले रहने के लिये मकान ढूंढना शुरू किया, तो शास्त्री नगर में रहने वाले पारीक साहब से परिचय हुआ, उनके मकान में दो कमरे, किचन तथा बाथरुम किराये के लिए उपलब्ध थे। किराये लेने के लिए बात की तो उन्होंने तीन शर्ते रखी- पहली, आप इस मकान के जिस हिस्से को किराये के लिए रखोगे, वह अपना समझना। दूसरी शर्त, आपके बच्चे हमारे कमरों में और हमारे बच्चे आपके कमरों में आसानी से घूम फिर सकेंगे। तीसरी शर्त, जब भी आप किराया दे तो जोर से आवाज देकर न बुलावे, जब भी मैं कमरे के बाहर आऊं तब दे दें। हमारे दोनों के कमरे एक दूसरे के सामने थे।
उनकी शर्ते आज भी मैं भूल नहीं पाया हूं। 8-9 महीने बाद सहायक अभियंता पद पर पदोन्नति हुई और अचरोल पोस्टिंग हुई, वे तो वे ही पारीक साहब हमारे लिये किराये का मकान ढूंढने के लिए अचरोल साथ चले। उसके बाद पारीक साहब का इतना प्रेम रहा कि जहां भी मेरा स्थानान्तरण होता, वे जयपुर से मिलने आते। जब भी बाहर पोस्टिंग होने पर मैं जयपुर जाता तो मैं भी उनके घर मिलने जरूर जाता। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि पैंतीस वर्ष बाद मैंने अपने छोटे लड़के की शादी जोधपुर में की तो वे जयपुर से आकर शादी में शरीक हुए। भगवान का लाख लाख शुक्रिया कि वे 86 वर्ष की आयु में आज भी मेरे साथ टेलीफोन पर बात करते रहते हैं।
सन् 1985 में अधिशाषी अभियंता, विद्युत मंडल चौमूं में सेवारत था। सन् 1986 में मेरे लड़के का दाखिला अग्रवाल कॉलेज, सांगानेरी गेट, जयपुर में हुआ। शुरू में लड़के ने चौमूं से जयपुर बस से कॉलेज आना जाना रखा लेकिन पढ़ाई में हर्जाना होने के कारण मेरे लड़के ने जयपुर में रहने के लिए, किराये पर कमरा खोजने के लिए कहा। मैं चौमूं के निवासी रामपाल जी जो जयपुर में रहते थे, उनसे किराये का कमरा लड़के के लिए ढूंढने को कहा। उन्होंने कहा, अपने लड़के को हमारे यहां शिफ्ट कर दो, मेरे पोते वाले कमरे में साथ रह जायेगा। फिर उचित जगह पर कमरा किराये पर लेकर उसे वहां शिफ्ट कर देंगे। आपको जान कर प्रसन्नता होगी कि उन्होंने मेरे लड़के को करीब डेढ़ साल अपने घर रखा साथ ही नाश्ता, खाने-पीने की व्यवस्था घर के एक सदस्य के रूप में की। मेरे काफी आग्रह के बाद भी न तो उन्होंने किराया लिया और न ही भोजन व्यवस्था के पैसे।
उन्होंने हमारे परिवार के साथ ताउम्र प्रेम रखा। उनकी दिव्यात्मा को पुन: नमन। इसलिए मैंने ठीक ही कहा, ऐसे सज्जन पुरुष बहुत कम मिलते हैं।
-- ताराचन्द जांगिड (से.नि. अधिशाषी अभियन्ता) जोधपुर