सभी प्राणियों में भगवान विराजमान हैं
जितने भी चराचर प्राणि हैं, सबके अन्दर अन्तर्यामी रूप में भगवान विराजमान हैं। भगवान ही उन सब रूपों में प्रकट हैं। एतएव उनकी सेवा करना, उन्हें सुख पहुँचाना और उनका हित करना हम सबका धर्म है। यदि तुम जगत् के प्राणियों से द्वेष द्रोह करते हो, कठोर वचन कहकर उन्हें मर्म-पीड़ा पहुँचाते हो, क्रोध तथा अभिमान के वश में होकर उनका अपमान तिरस्कार करते हो एवं कामना और लोभ के फंदे में पड़कर उनका स्वत्व हरण करते हो तो तुम्हारे बाहरी पूजन और दान से भगवान कभी प्रसन्न नहीं होंगे।
यदि तुम अनाथों और असमर्थों को डराकर या फुसलाकर अनुचित लाभ उठाते हो, सत्ता वैभव और पद के प्रभाव से गरीब पड़ोसियों के घर द्वार छीनते हो एवं अधिकारियों के साथ षड़यंत्र करके सरल हृदय के लोगों को ठगते हो, तो तुम्हारी पद मर्यादा थोथे धर्मापनापन से भगवान कभी प्रसन्न नहीं होंगे। यदि तुम छल-कपट करके लोगों का धन लूटते हो, मीठे बोल बोलकर दूसरों को धोखा देते हो, अपने अधिकार एवं शक्तियों का प्रयोग करके गरीबों और असहायों को दबाते हो तुम्हारे बाहर के आडम्बर से भगवान कभी प्रसन्न नहीं होंगे।
यदि तुम अपने मन में दम्भ दर्प, वैर-विरोध, क्रोध, हिंसा, अभिमान गर्व, छल-कपट और रागद्वेष आदि भी रखते हो और ऊपर से साधु बने रहते हो तो भगवान तुम्हारी उस कृत्रिम साधुता से और तुम्हारी उपदेश भरी शास्त्र वाणी से प्रभु प्रसन्न नहीं होंगें। यदि तुम विधवाओं, गरीबों के धन को धोखे से हड़प जाते हो, उनका अपमान-तिरस्कार करते हो उनके साथ बुरा व्यवहार करते हो, भगवान तुम्हारे तिलक मालाओं से प्रसन्न नहीं होंगे।
भगवान की प्रसन्नता के लिए बाहरी आडम्बरों की आवश्यकता नहीं है। किसी प्रकार के स्वांग रचने की और साधु का रूप धारण करने की आवश्यकता नहीं है। भगवान को प्रसन्न करने के लिए निर्मल मन जिसमें अहिंसा, सत्य, अलोभ, संतोष, दया, वैराग्य, प्रेम, अपरिग्रह, नम्रता, श्रद्धा आदि देवीय गुण भरे हो और सबसे प्रधान रूप में चाहिए भगवान के प्रति मन में विशुद्ध भक्ति के भाव। मानव जीवन बहुत थोड़े काल के लिए प्राप्त हुआ है और भगवान को प्रसन्न कर उन्हें प्राप्त करने के लिए हुआ है। यदि यह कार्य इस जीवन में नहीं बन पड़ा और विषय विलास में ही जीवन व्यतीत कर दिया तो केवल जीवन की व्यर्थता ही नहीं होगी, बल्कि महान पाप का संग्रह भी होगा, जो अंतकाल तक दुःख देता रहेगा।
-- रोहिताश्व जांगिड (से.नि. वरि. अध्यापक), कोटपूतली