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विश्वकर्मा शिल्पकला विज्ञान विश्वकोष की रचना आवश्यक

जब कभी राजा, किसी राजा को पराजित करता है, तो वह सबसे पहले, वह पराजित देश की गरिमा और कृतियों को नष्टकर उस देश की पहचान मिटाने का प्रयास करता है। भारत वर्ष प्राचीन काल में सोने की चिड़ियाँ के नाम से जगत् प्रसिद्ध था इसीलिए, इस देश पर अनेकों बार हमले हुए, विजयी बादशाह अपने ऊँटों पर हीरे, मोती, सोना, चाँदी यहाँ से लाद कर ढ़ोते रहे। इस देश के साहित्य और सम्पत्ति इतने समृद्ध थे कि अंग्रेजों ने यहाँ के हीरा-मोती, सोने चाँदी तो लूटे ही, वे वैशाली और तक्षशिला जो लोकतंत्र की जन्मभूमि थी, उसको तहस-नहस कर दिया। विश्वप्रसिद्ध नालन्दा विश्वविद्यालय को ढाह दिया और वहाँ के ग्रंथों के समृद्ध पुस्तकालय में आग लगा दी। कहा जाता है, वहाँ इतने ग्रंथ थे कि वह पुस्तकालय छ: महीने तक जलता रहा।
पराजित देश की जनता को आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से कमजोर बना दिया जाता है, ताकि वे अपने देश के कला-विज्ञान, शौर्य-शक्ति, गौरव-गरिमा, संस्कृति, पुरषार्थ और पराक्रम को भुला बैठे मगर, स्वामी विवेकानन्द ने ठीक ही कहा है-भारत की सारी पौराणिक प्रेरणीय पुस्तकों को जलाकर भले ही खाककर दिया जाए, सिर्फ रामायण की एक सीता की स्मृति भी शेष रह जाए तो भारत फिर उठ खड़ा होगा और यह देश अपने समस्त प्राचीन गौरव-गरिमा को प्राप्त कर लेगा।
शिल्पाचार्य विश्वकर्मा के शिल्प कला-विज्ञान के चमत्कारों के वर्णन से हमारे प्राचीन ग्रंथ भरे पड़े हैं मगर, वे सब तोता-मैना की कथा-कहानी की तरह किताबों की कल्पना मात्र बनकर रह गयी है।
असल में जिस तरह ब्राह्मण-साहित्यों का अध्ययन और पठन प्रारम्भ हुआ, उसी तरह गैर-ब्राह्मण साहित्य का अध्ययन पठन-पाठन और लेखन नहीं हो सका। शिल्पाचार्य विश्वकर्मा पत्थर, लकड़ी, लोहा, ताम्बा, सोना मनु (लौह विशेषज्ञ) मय (काष्ट विशेषज्ञ) ताम्र विशेषज्ञ, स्वर्ण विशेषज्ञ, पाथर वट पाषाण शिल्पी ये पाँचों भगवान विश्वकर्मा के पंचपुत्र कहलाये जो पंच पदार्थों के आविष्कारक कहे जाते हैं।
उन पंच-तत्वों के आविष्कार विवेचक तथा पंच-तत्व पर आधारित सारे कला विज्ञान को विस्तार मिला, जिसके फलस्वरूप स्थापत्य अनेकों प्रकार के युद्धाशास्त्रों, रथों, यानों के आविष्कार हुए। आजकल विकसित कला के दर्शन होते हैं। यह सब उसी विश्वकर्मा शिल्प कला विज्ञान के चमत्कार हैं।
इतना होने पर भी हम शिल्पाचार्य विश्वकर्मा के संबंध में बहुत ही सीमित ज्ञान रखते हैं, क्योंकि उन पर कभी कोई शोध व अन्वेषण नहीं हुआ और न कोई प्रमाणिक ग्रंथ की रचना हो पायी। शिल्पाचार्य विश्वकर्मा ने कई देव लोकों के निर्माण किए, कितने धर्म स्थलों का निर्माण किया, कितने मंदिरों के निर्माण किए गए। कितने राज महल बनाए, कितने अस्त्र-शस्त्र बनाए। कितने यानों के निर्माण किए, उन सारी चीजों का अनुसंधान कर जो तथ्य सामने आएंगे उसके आधार पर देश-दुनिया को नए सिरे से विकसित करने में सहायता मिलेगी।
शास्त्रों के साथ-साथ शिल्पाचार्य ने अनेक राजनीति शास्त्रों तथा शासन शास्त्रों की रचना की जिनका उल्लेख आनन्द स्वरूप भारद्वाज ने अपनी पुस्तक विश्वकर्मा दिग्दर्शन में किया है। इसीलिए विश्वकर्मा समाज के लेखकों तथा धर्म ग्रंथों के जानकारों से आग्रह है कि विश्वकर्मा के संबंध में जितने भी प्रमाणिक ग्रंथ सरकारी प्रपत्र आदि कागजातों, ग्रंथों को संग्रहित किया जाए।
एक विश्वकर्मा बंधु ने लगभग 30 वर्ष पूर्व मेरे पास लगभग 30 पौराणिक ग्रंथों, सरकारी प्रपत्रों तथा विदेशों में प्रकाशित विश्वकर्मा संबंधी अनेकों जानकारियाँ दी थी, जो दुर्भाग्यवश आज मेरी भूल के कारण कहीं खो गयी हैं। अब बीती बातों का रोना लेकर बैठने के बजाय इसमें प्रयास किया जाना चाहिए। सारी सामग्रियों को एक जगह संग्रहित कर एक बड़ा विश्वकर्मा शिल्पकला विज्ञान विश्वकोश प्रकाशित कर सरकार के समक्ष विश्वकर्मा शिल्प, कला, विज्ञान के शोध करने के लिए विश्वकर्मा शोध संस्थान की स्थापना की माँग की जाए। माँगने से भीख मिलती है और संघर्ष करने से अधिकार मिलता है।

-- डॉ. लक्ष्मी निधि, जमशेदपुर