बचपन को सुधारो
"हमें बहुत खूबसूरत नज़र आ रही है
ये राहे तबाही के घर जा रही है"
अप्रैल माह में एक वर्ष पूर्ण कर चुकी अन्ना की आंधी थमने का नाम ही नहीं ले रही है, किन्तु परिणाम के रूप में अभी तक कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है, पूरे देश में धरने, आन्दोलन, अनशन प्रायोजित हो रहे हैं पर कोई भी अंधड़ उस वृक्ष को नहीं हिला सकता, जिसकी जड़ें गहराई तक धंसी है। इस महामारी को मूल से मिटाने के लिए हमें कुछ सोचना होगा।
डॉ. अब्दुल कलाम ने एक सम्मेलन में कहा था कि मैं जब 10 वर्ष का था तब मेरे पिता ने रामेश्वरम में पंचायत सदस्य का चुनाव जीता, बाद में वे सरपंच चुने गए वे जाति, धर्म, भाषा नहीं अपितु अच्छाई के दम पर चुनाव जीते थे। एक दिन वे नमाज़ पढ़ने गए थे तभी एक व्यक्ति पिता के लिए कुछ सामान लेकर आया, मैं पढ़ाई कर रहा था मैंने उसे सामान आँगन में रखकर जाने को कहा, पिता ने आकर जब सामान देखा तो उसमें कई कीमती चीजें निकली, पर मेरे पिता ने मुझे जमकर पीटा तथा मुझे समझाया कि जब कोई कीमती उपहार देता है तो उसके बदले जरूर कुछ कराना चाहता है ऐसा उपहार रिश्वत है, तब से आज तक कोई भी उपहार देख मुझे वह पिटाई याद आती है।
अर्थात् कोई भी बुराई या भलाई बालमन में गहराई से बैठ जाती है। बड़े होकर हम उसे नहीं बदल सकते। कड़वे व विषैले फल देने वाले वृक्ष की टहनियां कतरने से कुछ नहीं होगा, हमें उसका बीजारोपण रोकना होगा। एक अबोध शिशु भी दूरदर्शन के गाने देखकर गर्दन घुमाता है तो बचपन ही वह अवस्था है जहाँ से संस्कारों का रोपण हो सकता है। संस्कार बालक को सर्वप्रथम अपने परिवार से प्राप्त होते हैं, माँ की गोद उसकी पहली पाठशाला है और हमारे धर्म के अनुसार तो माता के संस्कार वह जन्म से पूर्व भी आत्मसात् कर लेता है। जैसे अभिमन्यु गर्भ में चक्रव्यूह का ज्ञान लेकर पैदा हुआ था। मेरा समाज की बहनों से निवेदन है कि भावी पीढ़ी को गढ़ने वाली हम ही हैं जिस प्रकार गांधी जी की माँ ने विदेश जाने से पहले अपने पुत्र के सम्मुख मांस, मदिरा ना खाने व ब्रह्मचर्य का पालन करने की शर्त रखी थी। वही कार्य हम भी कर अपने बच्चों को बुराई से बचा सकती हैं। उचित अनुचित का भेद समझकर उन्हें सही दिशा प्रदान करना हमारा दायित्व है तभी हम सही अर्थों में जननी हैं।
परिवार माता-पिता के अतिरिक्त आस-पास का परिवेश भी अनेक दुष्प्रवृत्तियों को जन्म दे सकता है। शैक्षिक वातावरण भी आज बहुत बदल चुका है जब हम पढ़ते थे तब नैतिक शिक्षा का एक पीरियड़ अनिवार्य था। उसकी पुस्तक से आज हमें चाहे कुछ याद हो न हो किन्तु सदा सच बोलो, चोरी मत करो, बड़ों का आदर करो की सीख आज भी याद है। किन्तु आज की शिक्षा में ना तो वह पीरियड़ है न ही वह पुस्तक नैतिक मूल्यों से दूर आर्थिक सशक्तिकरण वाली शिक्षा आज दी जा रही है। छात्र पी.ई.टी., पी.एम.टी., सी.ए., एम.बी.ए. आदि में किस प्रकार चयनित होगा हम स्वयं उसे वही किताबी ज्ञान दे रहे हैं। उपरोक्त कारणों से नैतिकता का ग्राफ नीचे व भ्रष्टाचार का ग्राफ दिनों दिन ऊपर आता जा रहा है। पेड़ की डाल पकने के पश्चात् सूखी लकड़ी बन जाती है, जिसे मनचाही दिशा में मोड़ने पर वह टूट जाती है, जबकि कच्ची टहनी मनचाहा आकर ले सकती है।
सांई इतना दीजिए जामे कुटुंब समाए का जुमला आज झुठलाकर अथाह सम्पत्ति चाहे वह काला धन ही क्यों न हो एकत्र करने की होड़ में ही भ्रष्टाचार रूपी दानव बाँहे फैलाता जा रहा है। जीवन पथ पर आने वाली हर कठिनाई का मार्ग आज संभव है, शार्टकट से रिश्वत देकर उसे हल कर लिया जाता है। तभी तो 2जी, 3जी, भूमाफिया, शिक्षा माफिया न जाने कितने माफिया और तो और शहीदों के कफ़न पर भी दलाली इस भारत में की जा रही है। गत दिनों खनन माफिया के चुंगल में फंसकर एक ईमानदार आई.पी.एस. की कुचल कर हत्या कर दी गई। ऐसे दूषित माहौल में इक्के-दुक्के सज्जनों का यही परिणाम सामने आता है। इस हेतु चिंतन की बहुत आवश्यकता है। केवल नारे लगाने, सभाएं आयोजित करने से कुछ नहीं होगा प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं में सुधार करना होगा, आत्मकेंद्रित या मैं या मेरा परिवार का मंत्र त्याग कर पुन: वसुदेव कुटुंबकम् हमको अपनाना होगा तभी भारत का उद्धार हो सकता है। बच्चों के खून में बुराई को रमने से पहले उसका समूल नाश करना होगा। जनहित समाज हित, देशहित सर्वोपरि है उनके बाल मस्तिष्क में भरना होगा तभी देश का भविष्य सुरक्षित होगा। नींव को मजबूत करने के लिए बचपन को संवारना होगा। कीचड़ से जिस प्रकार कमल की डंडी धकेलते हुए बाहर आकर खिलती है हमें भी अपने बच्चों को खिलाना होगा उनके सम्मुख विवेकानंद, शिवाजी से आदर्श रखना होंगे। जयचंद पहले भी हुए हैं किन्तु आज उनका प्रतिशत बढ़ गया है इसलिए पूरा तंत्र भ्रष्ट हो चुका है।
इन बिगड़ते हालातों से देश पुन: गुलामी की ओर अग्रसर हो रहा है, यदि आज भी हम जाग गए तो आने वाली पीढ़ियां इस महाविनाश से अपने भारत को बचा पाएंगी अन्यथा विदेशी बैंकों में काला धन जमा कर स्वयं को व देश को बेच देने वाली संताने जो बचपन से ही भलाई व बुराई में भेद नहीं कर पा रही भारत को नीलाम कर देगी। इस लेख के माध्यम से कम से कम अपने जांगिड समाज को तो मैं यही कहना चाहूंगी।
"बचपन को संवारो भविष्य खुद संवर जाएगा"
-- श्रीमती मधु शर्मा, इन्दौर (म.प्र.)