जांगिड समाज की गौरव गाथा
बड़े गर्व एवं सौभाग्य की बात है कि हम श्री विश्वकर्मा वंशीय जांगिड ब्राह्मण समाज के वंशज हैं। जांगिड समाज की अपनी एक लम्बी गौरव गाथा है, जो सृष्टि के आदिदेव भगवान श्री विश्वकर्मा एवं अथर्ववेद के रचयिता श्री अंगिरा ऋषि जैसे महान् ऋषिकुल से आरम्भ होकर सुरसरि (गंगा) की पावन धरा के रूप में अबाध गति से निरन्तर प्रवाहित होती चली आ रही है।
हमारे लिए सर्वप्रथम गर्व की बात यह है कि श्री विश्वकर्मा जी की असीम कृपा से जांगिड समाज को निम्नलिखित वरदान प्राप्त है:
कुशाग्र बुद्धि एवं प्रतिभा के धनी :
1. जांगिड वंशीय बालक-बालिकाएं शिक्षा के प्रायः सभी क्षेत्रों में सर्वोत्तम स्थान प्राप्त करते हैं।
2. शिल्प कला, चित्रकला, वास्तुकला एवं मूर्तिकला में अनुपम दक्षता प्राप्त।
पंढरपुर का विठोवा मन्दिर, काशी का विश्वनाथ मन्दिर, गुजरात में सोमनाथ का मन्दिर, त्रिवेन्द्रम का पद्मनाभ मन्दिर, द्वारिकापुरी का रणछोड़ मन्दिर, जगन्नाथपुरी का पुरुषोत्तम मन्दिर, एलोरा की गुफाएं एवं मन्दिर, जैसेलमेर बीकानेर एवं डीग (भरतपुर) के कलात्मक राजमहल आदि अनेकानेक अनुपम कलात्मक भवन निर्माण जांगिड समाज की देन है। इसके अतिरिक्त अग्नि का आविष्कार, विमान विद्या, दूरवीक्षण आदि यंत्रों का निर्माण, शिल्प विद्या एवं वास्तु शास्त्र की रचना आदि विश्वकर्मा वंशजों की ही देन है।
दूसरी गर्व की बात यह है कि हम कर्मयोगी ब्राह्मण हैं जो हर प्रकार से आत्मनिर्भर हैं। अत: हमारे जांगिड समाज में कोई भिखारी नहीं मिलता। उनका हाथ सदा ऊपर ही रहता है, नीचे कदापि नहीं। इस सम्बन्ध में गोस्वामी तुलसीदास महाराज ने ठीक ही लिखा है:
"तुलसी कर पर कर करै, करतल कर न करे। जा दिन करतल कर करे, वा दिन मरण करै।।"
श्री तुलसीदास कहते हैं कि मनुष्य को सदा हाथ के ऊपर हाथ रखना चाहिए। उसे कभी भी हाथ के नीचे हाथ नहीं रखना चहिए। जिस दिन वह हाथ के नीचे हाथ रखेगा, उस दिन उसका मरण हो जाएगा।
तीसरे जांगिड समाज वृहद् समाज को जोड़ने वाली कड़ी है। अर्थात् जांगिड समाज वृहद् समाज का केन्द्र बिन्दु है। भारत गाँवों का देश है, क्योंकि इसकी अधिकांश आबादी गाँवों में ही बसती है। गाँवों में ख्याति प्राप्त जांगिड ब्राह्मण (खाती) की 'खतौड़' (कार्यशाला) गाँव का प्रमुख केन्द्र स्थल होता है जहाँ सभी जातियों के लोग-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, किसान एवं अन्य कर्मयोगी समाज-सोनार, दर्जी, लौहार, कुम्हार (प्रजापति) आदि एकत्र होते हैं, क्योंकि गृह-निर्माण एवं कृषि यंत्र आदि का निर्माण ‘खतौड़' में ही होता है।
दूसरे रात्रि के समय 'खतौड़ ही गाँव का हथाई केन्द्र' होता है जहाँ गाँव के लोग लकड़ियाँ जलाकर उसके इर्द-गिर्द बैठकर अनेकानेक विषयों पर हथाई (चर्चा) करते रहते हैं। कहाँ पर क्या घटना घटित हुई? कृषि की क्या स्थिति है ? गाँव से कौन किस व्याधि से पीड़ित है? गाँव की प्रमुख समस्याएं क्या हैं? ग्राम विकास के क्या साधन उपलब्ध हैं ? ग्राम पंचायत एवं सरकार की क्या योजनाएं एवं व्यवस्थाएं हैं? इत्यादि विषयों पर हर रोज, एक अति सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में, चर्चाएं होती हैं तथा कहानियों व पहेलियों आदि से मनोरंजन भी होता रहता है।
इस प्रकार जांगिड समाज की कार्यशाला “खतौड़" वृहद् समाज को संगठित रखने वाली एक प्रमुख कड़ी का निर्वाह करती है। गाँव में हमें खाती, सुथार (सुतार), कारीगर, मिस्त्री व वणाक आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। पंजाब में जांगिड समाज को 'त्रिरवान' (त्रिहान) के नाम से जाना जाता है। 'खाती' शब्द 'ख्याति' (प्रसिद्धि) शब्द का अपभ्रंश है। 'सुथार' शब्द सूत्रधार' शब्द का अपभ्रंश है। वस्तुतः जांगिड समाज शिल्पकला, वास्तुकला एवं मूर्तिकला आदि में सदा प्रवीण एवं पारंगत रहा है। उसे अद्वितीय कलात्मक कार्यों में ख्याति मिली है। अत: उसे 'खाती' कहा जाने लगा। इसी प्रकार बृहद् समाज का केन्द्र बिन्दु एवं उसे जोड़ने वाली कड़ी होने के कारण उसे सूत्रधार (सुथार) कहा जाने लगा। अतः हमें 'खाती' अथवा 'सुथार' शब्द से सम्बोधित करने पर कभी निराश अथवा दु:खी नहीं होना चाहिए। ये शब्द तो जांगिड समाज की विशेषता के द्योतक हैं।
चौथे हमारा जांगिड समाज सदा 'सुसभ्य' एवं 'सुसंस्कृत' रहा है। हमारा रहन-सहन, खान-पान एवं सोच सदा 'सात्विक एवं शुद्ध शाकाहारी' रही है।
पंचम् जांगिड समाज की गोत्रावली से भी स्पष्ट प्रमाण मिलता है कि हम महान् ऋषि-मुनियों के वंशज हैं। जैसे 'वशिष्ट', 'कश्यप', 'गौतम', 'भारद्वाज', 'वात्स्य', 'वामदेव', 'मुद्गल', 'उपमन्यु' इत्यादि। अतः हम उच्च कोटि के कर्मयोगी ब्राह्मण हैं, जिसे श्री जयकृष्ण मणीठिया जी, ओमदत्त जी शास्त्री आदि विद्वानों ने न्यायालय में निम्न कोटि के मारवाड़ी ब्राह्मणों के विरुद्ध लड़ते हुए ब्राह्मण होना प्रमाणित भी कर दिया। इसमें हमें कोई संकोच अथवा भ्रम नहीं होना चाहिए।
राजनीति के क्षेत्र में भी हमारे समाज ने आगे कदम बढ़ाए हैं। वर्तमान में ही राजस्थान विधान सभा के चुनावों में हमारे सम्मानित जांगिड बन्धु 'श्री जगदीश जी जांगिड' ने भारी बहुमत से विजयी होकर, प्रमाणित किया है। पूर्व में ज्ञानी जैल सिंह ने भारत के सम्मानित राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया है।
इसके अतिरिक्त हमारे होनहार युवक-युवतियाँ भी आज उच्च सरकारी पदों पर (IAS, IPS, RAS, RPS, RIS) आसीन हैं तथा वे वृहद् समाज में अपने विशिष्ट कार्यों के लिए जाने जाते हैं। उनकी संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। वर्तमान में गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल की 185 मीटर ऊँची (विश्व में सर्वोच्च) प्रतिमा निर्माण जांगिड बंधु विश्व के सुप्रसिद्ध मूर्तिकार श्री आर.वी. सुतार द्वारा किया गया, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रपति द्वारा 'टैगोर' अवॉर्ड से सम्मानित किया गया (18 फरवरी, 2019 को)।
गुजरात के श्री सेम पित्रोदा भी हमारे जांगिड समाज के ही सपूत हैं, जो विश्व में उच्च कोटि के वैज्ञानिक एवं तकनीशियन के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनकी अद्वितीय दक्षता को ध्यान में रखते हुए, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री राजीव गाँधी ने मंत्री पद दिया और देश के तकनीकी विकास में उनका सराहनीय योगदान रहा।
हमें जांगिड समाज की विलक्षण विभूतियों पर गर्व है। जांगिड समाज सदा-सदा उपरोक्त ऋषि-मुनियों एवं विभूतियों का ऋणि रहेगा।
अत: हमें भगवान श्री विश्वकर्मा रूपी बीज को 'वर्णशंकर कारक दोष' से समाज को मुक्त रखते हुए, अक्षुण्य बनाए रखना चाहिए, ताकि भविष्य में श्री विश्वकर्मा जी के आशीर्वाद से हमारे समाज में ऐसे ही अनुपम समाज-रत्न पैदा होते रहें।
-- प्रो. बी.पी. पथिक (जांगिड) ब्यावर (राज.)