समाज में महिलाओं के बढ़ते कदम
कुछ ऐसा उज्वल हो हमारा कृतित्व, कि स्वयं दमकने लगे हमारा व्यक्तित्व।
अति प्राचीन काल में अनेकों विदुषी महिलाएं गार्गी विद्योतमा जैसी समाज में अति सम्मानित थी। हमारे शास्त्र में 'यत्र पूजयंते नारी, तत्र रमयते देवता" के अनुसार नारी को पूजनीय माना जाता था, किंतु मध्यकालीन युग में बाहरी आक्रमणकारियों के भय से स्त्री जाति असुरक्षित हो गई। इसी कारण उन्हें धीरे-धीरे पर्दा प्रथा को बढ़ावा देना पड़ा और नारी मात्र उपभोग की वस्तु बनकर रह गई। उसका मान-सम्मान, शनैः शनैः कम होने लगा। उस काल के साहित्यकारों ने भी शृंगार रस में डूबोकर उसे भोग्या के रूप में प्रस्तुत किया। देश की आजादी के बाद नारी फिर अपने मूल स्वरूप में उभरने लगी, किंतु वहाँ भी सक्षम पिता या पति की परछाई बनकर उसका अपना कोई वजूद नहीं था।
द्रौपदी मुर्मू जी जैसी झोपड़ी में रहने वाली एक साधारण सी महिला को सर्वोच्च पद के लिए प्रस्तावित कर समाज ने एक बार फिर नारी सम्मान का कदम उठाया। एक शिक्षिका जो मुफ्त में शिक्षा दानकर इतनी लोकप्रिय हो गई कि राज्यपाल और राष्ट्रपति पद के लिए उसका नाम राष्ट्र के सम्मुख आया। फिर से महिलाओं को उनकी योग्यता का मान दिया गया। इस प्रेरणा से देश की सभी कर्मशील महिलाओं में आस की एक किरण फूटी है। केवल वंशवाद या पिता और पति के पीछे चलने वाली महिलाएं नहीं अपितु काबिल स्त्रियां अब समाज का नेतृत्व करेगी। नारी जाति को केवल प्रदर्शन की वस्तु समझने वाले मुंह की खाएगे। उसे आईने के सामने सुसज्जित रूप में दर्शाकर उसकी असली प्रतिभा को दबाने का समय पीछे गया। अब सेना, कॉपोरेट, चिकित्सा, शिक्षा लगभग हर क्षेत्र में वे पूरे जोश के साथ खड़ी है और साथ ही नहीं उनकी मुखिया उन मार्गदर्शन भी बनी हुई हैं।
आज समाज में नारी पुनः' पुरुष के समकक्ष खड़ी होने की क्षमता रखती है। समाज, परिवार, देश का उत्थान व जगत कल्याण में नारी की अहम् भूमिका है। नारी के अतिरिक्त सृजन की क्षमता कहीं नहीं है। मातृ शक्ति का आदर सम्मान ही समाज की शोभा है। नारी केवल अपने लिए नहीं पूरे परिवार के लिए जीती है, किंतु यहाँ एक बात विशेष है कि आत्म गौरव और आत्म सम्मान से परिपूर्ण माता ही संतान को सदगुण दे सकती है।। संतानों पर माता का प्रभाव पिता से अधिक पड़ता है, इसलिए माता स्वयं संस्कारी सुशील एवं गुणों की खान हो तभी अगली पीढ़ी सुसंस्कृत हो सकती है। संस्कारों के गिरते ग्राफ को ऊपर उठाने के लिए भारतीय संस्कृति का मान बनाए रखने के लिए जननी को सशक्त और बच्चों की परवरिश में अपनी अहम् भूमिका निभानी पड़ेगी। इसके लिए उसे आध्यात्म, सामाजिक, धार्मिक परिवेश से स्वयं जुड़े रहना होगा। सामाजिक कार्यक्रमों में महिलाएं यदि भाग लेती हैं तो उनका समाज से जुड़ाव बनता है वे समाज की अहमियत समझती है और वही सीख अपने बच्चों को देती हैं जो समाज के आधार स्तम्भ होते हैं।
हमारे समाज में भी आज महिलाएं पीछे दरी से आगे कुर्सियों और मंच तक आ चुकी है। उनके मान-सम्मान का यथा संभव ध्यान रखा जाता है। कार्यकारिणी में 10% महिलाओं को स्थान देने का संविधान में प्रावधान रखा है। सभी प्रदेशों में महिला अध्यक्ष कार्य कर रही हैं और शेष स्थानों पर उनका मनोनयन जारी है। फिर वे अपनी कार्यकारिणी बनाकर अनेक सामाजिक आयोजनों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती हैं। यद्यपि कुछ राज्यों में महिलाओं की सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रियता कम है, तदापि ये प्रयास किए जा रहे हैं कि उन्हें आगे लाया जाए और सामाजिक गतिविधियों से उन्हें जोड़कर एक सशक्त समाज के स्वपन को अंजाम दिया जा सके।
बात करें सामाजिक कार्यक्रमों में महिलाओं की कम उपस्थिति की तो उसके कई कारण हैं। पहला तो परिवार के प्रति अनेक उत्तरदायित्व पुरुषों की अपेक्षा अधिक हैं। घर के बर्ग,बच्चे सबके लिए फर्ज निभाना, किंतु यदि वे स्वयं चाहे तो समय निकाल सकती हैं। टाईम मेनेजमेंट कर समाज के लिए कुछ समय निकालना हमारी अपने साथ कार्यक्रमों में लाने का प्रयास करना चाहिए। मध्यमवर्गीय तो अपनी जिम्मेदारियों का बहाना बनाकर दूर हट जाती हैं, लेकिन हमारे यहाँ उच्च धनाढ्य वर्ग की महिलाएं जिनके पास क्लब, किटी पार्टी में जाने का समय है, समाज में आने में अपनी तौहीन समझती हैं। नौकरी-पेशा महिलाओं के पास समय का अभाव रहता है, लेकिन वे भी चाहे तो अवकाश के दिन समाज हित के कुछ कामों में भाग ले सकती हैं। हम महिलाओं को समाज में जाने के लिए सजने-संवरने की आवश्यकता नहीं है। वहाँ हमें समाज के उत्थान हेतु अपने प्रयास इस कदर करना चाहिए कि हमारा व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली हो जाए कि उसे बाहर सजावट की आवश्यकता ना पड़े। यदि एक महिला चारित्रिक, नैतिक, संस्कारित रूप से मजबूत है तो वह अपने घर-परिवार और समाज को मार्गदर्शन कर अबला से सबला बन सकती है और दोयम दर्जे से प्रथम पायदान पर आकर समाज का मजबूत स्तंभ बनकर अपने समाज के विकास में मुख्य भूमिका निभा सकती है।
-- श्रीमती मधु शर्मा, इन्दौर