क्षमा गुणवानों का भूषण है
विदुर नीति में 'क्षमा गुणवता बलम्' कहा गया है। हम सभी को शिक्षा देते हैं कि क्षमा करना निर्बलता नहीं बल्कि दृढ़ता का प्रतीक है। क्षमा बड़प्पन है, क्षमा गुणवानों का भूषण है। अतः अपनी मूल त्रुटि के लिए क्षमा याचना करना और सभी प्रकार की भूल त्रुटि के लिए उन्हें क्षमा करना दोनों ही श्रेयकर है। 'पर्युषण' जैन धर्म का प्रमुख पर्व है। पर्युषण का अर्थ है उपासना । यह उपासना दस दिनों तक दस गुणों के माध्यम से सम्पन्न होती है। दस गुणों में प्रथम क्षमा ही है। क्षमा करना जीवन का एक महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक अंग माना गया है।
वास्तव में मनुष्य का सबसे बड़ा आभूषण क्षमा है। क्षमा मनुष्य का आभूषण उसका रूप है, रूप का आभूषण गुण है, गुण का आभूषण ज्ञान है और ज्ञान का आभूषण है 'क्षमा' अर्थात् क्षमा ही सर्वोपरि आभूषण है। स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा है कि यदि तुममें क्षमा नहीं है, पर सारी दुनिया की विद्या है तब भी विद्या तुम्हारा कल्याण नहीं कर सकती । ईसाई धर्म में भी क्षमा को प्रमुख स्थान दिया गया है। क्षमा को मानस तीर्थों में एक तीर्थ माना गया है। स्कन्द पुराण में कहा गया है कि सत्य तीर्थ है, क्षमा तीर्थ है, इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना भी तीर्थ है, सब प्राणियों पर दया करना तीर्थ है, सब प्राणियों पर दया करना तीर्थ है और सरलता भी तीर्थ है।
क्षमा का विरोधी है क्रोध । क्रोध दूसरे की हानि अधिक करता है, क्रोध पर विजय और क्षमा की प्रतिष्ठा होना सामान्य बात नहीं है। भारतीय संस्कृति क्षमाशील ऋषि-मुनियों की गाथा से भरा पड़ा है। महाराज युधिष्ठिर साक्षात् क्षमा की मूर्ति थे। क्रोधी मनुष्य पाप कर सकता है, क्रोध के वशीभूत मनुष्य कुछ भी कर सकता है, इसलिए साधु पुरुष क्रोध को जीतने की प्रशंसा करते हैं। इस जगत् में जो क्षमाशील है उसी की विजय होती है। क्षमाशील मनुष्य की विशेष महिमा शास्त्रों में प्रतिपादित की है। क्षमा की महिमा का वर्णन करते हुए विद्वानों ने कहा है क्षमा ही धर्म है, क्षमा ही सत्य है, क्षमा ही दान है, यश और स्वर्ग की सीढ़ी है।
क्षमा धर्मः क्षमा सत्यं क्षमा दानं क्षमा यशः । क्षमा स्वर्गस्य सोपान मिति वेदविदो विदुः ॥ रहीम जी का एक दोहा है:-
क्षमा बडेन को चाहिए छोटन को उत्पात।
कह रहिम हरि का घटयो जो भृगु मारी लात ।।
भगवान विष्णु की विनम्रता और क्षमादान से महर्षि भृगु बहुत ही लज्जित हुए, क्षमादान का ऐसा अनुठा उदाहरण अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। शुक्रनीति में कहा गया है कि 'सम्पूर्ण गुणों से युक्त राजा भी क्षमा रहित हो तो उसकी शोभा नहीं होती । क्षमाशील पुरुष का कोई भी बुरा नहीं कर सकता, इसलिए कहा गया है 'क्षमाहि परमं बलम् विदुर नीति' । क्षमा बहुत बड़ा बल है। क्षमा के समान हितकर और श्री सम्पन्न बनाने वाला उपाय दूसरा नहीं है। हमें महापुरुषों के जीवन चरित्रों को पढ़ना चाहिए और उनकी शिक्षाओं की अपने जीवन में अमल करना चाहिए। यही सभी का परम कर्तव्य है। उर्दू के एक प्रसिद्ध शायर का कथन है:-
रोक लो गर गलत चले कोई। बक्श दो गर खता करे कोई।।
-- रोहिताश्व जांगिड (से.नि. वरि. अध्यापक), कोटपूतली