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भारतीय संस्कृति

'संस्कृति' और 'सभ्यता' दो भिन्न विचारधाराएं हैं। लेकिन दोनों में गहरा सम्बन्ध है। खान-पान, वेश-भूषा एवं रहन-सहन दोनों के अन्तर्गत आते हैं। हम क्या खाते हैं? दाल-रोटी, हलवा-पुड़ी, साग-भाजी एवं मिष्ठान ये सब 'सभ्यता' के अन्तर्गत आते हैं। इसके विपरीत हम कैसे खाते हैं? देव को अर्पित कर, गाय, कुत्ते की रोटी अलग रखकर स्वच्छ स्थान पर आसन लगाकर तथा शान्ति पूर्वक जो भोजन करते हैं, वह संस्कृति है। इसी प्रकार हम क्या पहनते हैं? धोती-कुर्ता, साफा, साड़ी इत्यादि। यह सभ्य लोगों की वेशभूषा मानी जाती है। इसके विपरीत किस अवसर पर हम कौन से वस्त्र धारण करते हैं। विवाह के समय, लोकाचार्य जाते समय, किसी सभा में जाते समय ये संस्कृति के अन्तर्गत आते हैं।
प्राचीन समय में भारत विश्व का गुरु कहा जाता था। नालन्दा एवं तक्षशिला भारत में विश्वविख्यात विश्वविद्यालय थे। जहाँ सुदूर देशों के शिक्षार्थी विद्याध्ययन हेतु आते थे। विश्व के बड़े-बड़े विद्वानों के आध्यात्मिक विषयों पर वाद-विवाद एवं शास्त्रार्थ होते थे। ऐसा फाहयान एवं ह्वानच्चांग आदि चीनी यात्रियों ने वर्णन किया है।
महात्मा मोहनचन्द-कर्मचन्द गाँधी बेरिस्टर बने। वे भारतीय वेशभूषा धोती-कुर्ता, साफा पहनकर ब्रिटिश न्यायालय में किसी महत्त्वपूर्ण मुकदमें के सम्बन्ध में बहस करने गए। उनको न्यायालय में प्रवेश नहीं करने दिया गया। उनको कहा पेन्ट-कोट व टाई लगाकर आओ। इस प्रकार वे भारतीय संस्कृति की अवहेलना करना सहन नहीं कर पाए और अपने आवास पर लौट आए। ऐसे ही उदाहरण लोकमान्य तिलक एवं गोखले के हैं। वे दोनों महाराष्ट्रीयन थे। वे सदा धोती-कुर्ता एवं सिर पर मराठी पगड़ी धारण किया करते थे। सत्यम् शिवम् सुन्दरम् (Truth, Beauty and Goodness) भारतीय संस्कृति के शाश्वत् मूल्य माने जाते हैं।
पाण्डवों के ज्येष्ठ भ्राता-युधिष्ठिर सत्यवादी थे। एक समय गुरु द्रोणाचार्य ने कौरवों और पाण्डवों की परीक्षा ली। उसमें युधिष्ठिर को छोड़ सभी विद्यार्थी सफल हो गए। इस पर गुरु द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को अपने पास बुलाया और उनसे पूछा प्रिय युधिष्ठिर तुम असफल क्यों हो गए? जबकि तुम सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी हो। युधिष्ठिर ने उत्तर दिया गुरुदेव! मैं रात भर पुस्तक का पहला सदा सत्य बोलो पढ़ता रहा, लेकिन मैं अभी तक सदा सत्य सत्य नहीं बोल पाता हूँ। इसलिए मैं आगे के सभी पाठ नहीं पढ़ सका। इसलिए मैं इस परीक्षा में असफल हो गया। यह उत्तर सुनकर गुरु द्रोणाचार्य अवाक रह गए। उन्होंने युधिष्ठिर की पीठ थपथपाई।
विद्वान मनिषियों ने सुन्दरम् शब्द का अर्थ बतलाया है। सुन्दर वह है जो सुन्दर कार्य करे। इसके अनुसार सुन्दर व्यक्ति वह नहीं है, जो सुन्दर दिखाई दे। सुन्दर कर्म करने वाला व्यक्ति ही वास्तव में सुन्दर होता है।
शिवम् अर्थात् कल्याणकारी। जो मनुष्य प्राणी मात्र के हित में जैसा कि श्रीमद्भगवदगीता में अनेक बार वर्णन किया गया है। 'सर्वभूत हिते रता' (प्राणी मात्र का हित करने वाला) कार्य करता है वह शिवम् गुण को धारण करता है। गीता अध्याय दो, श्लोक सप्तम्,
कार्पण्यदोषोपहत स्वभावः...शाधिमां त्वां प्रपन्नम्।। 2.711
अर्थात् भगवान् श्री कृष्ण से अर्जुन अपने धनुष-बाण रथ में रखकर रथ से नीचे उतर कर प्रश्न करता है - कायरता रूप दोष से उपहत हुए स्वभाव वाला तथा धर्म के विषय में मोहित चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ जो साधन निश्चित कल्याण कारक हो वह मेरे लिए कहिये, क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ। इसलिए आपके शरण हुए मुझको शिक्षा दीजिए।
इस प्रकार अर्जुन नर संहारक युद्ध से मुँह मोड़कर केवल अपना कल्याण चाहता है। यह है 'शिवम्' का उदाहरण।
महात्मा गाँधी ने सत्य को ईश्वर माना है। वे कहते हैं सत्य ईश्वर है और ईश्वर सत्य है। न्यायालयों में भी अभियुक्त को अपना बयान देने से पूर्व गीता पर हाथ रखवाया जाता है और कहा जाता है कि गीता पर अपना दाहिना हाथ रखकर कहो मैं जो कहूँगा सत्य-सत्य कहूँगा। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ की रचना की, जिसमें असत्य एवं पाखण्ड का तिरस्कार करते हुए स्वामीजीने केवलसत्य पर ही प्रकाश डाला है।
अत: हमें अपने बालक-बालिकाओं में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करना चाहिए। सदाचार एवं सद्गुणों के संस्कारों के द्वारा ही मनुष्य के जीवन में निखार आता है। जैसा कि किसी विद्वान ने कहा है संस्कृति मनुष्य के व्यक्तित्व में निखार लाती है। (Culture refines the personality of man).
संस्कार निर्माण हेतु शिक्षा के दो साधन हैं - औपचारिक और अनौपचारिक। परिवार और समाज शिक्षा के अनौपचारिक साधन हैं तथा विद्यालय शिक्षा का औपचारिक साधन है।
निष्कर्ष : उपरोक्त तथ्यात्मक निरुपण से यह निष्कर्ष निकलता है कि भारतीय संस्कृति एक उच्च कोटि की आदर्श संस्कृति है। अत: हमें सदा अपनी वेशभूषा, खान-पान, रहन-सहन एवं परम्पराओं की रक्षा करते हुए उसका पालन करना चाहिए।

-- प्रो. बी.पी. पथिक (जांगिड) ब्यावर (राज.)