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द्रौपदी चीर हरण

इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब मातृ शक्ति का अपमान किया गया अथवा उन पर घोर अत्याचार किया है, तब-तब 'मानव' और 'दानव' वर्ग के मध्यम भीषण संग्राम हुआ है। भारत में महाभारत एवं 'राम-रावण' युद्ध इस बात के ज्वलन्त उदाहरण हैं। राज्य के लोभ में राजा धृतराष्ट्र-पुत्र दुर्योधन ने दुशासन द्वारा मातृशक्ति पाण्डव पुत्रवधु 'द्रौपदी' का चीर हरण किया गया। इसी कारण कौरवों और पाण्डवों के बीच महाभारत का युद्ध हुआ तथा पूजनीय मातृशक्ति 'सीता माता हरण के कारण 'राम-रावण' संग्राम हुआ।
राजा धृतराष्ट्र नेत्रहीन थे। अतः उनके छोटे भाई पाण्डू राजा बन गए। उनके पाँच पुत्र थे- युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव । वे सभी शूरवीर एवं गुण सम्पन्न थे। धृतराष्ट्र के एक सौ (100) पुत्र थे, जिनमें दुर्योधन सबसे बड़े थे। राजा धृतराष्ट्र की पत्नी गंधारी भी अपनी आँखों पर पट्टी बाँधे रखती थी। धृतराष्ट्र के पुत्र 'कौरव' तथा पाण्डू के पुत्र 'पाण्डव' कहलाते थे। इन सबमें युधिष्ठिर सबसे बुद्धिमान थे। कहा जाता है कि गुरु द्रोणाचार्य ने एक बार इनकी परीक्षा ली, जिसमें सभी उत्तीर्ण हो गए। लेकिन युधिष्ठिर इन सबसे बुद्धिमान होते हुए भी परीक्षा में असफल हो गए। गुरुवर द्रोणाचार्य को बड़ा आश्चर्य हुआ । उन्होंने युधिष्ठिर को अपने पास बुलाकर पूछा कि क्या बात है कि तुम असफल कैसे हो गए? इस पर युधिष्ठिर ने प्रत्युत्तर में कहा गुरुदेव ! मैं पुस्तक के सर्वप्रथम पाठ “सदा सत्य बोलो" से आगे नहीं पढ़ पाया।
क्योंकि मैं उस समय तक पूर्ण रूप से सत्य भाषी नहीं बन पाया था। कभी-कभी असत्य भी बोलना होता था। इस कारण से मैं इस पाठ से आगे के पाठों के सही उत्तर नहीं दे पाया। यह सुनकर श्री द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर की पीठ थपथपाई और कहा 'तुम धन्य हो'। अतः युधिष्ठिर 'सत्यवादी' कहलाए। 'भीम' बड़ा बलवान था । वह कुश्ती में सबको पछाड़ देता था। अर्जुन धनुर्विद्या में सर्वाधिक प्रवीण था। नकुल और सहदेव भी बुद्धिमान और शूरवीर थे। इस प्रकार पाण्डवों से दुर्योधन को बड़ी ईर्ष्या थी और वह उनसे सदा भयभीत रहता था। वह 'राजा' बना रहना चाहता था। इन सभी कारणों से 'महाभारत' का महान् युद्ध हुआ ।
भगवान श्री कृष्ण पाण्डवों के पक्ष में थे। वे पाण्डवों के 'मामा' थे। दूसरे पाण्डव गुणवान और देव प्रकृति के थे। अतः उन्होंने महाभारत के संग्राम में पाण्डवों का साथ दिया, जिसमें पाण्डव विजयी रहे।
यहाँ विशेष ध्यान में रखने की बात यह है कि कौरवों और पाण्डवों के समय में सत्ययुग था । अतः उस समय सत्यपुरुषों की संख्या की तुलना में असत्यवादी, दुराचारी, दुष्ट पुरुषों की संख्या कम थी। लेकिन आज हम 'कलियुग' में रह रहे हैं। इसीलिए अनेक दुर्योधन एवं रावण हो गए हैं, जिनके घृणाष्पद कारनामों से समाचार पत्र भरे रहते हैं। उस समय तो केवल एक द्रौपदी चीर हरण की कथा ही प्रचलित रही।
लेकिन आज अनेकों द्रौपदियों का नित्य प्रतिदिन चीर हरण होता है, शोषण होता है और शोषण के पश्चात् उनका घृणित रूप से वध तक कर दिया जाता है, सर्व विदित है।
द्रौपदी चीर हरण के समय द्रौपदी ने भगवान श्री कृष्ण की पुरजोर से पुकार की। उसकी करुणामयी चित्कार भरी पुकार पर भगवान श्री कृष्ण ने अपनी योग माया के बल पर द्रौपदी का चीर (साड़ी वस्त्र ) इतना बढ़ाया कि उस साड़ी को खींचते खींचते दुशासन थक गया और द्रौपदी का चीर हरण नहीं हो सका । हमारे पावन गीता शास्त्र (श्रीमद्भगवद्गीता) अध्याय चतुर्थ श्लोक 7-8 में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।। (4/7)
अर्थात् हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने रूप को रचता हूँ। अर्थात् साकार रूप से लोगों के सामने प्रकट होता हूँ।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। (4 / 8)
अर्थात् साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए और पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए 'मैं' युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ।
इस दृष्टि से ऐसा लगता है कि आज के घोर कलियुग में भगवान का अवतार अवश्य होगा। तभी आतंककारी शक्तियों का विनाश होगा। आज विश्व में यहूदियों और कट्टरपंथी आतंककारियों (हमास एवं हिजबुल्लाह युद्ध) चल रहा है। भगवान की अवधारणा से साधु पुरुषों (यहूदी) की विजय निश्चित है, जैसा कि इजराइल (एक मात्र यहूदी राज्य जो चारों ओर कट्टरपंथी आतंककारी मुस्लिम राज्यों से घिरा है।) के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने हुंकार भरी है।
निष्कर्ष : यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता ।
अर्थात् : नारी शक्ति का मान होता है तथा पूजा होती है, वहाँ देवता रमण करते हैं।

-- प्रो. बी.पी. पथिक (जांगिड) ब्यावर (राज.)