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विश्वकर्मा समाज की राजनीति में भागीदारी

अपना अधिकार मांगना होगा सत्ता के गलियारों से, चप्पा-चप्पा गूंज उठेगा जय श्री विश्वकर्मा के नारों से।
वर्ष 2023 अपने अंतिम चरम पर है, हमने इस वर्ष समाज की राजनीति में भागीदारी पर पूर्ण मनोयोग से प्रयास किया। वर्ष के प्रारम्भ से ही विश्वकर्मा महाकुंभ की रणनीति तैयार की गई। जिसका प्रमुख उद्देश्य समाज को राजनीति में प्रवेश हेतु प्रयत्न करना था। बड़ी संख्या में हमारी जनसमुदाय एकत्र हुआ। आर्थिक रूप से भी समाज ने बहुत खर्च किया चाहे भामाशाहों का हो या सामान्य जन का पैसा तो समाज का ही खर्च हुआ ना सबसे कीमती वस्तु समय को भी आयोजकों, प्रायोजकों, जन भागीदारों और आगंतुकों ने ताक पर रख अथक प्रयास किए। किन्तु नतीजा शून्य एक मात्र विधायक जिसका इस प्रयास से कोई लेना-देना नहीं है, वो पूर्व में भी विधायक थे। किसी भी समाज बंधु को किसी भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया।
कर्म को जाति बनाकर तो देश में 2 या 3 नामों से पहचाना जाता है। किन्तु विश्वकर्मा वंशजों को जो एक पिता की पाँच संताने हैं देश में लगभग 120 उपजातियों में विभाजित किया गया है। यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। इसी विभाजन के कारण हम देश के प्रजातंत्र में अपना स्थान नहीं बना पाए। अन्यथा जन्म से इंजीनियर बुद्धिमान समाज की यों दुर्गति नहीं होती। ऐसा नहीं है कि कहीं भी हमारे लोगों का लोकतंत्र पार्टियों में दखल नहीं है। कुछ दिन पूर्व ही पंजाब के मुख्यमंत्री के करीबी रिहाल जो कि रामगढ़िया फाउण्डेशन के अध्यक्ष हैं, मेरी पहचान हुई। मुझे जानकर बड़ा अच्छा लगा कि उन लोगों ने वहाँ विश्वकर्मा का बड़ा मंदिर बनवाया हुआ है। फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर हमारी राजनीति में पहचान ना के बराबर है। इक्के-दुक्के राज्य सभा सांसद हों या विधायक शेष शून्य हैं।
इस शून्य को अंकों में लाने के लिए हमें बहुत कोशिश करनी पड़ेगी। सबसे पहले जो उपजातियाँ अलग-अलग नामों से हैं, उन्हें "विश्वकर्मा" मंच पर एकत्र करना होगा। हम बढ़ई, लौहार, सुनार, ठठेरा, कसेरा, परमपिता की पाँचों संतानें मय, मनु, त्वष्टा, दैवज्ञ व शिल्पी के नाम से विभक्त हैं। ये प्रयत्न पूरा करने के लिए हमारा एक ध्वज, एक गान, देव एक प्रभुनाम विश्वकर्मा पूरे देश में प्रचलित करना होगा। तभी किसी भी पार्टी को हमारी ताकत का एहसास होगा। हम एक-दूसरे को छोटा-बड़ा न समझकर अपनों को गले लगाकर ही आगे बढ़ सकते हैं। जांगिड, सुथार, धीमान, रामगढ़िया, त्रेहान, कारपेन्टर, मिस्त्री और शर्मा जैसे उपनाम ही हमारी इस अवस्था के लिए जिम्मेदार हैं।
अब बात करें व्यक्तिगत स्तर पर राजनीति में प्रतिनिधित्व की तो पाएंगे कि हमारी कर्मशील जाति के पास राजनीतिक गलियारों में देने के लिए समय नहीं है। सुबह से शाम तक कारखानों में मशगूल रहने वाले लोग समय नहीं निकाल पाते कि नेतागिरी करे। आधुनिक जनरेशन पढ़ाई- लिखाई और उच्च पदों पर नौकरी करने में व्यस्त है। अत: सबसे पहले कुछ बच्चों को अर्थात् प्रारंभ से ही उनकी दिशा राजनीति में मोड़नी होगी। गली-मोहल्ले से लेकर ही ये प्रक्रिया आगे बढ़ती है। हमारे मंच से विधायक जी ने कहा था कि टिकिट थाली में परोसकर नहीं दी जाती, अपितु छिननी पड़ती है और यह थाली जिसमें परोसकर टिकट मिलती है। पहले तैयार करनी पड़ती है। छोटे स्तर के कार्यकर्ता से ही आगे बढ़ा जाता है। हर पार्टी अपने क्षेत्र में कार्यकर्ताओं की सक्रियता देखती है। पार्षद से प्रारंभ कर अपना करियर आगे बढ़ाने के लिए तन-मन-धन से मेहनत करनी पड़ती है। सेवाभाव, सबके साथ खड़े रहकर अपने क्षेत्र के विकास की भागीदारी करने से ही पार्टियाँ टिकट देती हैं। इसके अतिरिक्त भी साम-दाम-दंड-भेद सभी तरीके अपनाने पड़ते हैं।
अंत में बात करूंगी आधी आबादी की जिसका प्रतिनिधित्व करती हूँ। सरकार ने महिलाओं के लिए विशेष आरक्षण निर्धारित किया है "नारी शक्ति वंदन" के नाम से हमें सुअवसर प्राप्त हुआ है। अगले चुनावों में यह प्रक्रिया लागू होने की संभावना है। किंतु उसके लिए अभी से जुटना होगा। सीधे आपको घर से बुलाकर कोई टिकट नहीं देगा। सक्रिय महिलाओं को अपने रहवासी क्षेत्रों में महिलाओं से जन संपर्क, सुधार कार्य तथा अन्य गतिविधियों में संलग्न होना पड़ेगा। लाईमलाईट के युग में घर में दुबके रहने से काम नहीं चलेगा। किंतु एक बात यहाँ स्पष्ट करना चाहूंगी कि घर-परिवार के दायित्वों से मुक्त होकर ही अथवा अपनी जिम्मेदारियाँ पूर्ण कर ही इस क्षेत्र में कदम रखें। प्राय: देखा गया है कि कुछ स्त्रियाँ किटी पार्टी होटलिंग जैसे गतिविधियों में समय बर्बाद करती हैं या घंटों टीवी, मोबाइल पर लगी रहती हैं बहनों समय का सदुपयोग करें हम लोकसभा, विधानसभा, हर स्तर पर 33% आरक्षण का बिल पास कर एक सुनहरा मौका दिया गया है। समाज के लोगों को भी अपने घर परिवार, क्षेत्र की महिलाओं को आगे बढ़ाने, आर्थिक, सामाजिक स्तर पर साथ देने का प्रण करना होगा।

-- श्रीमती मधु शर्मा, इन्दौर