वह भी एक जमाना था
यह मामला सन् 1967-68 का है, जब मैं जोधपुर थर्मल पावर स्टेशन पर जूनियर इन्जीनियर की ड्यूटी पर था। जब श्रीमती जी अपने पीहर या अपने ससुराल गाँव में मिलने जाती, तब मैं एक होटल में खाना खाया करता था। कालान्तर में होटल मालिक से पारिवारिक सम्बन्ध हो गए थे। एक दिन उन्होंने कहा कि मेरी बहन की शादी दिल्ली में है और पिताजी ने आपको शादी में सम्मिलित होने के लिए मेरे साथ चलने को कहा है। दिल्ली देखने के लिए मैंने उनकी बात मान ली और दिल्ली चला गया। तीन-चार दिन दिल्ली देखने के बाद आगरा देखने की इच्छा हुई तो मैंने मेरे होटल वाले साथी को बताया कि अब यहाँ से आगरा जाऊँगा और वहाँ से जोधपुर पहुंच जाऊँगा।
मेरे उपरोक्त साथी ने कहा कि उस जमाने में आगरा में जेब कतरों का बोलबाला था, इसलिए उन्होंने मुझे कहा जेब कतरों से सावधान रहना, वे अच्छी पोशाक में सभ्य नागरिक की तरह व्यवहार करते हैं और मौका मिलते ही पाकेट पार।
आगरा पहुँचने पर मैंने दूसरे साथी राजू जो जोधपुर टेलीफोन एक्सचेंज में जूनियर इन्जीनियर के पद पर था, उससे टेलीफोन से सम्पर्क किया और कहा कि आगरा में कोई जान-पहचान वाला हो तो मुझे वापस फोन करो, ताकि अगर जेब कट जाए तो उससे जोधपुर आने के लिए टिकट के पैसे उधार ले सकूँ। आधे घण्टे के बाद उसका टेलीफोन पर जवाब आया कि आगरा टेलीफोन एक्सचेंज में मेरे जान-पहचान का श्री गुप्ता है उसको मैंने बोल दिया है और आप तुरन्त उसके इस नम्बर पर फोन करो।
शाम होने वाली थी, उसने टेलीफोन एक्सचेंज का पता बताया और तुरन्त उससे मिलने को कहा। मैं जैसे ही उससे मिला वह बहुत खुश हुए और मुझे अपने घर ले गए।शाम को मैं बाहर होटल पर खाना खाने के लिए जाने लगा उन्होंने रोक दिया और खाने की व्यवस्था अपने घर पर की। दो कमरों वाला किराए का मकान में हिस्सा था। एक कमरे में वह व उसकी पत्नी तथा दूसरे कमरे में मेरे सोने का इंतजाम कर दिया। रात को उसकी धर्मपत्नी धीमे से जूनियर इंजीनियर से बोली जो मैं सुन रहा था। उसने पूछा यह सज्जन व्यक्ति कौन है? उसने कहा जोधपुर से राजू जूनियर इंजीनियर का फोन आया कि मैं तुम्हारे साथ ट्रेनिंग में बुलन्दशहर साथ-साथ थे।
हालांकि मैं चार-पाँच साल में उसकी शक्ल भूल गया हूँ और यह सज्जन बिजली विभाग में जोधपुर में जूनियर इंजीनियर हैं और राजू के खास दोस्त हैं। दूसरे दिन उनको परिवार समेत अपने साले की शादी में मेरठ जाना था, इसलिए उन्होंने कहा आप इस कमरे में दो-तीन दिन आराम से ठहरना और जाते समय घर की चाबी टेलीफोन एक्सचेंज में ड्यूटी पर स्टाफ को दे देना। कितना विश्वास किया, उस आगरा वाले इंजीनियर ने।
दूसरे दिन मैं सुबह आगरा में देखने के लिए आगरे के लाल किले गया। वहाँ से ताजमहल देखने के लिए बस से रवाना हुआ तो मेरे पास दो अजनबी व्यक्ति बैठ गए और बातें करने लगे। बस से उतरने के बाद मैं अकेला ताजमहल देखने रवाना हुआ तो मुझे आभास हुआ कि ये जेब कतरे हो सकते हैं। उन्होंने कहा आप हमारे साथ ताजमहल चलिए। मैंने सोचा देखें ये कैसे पाकेट मारते हैं? ताजमहल देखने के बाद वापस लौट रहे थे तो मैंने कहा-मैं अब होटल में खाना खाने जाऊँगा।
उन्होंने कहा आप हमारे साथ ही चलें व होटल में खाना खाइए। उन्होंने खाना खिलाया और फिर मैंने पेमेंट करने की बात की तो उन्होंने कहा यह खाना आज हमारी तरफ से। खाना खाने के बाद मैंने उनसे छुटकारा पाने की दृष्टि से फतेहपुर सिकरी जाने को बोला तो वे भी मेरे साथ फतेहपुर सिकरी के लिए टैक्सी लेकर रवाना हुए, तब पता लग गया था कि एक सज्जन रेलवे में मेडिकल ऑफिसर आकोला (महाराष्ट्र) में सर्विस में है और उनका ससुराल आगरा में है और साथ में उनका साला था। मेरा प्रारंभिक आंकलन गलत निकला। शाम को वापस जोधपुर आगरा केंट से ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन पहुंचा तो वे सज्जन स्टेशन पर मुझे विदाई देने खड़े थे। बाद में साल भर तक पत्र व्यवहार चला और उनकी इच्छा थी कि वे सपरिवार अगले साल मार्च में राजस्थान के माउन्ट आबू आएंगे और आप भी सपरिवार वहाँ पर मिलेंगे। उसके बाद उनकी ट्रांसफर शायद भुसावल हो गई और फिर हम बिछुड़ गए। मुझे अभी तक यह समझ में नहीं आया कि उस डॉक्टर को मेरे लिए इतना खर्चा तथा साथ निभाने का क्या औचित्य था जबकि मैं बिल्कुल अजनबी।
पाठकगण पुराने जमाने का विश्वास और प्रेम देखकर आपको भी आनन्द की अनुभूति हुई होगी।
देखिये वह पुराना जमाना, उस जमाने की बातें, समय समय का फेर, वह भी एक जमाना था।
-- ताराचन्द जांगिड (से.नि. अधिशाषी अभियन्ता) जोधपुर