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हम कहाँ जा रहे हैं, अब हमें सुधर जाना चाहिए

जांगिड ब्राह्मण समाज में सम्पन्नता बढ़ी है। शिक्षा में हमने बहुत उन्नति की है। समाज के रहन-सहन में भी बदलाव हुआ है, हम वैभवशाली जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अनेक समाजजन उच्च पदों पर आसीन हैं। यही नहीं कई समाजजन विदेशों में भी ऊँचे पदों पर हैं। हमारा सम्पर्क भी विभिन्न समाज के प्रतिष्ठित लोगों में बड़ा है, अनेक बड़े उद्योगपति, अधिकारियों से भी हमारा सम्पर्क बढ़ता जा रहा है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि अब जांगिड ब्राह्मण समाज पहले जैसा पिछड़ा हुआ नहीं कहा जा सकता।
आज समाज के अनेक लोगों ने काफी तरक्की, विकास कर करोड़ों-अरबों रुपयों का कारोबार स्थापित कर लिया है। यह सब यूं ही नहीं हुआ है, अपनी सूझ-बूझ समझ से ही उन्नति की है। असल में देखा जाए तो अब जांगिड ब्राह्मण समाज बहत आगे की पंक्ति में आ गया है। जांगिड ब्राह्मण समाज ने देश में अपनी पहचान बनाने में भी सफलता पाई है। जांगिड ब्राह्मण समाज पहले जैसा अब नहीं रहा है, काफी आगे बढ़ चुका है। फिर भी हम रूढ़िवादिता से अभी मुक्त नहीं हमारी आपसी खींचातानी बढ़ती जा रही है। हमारे विचारों में पूर्ण रूप से शुद्धता दिखाई नहीं देती। सांप निकल जाने पर हम लाठी पीटने में जुटे हुए हैं। छोटी-छोटी बातों को तूल देकर उसी में उलझ कर रह गए हैं। जबकि हमारा दिल-दिमाग खुला होना चाहिए। दूसरे लोग हमारे बारे में क्या कहते हैं, इस पर नहीं जाकर हमें अपने अंतर्मन में झांक कर देखना चाहिए कि हमने समाज के लिए क्या किया और अब हम क्या कर रहे हैं। हमारी सोच भी समाज हित की ना होकर केवल अपने स्वार्थ तक सिमट कर रह गई है।
बढ़ते हमारे स्वार्थ स्वयं के महिमा मंडित होने के आगे समाज उत्थान संगठन की बातें अब गौण दिखाई देती है। जो चुनाव के समय में और भी बढ़कर कुंठा का रूप सामने लाती है। हमारे एनकेन प्रकारेण स्वार्थ से भरी बातें सामने आकर समाज में बिखराव पैदा करने का काम करती है। आज समाज में बहुत अधिक कटुता बढ़ गई। समाज में एक-दूसरे से प्रेम, भाईचारा, सम्मान तो दूर रहा समाज में एक-दूसरे को सहयोग देना, समाज हित की बातें करना, समाज को संगठित कर आपस में अपनापने को बढ़ावा देना तो भूल चुके हैं। उल्टे छोटी-छोटी बातों पर विवाद खड़ा कर समाज में आपसी खाई को बढ़ावा देते हैं। चुनाव के समय में यह सब बातें खूब फलती-फूलती है, जिसका प्रभाव सालों नहीं मिटता और वह समाज में आपसी वैमनस्य का रूप लेता है।
हम दूसरों की गलतियों को ढूंढने में ही अपना समय बर्बाद करते हैं। हमारी आत्म संतुष्टि के लिए हम समाज हित की बातों को नज़रअंदाज कर देते हैं। जो समाज में आपसी दूरियाँ बढ़ाने का काम करती है। अच्छा हो हम अपनी आत्म संतुष्टि को अलग रख समाज में एकता आपसी सामंजस्य बिठाने का प्रयास करें और अपने विचारों में शुद्धता लाएं। अगर किसी विषय पर आपसी मनमुटाव है तो हमें उसको मिल-बैठकर समाज हित का निर्णय लेना चाहिए ना कि अपने आत्म संतुष्टि में ही उलझकर समाज में बिखराव को बढ़ावा देवें। समाज में चुनाव के समय आपसी मनमुटाव, आत्म संतुष्टि, पुराने छोटे-मोटे विवाद उभर कर समाज में बढ़ जाते हैं, जो कटुता घोलते हैं। अच्छा हो, समाज हित में छोटी-छोटी बातों, गलतियों को नज़रअंदाज कर अपना ईगो अलग रख सिर्फ समाज संगठन, आपसी प्रेम, अपनेपन के विषय में ही विचार करें और आपस के बढ़ते मनमुटाव को भूलें, तभी समाज में एकता का संचार होगा एक दूसरे पर टीका-टिप्पणी करना छोड़ें।
समाज के लोगों में स्वार्थ, आत्म संतुष्टि, एकाधिकार व अपना वर्चस्व स्थापित करने की प्रवृत्ति बढ़ती दिखाई दे रही है। समाज अनेक गुटों में बंटता दिखाई दे रहा है, हम आपसी खींचतान में ही लगे हुए हैं। इससे समाज में बिखराव बढ़ेगा, आपसी अपनापन भी खंडित होगा। हमारे पूर्वजों ने जिस उद्देश्य से महासभा का गठन किया है, उसे हमने भूलाकर ताक पर रख दिया है। हम संविधान को महत्व नहीं दे रहे हैं, यह समाज के लिए घातक है। संभवत: देश में हमारी महासभा सबसे पुरानी संस्था है, जो 114 वर्ष पूर्ण करने जा रही है। परंतु हम आत्म संतुष्टि एकाधिकार वर्चस्व की लड़ाई में लगे हुए हैं, जिससे समाजका कभी भी भला नहीं होने वाला है। जबकि होना यह चाहिए कि हमें सभी समाजजन की भावनाओं, विचारों व सुझावों को महत्व देकर समाज को संगठित करने का प्रयास करना चाहिए।

-- मोहन शर्मा, पत्रकार, इन्दौर