Jangid Brahmin Samaj.Com



सफलता के नियम

1. परिश्रम : दीपक के आलोक का रहस्य इस बात में निहित होता है कि वह अपने आलोक को बनाए रखने के लिए उसकी बत्ती एवं तेल को जलाता है, अर्थात् जो व्यक्ति कठिन परिश्रम करते हैं, वे निश्चित ही जीवन में सफलता को प्राप्त करते हैं। हमें सदा याद रखना चाहिए कि संघर्ष ही जीवन है और निष्कृयता मृत्यु का दूसरा नाम है। सरोवर के जल और नदी के जल में कितना अन्तर होता है, बहती नदी का जल निर्मल, आकर्षक एवं स्वादिष्ट होता है, जबकि सरोवर का जल मलिन व दुर्गंध युक्त होता है। यदि आप भी जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो नदी की भाँति सदा आगे बढ़ते रहिए ।
2. तीव्र लगन : किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दृढ़ निश्चय और तीव्र लगन की आवश्यकता है। आत्म विस्मृत्ति से जो कार्य किया जाएगा उसमें आपको सदा सफलता मिलेगी। यदि आप विचार कर रहे हैं। तो स्वयं विचार बन जाइए सफलता सदा आपके पैर चूमेंगी।
3. त्याग और बलिदान कोई भी कार्य में सफल होने के लिए हमें त्याग एवं बलिदान की आवश्यकता है, यदि कुछ पाना चाहते हैं तो कुछ देना सीखिए एक विशाल वृक्ष बनने के लिए बीज को अपने आपसे मिटना पड़ता है। सम्पूर्ण आत्म बलिदान का परिणाम ही हमें फल मिलते हैं।
मिटा दे अपनी हस्ती को अगर तू मर्तबा चाहे,
कि दाना खाक में मिलाकर गुले गुलजार होता है।
4. आत्म निर्भयता : भीरूता मृत्यु के समान है, अतः इससे अपने को दूर रखिए। निर्भय व्यक्ति असम्भव को सम्भव बना देता है। आपकी साहसिक प्रवृत्ति शेर को भी वश में कर लेती है। बड़े से बड़े शत्रु को शांत कर सकती है। याद रखिए नीडरता के सामने बड़ी से बड़ी आपत्ति भी टिक नहीं सकती।
5. स्नेह एवं सहानुभूति दूसरों के प्रति सदा अपने हृदय में सहानुभूति रखिए जब आप किसी को प्यार देंगे तो दूसरा भी आपको प्यार देगा, स्नेह देकर ही स्नेह की प्राप्ति होती है।
6. आत्म विश्वास सफलता का मूलाधिकार आत्म विश्वास और आत्म निर्भरता पर टिका है। सफल जीवन की यदि कोई परिभाषा है तो वह है आत्म विश्वास। भगवान उसी की सहायता करते हैं जो अपनी स्वयं सहायता करते हैं।
7. प्रफुल्लता प्रत्येक अवस्था में मनुष्य को प्रसन्नचित्त रहना चाहिए। वह व्यक्ति जो सदा प्रसन्न रहता है, बड़ी से बड़ी आपत्ति आ जाने पर भी उसके मुख मण्डल पर बराबर प्रसन्नता बनी रहती है, जो कभी भी और कैसे भी वातावरण में दुःखी और निराश नहीं होता, वह सदा आनन्दमयी प्रवृत्ति से खुद को लाभ पहुँचाता है और उन व्यक्तियों को भी प्रेरणा देता है, जो अपना धैर्य खो चुके हैं। जिनकी आशा निराशा में बदल चुकी होती है, जो अपने को बेसहारा समझने लगते हैं। प्रसन्नचित्त व्यक्ति अपने जीवन का पासा पलट लेता है। ऐसा व्यक्ति असाधारण होता है। जो व्यक्ति प्रसन्न चित्त नहीं रहते वे अपने से मिलने वाले प्रत्येक व्यक्ति के मन में अंधकारमय और निराशा जनक विचार पैदा करते हैं।
परमात्मा की भी इच्छा है कि उसके रचित सब मानव प्रसन्नचित्त रहें। सच तो यह है कि जिस प्रकार व्यक्ति को किसी दूसरे को चोट पहुँचाने का अधिकार नहीं है, उसी तरह आपको भी यह अधिकार नहीं है कि आप किसी भी प्रकार से दूसरों के सुखों पर पानी फेर दें अथवा अपनी मनहूसियत से उनकी आनन्दमयी प्रकृति पर उदासी फेरने का प्रयत्न करे। इसलिए सफलता प्राप्त करने के लिए हमें सदा प्रफुल्लित रहे, कठोर परिश्रम करें, त्याग और बलिदान की भावना रखें, आपको सदा सफलता ही सफलता मिलेगी।

-- रोहिताश्व जांगिड (से.नि. वरि. अध्यापक), कोटपूतली