बेटियाँ ये बेटियाँ
माना कि आसमां की बुलंदियों को छू रही है, आज बेटियाँ,
मांझे की डोर को छोग आज़ाद उड़ रही हैं,
आज बेटियाँ पकड़ जड़ों से हो रही कमजोर तभी तो,
पतंग सी दूसरों की छतों पर जा गिर रही हैं, आज बेटियाँ।
लोक माता अहिल्या की नगरी इंदौर जहाँ की बेटी अहिल्या के नाम से नगरी का मान है, वही बेटी जिसने पूरे देश के धार्मिक स्थलों का उद्धार किया, उसी शहर की एक आधुनिक बेटी ने विगत दिनों स्वयं के साथ नगरी के नाम को भी कलंकित किया। आए दिन संस्कारों का नाश करती हमारी नारी शक्ति जो शास्त्रों में पूजनीय, आदरणीय है, स्वभाव से शीतल, ममता की मूर्ति, कहीं पति को ड्रम में दफना रही हैं, कहीं खाई में फेंक रही हैं। पश्चिम की आंधी में उड़ती हमारी नई पीढ़ी दिनों दिन गर्त में जा रही हैं। अति महत्वकांक्षा के चलते आज की बेटियाँ अपनी जड़ों से टूटकर सीधे आसमां को छूने में प्रयासरत हैं, फिर चाहे उन्हें किसी भी हद तक ना गिरना पड़े। मेरा यह कहना नहीं है कि पुरुष वर्ग ने आज तक नारियों पर अत्याचार नहीं किए। दबे छुपके आज भी अनेकों मेरी बहनें घरेलू हिंसा का शिकार हैं। किंतु प्रकृति की सुकोमल कृति से कभी किसी ने इस प्रकार हिंसक प्रवृत्ति की उम्मीद नहीं की थी।
बच्चियों के बहकते कदमों पर गौर करें तो कुछ लोगों का मानना है कि उच्च शिक्षा इसका प्रमुख कारण है। किंतु यह गलत है, शिक्षा तो संस्कारों की जननी है। इसी शिक्षा के बल पर नारी आत्म निर्भर हुई है, समाज में उसका एक अपना अस्तित्व बना है। जहाँ वो परदे में घर की चार दिवारी में कैद रहती थी, आज एक स्वच्छंद उड़ान भर रही हैं। किन्तु हर विषय के दो पहलू होते हैं और यहाँ शिक्षा से प्राप्त आज़ादी का आधुनिक पीढ़ी दुरुपयोग कर रही है। शिक्षा रूपी वरदान को कुछ स्त्रियों ने एक अभिशाप बना रखा है। अति आधुनिकता की दौड़ में अनेक कुसंस्कृतियों को अपनाया एक पेशन बन गया है। घूंघट की गौरी तो आज के युग में संभव नहीं है, किन्तु अर्धनग्न वस्त्र धारण करना कहाँ तक उचित है। अर्ध रात्रि तक होटलों में पुरुषों के साथ खुले आम घूमना, यहाँ तक कि अब तो लड़कियाँ बड़े शहरों में खुलेआम सिगरेट, शराब तक पीती पाई जाती हैं। माता-पिता अपने द्वारा दिए गए लाड़-प्यार को वे उत्थान में नहीं अपितु अपने पतन में उपयोग कर रही हैं। माता-पिता चाहते हैं हमारी बेटी पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो एक उच्च पद पर जा घर-परिवार, समाज का नाम रोशन करे। किन्तु गलत संगत, गलत राह में पड़कर कुछ बेटियाँ अपना और अपने परिवार का सर्वनाश कर रही हैं।
कुछ कुरीतियाँ समाज में बड़ी तेजी से पैर पसार रही हैं, जिनमें एक है लिव इन रिलेशनशिप पहले तो पढ़ाई, नौकरी की आड़ में कुछ-कुछ लड़कियाँ छुप-छुपकर पुरुषों से संबंध रखती थी, पर आजकल तो नई सोच की नई फसल ने खुलेआम इस गंदगी को अपना रखा है और अंत में हत्या, आत्महत्या या दरिंदगी जैसे परिणामों से लिव इन का अंत होता देखा गया। है। विवाह जैसे पावन संस्कार को दर किनार कर पुरुष स्त्री का संबंध कभी भी समाज में स्वीकार्य नहीं है। विवाह दो मनुष्यों का नहीं दो परिवारों का बंधन है। जिसके अन्तर्गत सामाजिक मान्यताएं होती हैं, जिन पर चलकर हम अपने आदर्शों का पालन करते हैं। वे आदर्श एक तरफ कर नई पीढ़ी खुद को सबसे समझदार मान बड़ों का अनादर करने में भी नहीं चूकती है।
यहाँ कुछ भूलचूक बड़ों से भी हो रही है। बेटा हो या बेटी उन्हें खूब प्यार दो पर उनकी कुछ सीमाएं तय करो। उन्हें कब घर आना है कहाँ जाना है ये बंधन प्रारंभ से ही उनके दिलो-दिमाग पर बंधे रहने चाहिए।
मॉडर्न बनने की होड़ में आज कुछ माताएं अपने बच्चों के सामने गलत उदाहरण पेश कर रही हैं। ब्यूटी पार्लर, किटी पार्टी, क्लबों में जाती माँ को देखकर बेटी क्या सिखेगी। माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को इतने ऊँचे सपने न दिखाए जो पूरे ना हो सके। जिन्हें पूरा करने में गुमराह होती पीढ़ी आत्महत्या तक पहुँच जाती हैं। विकास की ओर अग्रसर होना उचित है, किन्तु ऐसा विकास किस काम का जो हमें अपनी सनातन संस्कृति से विमुख कर दे। माथे पर तिलक लगाकर भी अंतरिक्ष की ऊँचाई को छुआ जा सकता है। माता-पिता छोटे-छोटे बच्चों को मोबाइल, लेपटॉप, आइपेड से खिलौने देकर अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं, उन्हें ये नहीं पता कि ये वो विस्फोटक बम है, जिससे हमारे बच्चों के हाथ ही नहीं अपितु वे पूरे जल जाएंगे। विज्ञान के इन अविष्कारों का सदुपयोग कम और दुरुपयोग अधिक किया जा रहा है। संयुक्त परिवार समाप्त हो रहे हैं। जहाँ बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण होता था और बिगड़ने के बाद आप बेटे-बेटियों पर दबाव डालकर सुधारने का प्रयास करें तो वह भी बहुत कठिन है। फिर वे आपसे दूर जाकर या स्वयं को मिटाने जैसे कदम उठाते हैं और नवीन प्रयोग तो सामने वाले की हत्या भी कर देते हैं।
-- श्रीमती मधु शर्मा, इन्दौर