राम आएंगे
राम आगमन की बेला पर, अपने भीतर के राम को जगाएं। उनके आदर्शों को आत्मसात कर, राम में एकाकार हो जाएं।।
चौदह वर्षों बाद जब वे लौटे तो दिये जलाकर हम सबने उनका स्वागत किया और आज 500 वर्षों बाद रामलला अपने जन्म स्थान विराजेंगे तो हम सब हर्षित हैं, उल्लासित हैं कि इस पुण्य पुनीत सुअवसर को किस तरह मनाए। हमारे राम जी पूज्य हैं, प्रणम्य हैं, अनुकरणीय हैं। पुत्र, भाई, पति, शासक, मित्र, मानव हर रूप में वे आदर्श हैं। वे सर्वलौकिक आदर्श हैं, आज के युग में उनकी बहुत अधिक जरूरत है। आइए नैतिक पतन के इस युग में उनके विलक्षण गुणों की कितनी अधिक आवश्यकता है जाने-
परिवार प्रथम मान्य : पिता के वचन निर्वाह हेतु राम ने वन गमन किया। दशरथ जी ने अपने प्रिय राम के स्थान पर भरत को राज्य दिया। अपना वचन निभाने के लिए दशरथ के प्राण तक बलि चढ़ गए और भरत जी ने राज्य स्वीकार न करते हुए राम पादुका को सिंहासन पर पदासीन किया। आज के युग में भाई इसी सिंहासन के लिए भाई को मार तक देता है। इसलिए परिवार में बड़ों के प्रति सम्मान छोटों के प्रति उदारता और भातृत्व भाव की परिवारों में जरूरत आज भी है, जो उस समय थी।
साहस संग धैर्य राज्य पाते पाते वन, राजमहल की सुविधाओं से वंचित हो जंगल जाना और ऐसे में पत्नी का अपहरण सामान्य व्यक्ति का आत्मबल गिर सकता है। किंतु राम सुदृढ़ आत्मविश्वास के साथ डटे रहते हैं। कतई निराश हताश नहीं होते और कहते हैं कि कैसे भी सीता का पता लग जाए। काल से लड़कर भी उसे छुड़ा लाएंगे।
"एक बार कैसेहु सुधि जानऊँ,
कालहु जीति निमिष महुं आनी ।।"
आज की हताशा निराशा भरी जिंदगी में जहाँ युवा परिस्थितियों से घबराकर आत्महत्या तक कर लेते हैं। राम का जीवन एक संबल है, कमजोर क्षणों में हमें राम को याद कर अपने भीतर उनका आह्वान करना चाहिए।
सत्य के लिए संघर्ष : राम का लक्ष्य था सज्जनों का परित्राण और दुष्टों का नाश दण्डकारण्य में ऋषियों की अस्थियों को देख उनके आँसू छलक आए और इस अत्याचार अन्याय के विरूद्ध वे उठ खड़े हुए।
"निसिचर हीन करऊँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह । "
समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझ उन्होंने धरती को राक्षस हीन करने का संकल्प लिया और वानर भालू जैसे जीवों को लेकर रावण से महाबली राक्षस तक का वध किया।
उदार नेतृत्वकर्ता जीत का श्रेय संगी-साथियों को बांटने का गुण ही कुशल नेतृत्व है, जिसका आज सर्वथा अभाव है, दूसरों का श्रेय चुराने और आत्म प्रबंचना के इस काल में राम और भी प्रासंगिक हैं। अपने सखाओं संग अयोध्या पहुँचने पर गुरु वशिष्ठ से उनका परिचय राम ने कुछ यूं करया कि इनके बल से ही मैंने संग्राम विजय प्राप्त की है। अर्थात् शासक, स्वामी, दास, नेता को उदार बड़े दिल वाला होना चाहिए।
निर्बल के बल राम राम का रामत्व यही है कि वे दुर्बल सुग्रीव के मित्र बने, उन्होंने केवट, शबरी, जटायु, भील काल, वानर भालूओं को गले लगाया। ऋषि-मुनियों के आश्रम में जाने वाले राम भीलनी की कुटिया में जाकर झूठे बेर खाकर कहते हैं, जाति-पाति, कुल, धर्म, बड़प्पन, धन कछु नाहिं। अर्थात् प्रभु राम इस सबके नहीं प्रेम के भूखे हैं। उन्होंने सदा पिछड़े शोषितों का साथ दिया।
जल में कमल से राम अपने बल से किष्किंधा और लंका जीतते हैं। किन्तु उन्हें अपने अधीन नहीं रखते। लंका विजय के बाद विभीषण को राज्य सौंप वे अपनी सेना से कहते हैं। हमें पीछे मुड़कर नहीं देखना है। सोने की लंका छोड़ हमारे राम वनवासी हो घास-फूस की शैय्या पर शयन कर कंद-मूल खाते हैं सुख साधन जुटाने की अंधी दौड़ में इंसान आज और अधिक दुःखी होता जा रहा है। राम आज भी निःस्पृहता के रूप में हमारे सामने हैं।
मर्यादा पुरुषोत्त्म : यह जानते हुए कि यह सीता नकली हैं। अग्नि परीक्षा करवाने वाले राम या सीता को प्रजा के एक मुखारित विरोध पर पुनः वन भेजने वाले राम हर हाल में मर्यादा का पालन करते हैं। प्रारंभ से अंत तक हर कदम स्वयं जलकर बाहर प्रकाशित करने वाले प्रभु राम वाकई मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।
भारतीय संस्कृति मानती है कि भक्त अंततः भगवान में सम्माहित हो जाता है। इसका आशय यही है कि यह अपने आदर्श के गुणों का अनुसरण कर उन जैसा हो जाता है। सच्ची भक्ति यही है आइए राम मंदिर में पुनः राम आगमन पर संकल्प लें कि भगवान राम ऐतिहासिक राजा राम, महाकाव्य के नायक राम जिस भी रूप में देखें उनके गुणों को आत्मसात करें।
-- श्रीमती मधु शर्मा, इन्दौर