मायावी कृष्ण
सबे भूमि गोपाल की, भूले जब संसार ।
ढाल सुदर्शन की तब, हरे भूमि का भार ।।
जहाँ श्री कृष्ण अपने होठों से लगाकर बांसुरी के मनमोहक स्वर से कला के सौंदर्य का प्रदर्शन करते हैं, वहीं उनके हाथों का सुदर्शन पराक्रम का प्रदर्शन करता है वही चक्र जो अन्याय सहन नहीं करता और विध्वंस करता है। उनके सिर पर सजा मोर पंख का मुकुट पवित्रता व ज्ञान का द्योतक है, तो उनके शरीर पर सुशोभित पीत वस्त्र व आभूषण उनके तेज व ऐश्वर्य व तेज को दर्शाता है। श्री कृष्ण संग राधा जहाँ प्रेम भक्ति को प्रकट करती हैं, वहीं उनके साथ रूकमणी उनकी अद्धांग शक्ति का साकार रूप है।
जितने वे सांसारिक पुरुष थे, उतने ही आध्यात्मिक भी थे। वे महान शिक्षक होने के साथ-साथ अद्वितीय राजनीतिज्ञ भी थे। उनकी इसी विशेषता के कारण आज पुनः उनकी नीतियों का स्मरण कर प्रबंधन कोर्स में उनके सिद्धांतों को मान्यता दी जा रही है। एक तरफ जहाँ वे योगेन्द्र थे तो दूसरी तरफ माखन चोर की भूमिका में भी रहे। एक तरफ योद्धा थे तो दूसरी ओर रणछोड़ भी एक तरफ जहाँ वे पूजनीय थे तो वहीं जूठी पत्तल उठाने वाले और चरण पादुकाएं सुव्यवस्थित करने वाले भी। उनके व्यक्तित्व को समझना बहुत जटिल है। एक अवधूत इस संसार को भुला सकता है, वहीं एक राजा भौतिकवादी राजनीतिज्ञ कृष्ण के लिए यह संसार ही सब कुछ है। अर्थात् ये योगेश्वर व द्वारकाधीश दोनों हैं। श्री कृष्ण लीला पुरुषोत्तम है और उनका व्यक्तित्व उत्कृष्ठता का पर्याय है।
एकमात्र वे ही हैं जो युद्धभूमि में गुण, भक्ति और आत्म साक्षात्कार को समझने का कौशल बता सकते हैं तथा इसे ग्रहण करने योग्य मात्र अर्जुन थे। यही उनके शिक्षाप्रद सबक आज भी प्रासंगिक हैं। 'योग कर्मसु कौशलम्' जो हर कार्य को कुशलता से करने का संदेश देते हैं। कृष्ण के जीवन में एक ही समय में सघन प्रेम और घोर संग्राम दोनों का संतुलन है। संकट विपदाएं तो उनके जन्म के साथ ही उनके संग थी उनका निवारण भी उतनी कुशलता से उन्होंने किया। वे ज्ञानी हैं, ध्यानी हैं, योद्धा हैं अर्थात् हर कला में निपुण नटवर नागर । उनके प्रेम रस में डूबी हुई गोपीकाएं हैं, तो ज्ञान रस से सरोबोर उद्भव व अर्जुन महाभारत युद्ध में वे एक ओर शस्त्र न उठाने व युद्ध न करने हेतु संकल्पित हैं तो युद्ध में मार्गदर्शक की बड़ी भूमिका में हैं। वास्तव में इस महासमर के ये ही प्रमुख सूत्राधार थे युद्ध में शस्त्र भले ही ना चलाते हों पर हर शस्त्र उन्हीं के इशारों पर चलता हुआ प्रतीत होता है। धर्म के पक्ष में हैं और सशक्त अधर्म से भी धर्म को विजय दिलाकर एक नए भारत की नींव रखते हैं।
जिन युक्तियों को श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में अपनाया वे सबसे अलग हैं, अनूठी हैं। आज तक किसी पैगम्बर या संत ने उन युक्तियों का प्रयोग नहीं किया। वे एकांतवासी नहीं हैं, उनका जीवन हर पल घटनाओं से परिपूर्ण रहा, परन्तु किसी घटना ने उनको प्रभावित नहीं किया। यानि उनके एकांत मन को प्रभावित नहीं किया। उन्होंने श्रीमद्भगवत गीता के उपदेश के माध्यम से संसार को संदेश दिया कि जीवन एक कर्म भूमि है, जहाँ हम अपने कर्मों के बीज बोते हैं, जो समय आने पर फलते-फुलते हैं। यह जीवन युद्ध भूमि है, जहाँ निरंतर संघर्ष है और इस युद्ध भूमि में हमें आसक्तिहीन होकर निष्काम कर्म करते हुए आगे बढ़ना है और अपने कर्म भगवान को अर्पित करना है। उन्होंने संसार की अनुपयुक्त परंपराओं को तोड़ा है और नई परंपराओं को स्थापित किया है। गीता के माध्यम से कठिनतम कार्यों को भी अपनी मधुर मुस्कान के साथ संपादित करने का संदेश देते मायावी कृष्ण बड़े सहज प्रतीत होते हैं। संसार में घुल मिलकर रहो, लेकिन संसार को अपने मन में न बसने दो जैसे नाव नदी के जल में रहकर ही तैरती है, किंतु उसके जल को अपने अंदर प्रवेश नहीं करने देती । बचपन में गायों को चराने वाला ये ग्वाला तथा भाई बलराम कंधे पर हल धारण कर इस कृषि प्रधान देश के भारतीय समाज की सुंदर व सच्ची तस्वीर इंगित करते हैं।
जीवन के सभी प्रसंगों में यह एक पूर्णता दर्शाते हुए दिखते हैं। इस पूर्ण पुरुष ने धरती पर रहते हुए भी सृष्टि के सभी क्रियाकलापों से अभूतपूर्व सामंजस्य स्थापित किया। उनकी पूर्णता और पारंगतता अद्भुत थी। कृष्ण और उनकी लीला द्वापर से आज कलयुग तक उतनी ही प्रासंगिक हैं। भगवत गीता आज बहुत अधिक पढ़ी और उपयोग की जा रही है। गीता का सार दिनों-दिन नई पीढ़ी भी आत्मसात करने लगी है, अभी कुछ दिन पूर्व ओलम्पिक में पदक प्राप्त करने वाली मनु भाकर ने कहा कि मैं भगवत गीता के सूत्रों को अपनाकर इस मुकाम तक पहुँची हूँ। मैनेजमेंट गुरु के नाम से एम.बी.ए. की कक्षाओं में भी श्री कृष्ण को पढ़ाया जाता है। भगवत गीता को पुस्तकों में शामिल करने का भी प्रयास चल रहा है। अर्थात् इस मायावी की माया आज भी उतनी ही उपयोगी है, जितनी उस काल में थी, जब ये उसे प्रदर्शित करते थे। श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर उनके विभिन्न स्वरूपों को जोकि हर रूप में पूजनीय हैं, वंदनीय हैं, हम नमन करते हैं।
-- श्रीमती मधु शर्मा, इन्दौर