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महाकुंभ

महाकुंभ अध्ययन, चिंतन, मनन, साधना और आध्यात्म का महापर्व है ना कि रील खींचकर फोटो डालकर मीडिया पर प्रदर्शन का। सनातन हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा समागम जो 45 दिनों तक निरंतर चलेगा, शायद ही किसी और धर्म में ऐसा महा आयोजन होता है। विश्व गुरु भारत का समृद्ध इतिहास इस सामाजिक सांस्कृतिक आध्यात्मिक पर्व का साक्षी रहा है। यह उत्सव ठीक उसी समय होता है जब सूर्य चन्द्रमा और बृहस्पति की ज्योतिष गणनाएं इस परिस्थिति काल द्वारा निर्धारित होती है। हिन्दू धर्म का पवित्रतम् पर्व आंतरिक रूप से खगोल विज्ञान, ज्योतिष, अनुष्ठानिक परम्पराओं और प्रथाओं के विज्ञान को समाहित करता है, जिससे वह ज्ञान में बेहद समृद्ध हो जाता है।
हाथी, घोड़े और रथों पर अखाड़ों का पारम्परिक जुलूस जिसे 'पेशवाई' कहा जाता है 'शाही स्नान' के दौरान चमकती तलवारें और नागा साधुओं की रस्में तथा अनेक सांस्कृतिक गतिविधियाँ जो लाखों तीर्थ यात्रियों को कुंभ मेले का आमंत्रण देती प्रतीत होती है, जिसमें देशी-विदेशी सभी पर्यटक शामिल होते हैं। प्रयागराज के इस महाकुंभ का शुभ संयोग 144 वर्षों में एक बार बनता है। 13 जनवरी से प्रारम्भ 2025 के इस पर्व में 13, 14 जनवरी, मौनी अमावस्या 29 जनवरी, बसंत पंचमी 3 फरवरी, माघी पूर्णिमा 12 फरवरी, 26 फरवरी शिवरात्री जैसी तिथियों का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इन तिथियों पर त्रिवेणी स्नान से पाप धुल जाते हैं। स्वामी अवधेशानंद ने शाही स्नान के स्थान पर इसे 'अमृत स्नान' बनाने पर जोर दिया है। अमृत स्नान तब होता है जब बृहस्पति वृषभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य चन्द्रमा मकर राशि में एक ही रेखा में होते हैं। यह दुर्लभ ब्रह्मंडीय संयोग जिसे अमृत योग कहते हैं 12 साल में एक बार होता है । हिन्दू पुराणों के अनुसार सागर मंथन से प्राप्त 'अमृत' का कलश विष्णु के हाथ से चार तीर्थों प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में छलका था। इन स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरने से यहाँ कुंभ का आयोजन होता है।
इन महाकुंभ की पहचान अखाड़े होते हैं जो पहलवानी अखाड़े नहीं अपितु जहाँ शस्त्र, शास्त्र की शिक्षा दी जाती है, वे स्थान हैं। हिन्दू धर्म में मठ कहे जाने वाले अखाड़ों का इतिहास बहुत पुराना है। माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रचार को रोकने के लिए देश के चारों दिशाओं में चार मठ स्थापित कर वेदों की पुनःस्थापना पर बल दिया। धर्म विरोधी शक्तियों के दमन हेतु शंकराचार्य ने युवा शक्ति को साधु रूप देकर शक्ति युक्त कर आध्यात्मिक बल पर हिन्दू संस्कृति को बचाने का प्रयास प्रारंभ किया था। इन्हीं मठों में अखाड़े संचालित होते थे। अखाड़े का अध्यक्ष 'महामंडलेश्वर' कहलाता है। प्रारंभ में केवल चार अखाड़े थे, लेकिन वैचारिक मतभेद के चलते आज 13 अखाड़े हैं, जिनमें 7 शैव संप्रदाय के 3 वैष्णव संप्रदाय के और 3 उदासीन संप्रदाय के सभी अखाड़ों के बीच सामंजस्य और प्रबंधन तथा विवाद को हल करने कार्य अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद करता है, जिसकी स्थापना 1954 में हुई थी ।
कुंभ में आए साधु-संन्यासी कठिन तपस्या के बाद स्वयं को सिद्ध करते हैं नागा साधु, अघोरी या अन्य सभी साधु समाज कल्याण हेतु स्वयं को परिवार से दूर कर संन्यास ग्रहण करते हैं। महामंडलेश्वर उपाधि वाले संत प्रमुख को खुद का पिण्डदान खुद करना पड़ता है। 13 अखाड़ों की उपस्थिति में इनका पदाभिषेक होता है। ये अपने शिष्यों का चयन भी बड़ी सावधानी से करते हैं। यद्यपि कुछ बनावटी साधु-संतों से 'संत' जैसी पावन पदवी को कलंकित भी किया जाता है। परन्तु साधु का तो अर्थ ही साधना और साधना से प्राप्त शक्ति का उपयोग जब कल्याण के लिए होता है। नागा साधुओं का अनुशासन अति कठोर होता है। ये अपने तप के बल पर अर्जित शक्ति का उपयोग समय-समय पर धर्म रक्षा हेतु करते हैं। ये संन्यासी एकांतवास छोड़कर कुंभ मेले के दौरान ही सभ्यता का भ्रमण करने आते हैं। इन मेलों में आध्यात्म और धर्म की महत्ता को जानने के लिए श्रद्धालु आते हैं। ये स्थान तन, मन और आत्मा को पवित्र करने के लिए त्रिवेणी स्नान हेतु है, कल्पवास हेतु हैं, मात्र मनोरंजन हेतु नहीं।

-- श्रीमती मधु शर्मा, इन्दौर