ईश्वर की दया और प्रेम असीम है
ईश्वर की दया और प्रेम अपार है और असीम है। यह बात मन में है, तो ईश्वर की स्मृति निरन्तर रहनी चाहिए। ईश्वर दयालु है एवं प्रेमी है। उनकी दया और प्रेम से सब स्थान परिपूर्ण हैं अणु-अणु में उनकी दया और प्रेम देखकर हमें मुग्ध होना चाहिए। हर समय प्रसन्न रहना चाहिए। इसमें न कुछ परिश्रम है और न किसी चीज की आवश्यकता है। जैसे बादल में सब जगह जब परिपूर्ण है, वैसे ही सब जगह ईश्वर का प्रेम सब जगह परिपूर्ण है। ईश्वर परम सुहृदय है। दया और प्रेम जिसमें हो, उसका नाम सुहृदय है। उसकी दया और प्रेम अनन्त है।
हर समय हमारे में यह भाव होना चाहिए कि ईश्वर की हम पर कितनी दया है। जब इतनी दया है तब हमको भय, चिन्ता, शोक करने की क्या आवश्यकता है। हम भय-चिन्ता करें यह तो हमारी मूर्खता है। कोई स्थान उनकी दया और प्रेम से खाली नहीं है। ईश्वर की दया सर्वत्र है। सर्वत्र उनके प्रेम की छटा छा रही है। फिर हम क्यों भय करें। वे प्रेम के महान् समुद्र हैं, उसमें हम डूबे हुए हैं। तुलसीदास जी कहते हैं:-
हरि व्यापक सर्वत्र समाना। प्रेम ते प्रगट होहिं मैं जाना ।।
हरि सब जगह है। वे प्रेममयी हैं वे प्रेम से ही प्रकट होते हैं। यदि हम भगवान का भजन करें, सत्संग करें तो आगे जाकर हमारा कल्याण हो सकता है। यह बात पूर्णतया सत्य है कि परमेश्वर रंक को राजा, राजा को रंक, धनी को निर्धन और निर्धन को धनी बना देता है। परमेश्वर सभी को उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। जो मनुष्य जिस प्रकार के कर्म करता है, उसी प्रकार के फल उसे प्राप्त होते हैं। परमेश्वर कर्मों के आधार पर ही राजा को रंक एवं रंक को राजा बना देता है और निर्धन मनुष्य को धनी बना देता है। इसका तात्पर्य यह है कि मनुष्य को सदैव अच्छे कर्म ही करने चाहिए।
यदि कोई मनुष्य पहले से धनी है तो उसे यह नहीं समझना चाहिए कि वे सदा सम्पन्न ही बने रहेंगे, बुरे कर्म करने पर धन नष्ट भी हो सकता है। इसलिए मनुष्य को सदा शुभ कर्म ही करने चाहिए। जब मनुष्य विभिन्न प्रकार के संकटों से घिर जाता है तो वह चिंतित हो जाता है। ऐसा संकट आने पर भी मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए और निरन्तर परिश्रम करते रहना चाहिए, क्योंकि वह ईश्र ही सभी प्राणियों की देखभाल करता है, जब किसी मादा प्राणी के सन्तान का जन्म होता है, तो जन्म का साथ ही उसकी माता के स्तनों में दूध बनने लगता है। इस प्रकार से प्राणी के जन्म के समय ही भोजन की व्यवस्था परमेश्वर कर देता है। इसलिए हम पर कितने भी संकट आए हमें घबराने की आवश्यकता नहीं है, मन में ईश्वर के प्रति श्रद्धा- विश्वास रखो। ईमानदारी और परिश्रम से कार्य करते रहे आपके संकट अवश्य ही परमेश्वर दूर कर देंगे।
-- रोहिताश्व जांगिड (से.नि. वरि. अध्यापक), कोटपूतली