विश्वविधाता
माघ शुक्ल त्रयोदशी को विश्वकर्मा जयंती मनाने वाले हम विश्वकर्मा वंशी अपने गौरवमयी अतीत को स्मरण कर गौरवान्वित हैं। हमारी नई पीढ़ी परमपिता पंचमुखी विश्वकर्मा के बारे में जाने ताकि वो अपनी जड़ों से जुड़े रहें, यह हमारी कोशिश होनी चाहिए। हमारे बच्चे प्रभु विश्वकर्मा को मात्र दाढ़ी वाले बाबा न समझकर उनकी वास्तविक महिमा को जाने यह दारोमदार हम सबका है। कुशाग्र बुद्धि वाली हमारी संताने जगतपिता, सृष्टिकर्ता, विश्वविधाता का नाम लेकर अपनी कार्य क्षमता रचनात्मकता को और अधिक निखार सकते हैं। आइए जाने पहचाने स्वयं को व स्वयं की मजबूत जड़ों को ।
सर्वप्रथम नारायण की आज्ञा से ब्रह्माजी ने जब धरती का नवनिर्माण किया तो उन्हें इसे स्थिर रखने की चिंता सताने लगी और उन्होंने नारायण की स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर स्वयं नारायण ने "विराट विश्वकर्मा " का रूप धारण कर डगमगाती पृथ्वी को स्थिर किया और फिर आवश्यकतानुसार स्थिर पृथ्वी पर विभिन्न लोकों की रचना की। अतएव विराट विश्वकर्मा की उत्पत्ति ही लोक कल्याण हेतु हुई। विभिन्न युगों में प्रलय के बाद जब-जब सृष्टि को पुनः निर्माण हुआ विश्वकर्मा जी ने उसकी संरचना में योगदान दिया और अलग- अलग काल में अनेक अवतार लिए। विश्वकर्मा कोई नाम नहीं अपितु जगत रचियता की उपाधि है। जिस-जिस ऋषि महर्षि ने वेद ज्ञान पढ़कर विज्ञान के अविष्कार किए वे विश्वकर्मा कहलाए।
विश्वकर्मा जी ने लोक कल्याण के पावन उद्देश्य से शिल्प नैपुण्य से मनुष्य को भौतिक सुखों से परिपूर्ण करने के लिए उन्हें चिरस्थाई करने के लिए उस ज्ञान को सुव्यवस्थित कर " शिल्पशास्त्र" के रूप में प्रस्तुत किया। शिल्प शास्त्र ही इंजीनियरिंग की सर्वप्रथम अधिकारिक रचना है। इसके अंतर्गत प्रमुख है। विज्ञान का वेद" अर्थवेद" जो अर्थववेद का उपवेद है। यह संपूर्ण शिल्प शास्त्र का समुच्चय है। महर्षि दयानंद द्वारा भी 6 वर्षों में इसे पढ़कर विमान, भूगर्भादि अनेक विद्याओं को साक्षात् करना बताया है । विश्वकर्मा ने समस्त शिल्प विज्ञान का चतुर्विध विभाजन कर फिर उनका अवान्तर भेद कर निम्न दस शास्त्रों में निरुपित किया है-
1. उत्पादन की दृष्टि से - कृषि, जल व खनिज ।
2. आवास की दृष्टि से - वास्तु, प्रकार व नगर रचना ।
3. आवागमन के साधनों की दृष्टि से रथ, नौका तथा विमान ।
उपरोक्त नौ विभागों के यंत्रों का निर्माण दसवें विभाग 'यंत्र विज्ञान' द्वारा किया जाता है। उपरोक्त सभी विषयों पर विश्वकर्मा ने 12 सहस्त्र ग्रंथ लिखकर शिल्पवेद अथर्ववेद को संपूर्ण किया जो कलयुग में घटकर चार सहस्त्र ग्रंथों में समावेशित हो गया। विश्वकर्मा रचित इन शिल्पशास्त्र के ग्रंथों में से केवल पाँच-सात ग्रंथ ही उपलब्ध है। शोषण रहित अर्थ व्यवस्था के प्रवर्तक तथा अर्थ व्यवस्था की तीन पद्धतियों की दृष्टि सभी विश्वकर्मा को समाज में अनुपम स्थान प्राप्त है, इस तरफ भी विश्वकर्मा प्रदत्त पद्धति पूर्ण एवं आदर्श है।
भगवान श्री विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, आभूषण अलंकार व बड़े-बड़े महलों का निर्माण किया है। विमान विद्या में निपुण विश्वकर्मा ने “पुष्पक” से अनुपम विमान की रचना की जो ब्रह्मा जी की प्रेरणा से सौन्दर्य कला शक्ति हर दृष्टि से अतुलनीय है। शिल्प कर्म, देव कर्म, ब्राह्मण कर्म भी है। प्रभु विश्वकर्मा यज्ञ कर्म, शिल्पकर्म सभी के आदि प्रवर्तक है। अपने श्रम और नियमन का प्रर्वत कर विश्व ब्राह्मण "एलावर" द्वारा एक ही पत्थर में विश्व प्रसिद्ध एलोरा की गुफाएं व विश्वकर्मा मंदिर (पंचमुखी) स्थापित किए गए। विश्व में जाना माना उड़ीसा का सूर्य मंदिर कोणार्क विश्व ब्राह्मण "विश्वनाथ" व उनके भतीजे धर्मपद द्वारा निर्मित किए गए। अजंता की गुफाएं, ग्वालियर बांध गुफाएं हमारे विश्वकर्मा समाज के बंधुओं द्वारा बनाए गए हैं। काशी में कात्यानी मंदिर हो या अन्य ऐतिहासिक इमारतें विश्वकर्मा वंशजों की ही कलाकारी है। आज वर्तमान में भी इंटिरियर का क्षेत्र हो या उच्च कोटि के भवन निर्माण हमारी वंशानुगत प्रतिभा हर जगह अपना लोहा मनवाती है।
-- श्रीमती मधु शर्मा, इन्दौर