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सत्याचरण

सतिया सत मत छोड़जे, सत छोड़े पत जाय।
सत की बांधी लक्ष्मी, फेर मिलेगी नाय ।।
ऐसा बचपन में दन्त कथा में सुना था। संभव है लोक कथा में इस बात में सत्याचरण के लिए संकेत किया हो, पर बात पते की ही लगती है।
तैतरियो उपनिषद् शिक्षा वल्ली के ग्यारहवें अनुवाक् में ऋषि आश्रम से शिक्षा पूर्ण कर 25 वर्ष बाद विदाई लेते शिक्षार्थी को गुरु यह बात कहकर गृहस्थाश्रम के लिए आज्ञा करते थे। 'सत्यंवद धर्मं चर, मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव आदि प्रबोधन करते।'
शिवजी का वाहन नन्दी है। नन्दी धर्म स्वरूप माना है। धर्म के चार पद है - तप, शौच ( पावित्र्य), दया (दान) और सत्य। कलियुग में 'सत' ही पर पृथ्वी का व्यवहार आधारित रहा है धर्मार्थ । शेष पैर तो समाप्त प्राय: ही हो गये हैं। ऐसा लगता है।
सत्यनाम भगवान है, सत्य बड़ा बलवान है। सत्य जन्मता या मरता नहीं, सत्य घटता-बढ़ता भी नहीं, सत्य पिघलता जमता भी नहीं, चूंकि सत्य पदार्थ नहीं 'तत्त्व' है। सत्य Ever Green होता है। देश, काल, परिस्थिति का उस पर प्रभाव नहीं होता। सत्य शाश्वत, Eternal है, Fact है, Correct है, Real है, True- truth है, यह सत्य । इसीलिये परमात्मा का रूप 'सद्गुरु माना है। सत्य का स्वाद, रस, रूप, रंग नहीं देखना और स्पर्श भी नहीं होता लेकिन कुदरत, ईश की भांति महसूस किया जाता है, समझ में उतरता है। हृदयस्थ होता है।
सत्य के लिए शिवम् सुन्दरम् कहा है। गणपति ने ईश (ॐ), माता-पिता को ही सृष्टि-ब्रह्माण्ड समझ कर प्रदक्षिणा करके देवों में प्रथम स्थान लिया होगा, ऐसा नहीं लगता क्या ?
सत्यनिष्ठ प्रभु राम रहे। राम ने भी सत्य पर दृढ़ रहकर ही अवतार का कार्य किया। आज्ञा पालन, पत्नी, भाई, प्रजा और अन्यत्र सत्य को ही स्वीकार किया। सत्य निष्ठ में शौर्य, पराक्रम, प्रभाव और संयम होता है। सत्य ही प्रामाणिक होता है। सत्य अकाट्य होता है। सत्य का विरोध करने वाले अहंकारी हिरण्यकश्यप, जरासंघ, शिशुपाल, कंस, दुर्योधन, रावण आदि धराशायी हुए, काल के गाल में कौर बन गए।
सत्य सहज होता है। "सत्य वचन अरु नम्रता, परतिय मात समान। इतने पर हरि ना मिले तुलसीदास जमान ।" तुलसी ने भी सत्य वचन की प्रथम साक्षी दी है।
सत्याचरण का आरंभ वाणी से होता है, तदुपरांत क्रिया, व्यवहार में आता है। सत्य बोलने में कोई जोर नहीं लगता, सहज ही वचन मुखरित होते हैं। इसीलिए सत्य का प्रतिकार, विरोध करने वाले को 100 बार असत्य बोलने पर भी पराज्य ही स्वीकारनी पड़ती है। लोक व्यवहार में लोग सत्य कहने में डरते हैं, क्योंकि यत्र-तत्र, सर्वत्र असत्य को ही सत्य मान लिया है। इसी कारण ऐसों को सत्य में स्वाद नहीं लगता, झूठा मीठा लगता है।
सांच को कभी आंच नहीं नहीं झूठ की खैर।
जो सांचा बोले-चले, ता पर रब की मैर ।।
इसी कारण शास्त्रों में सत्य बोलने के लिए संकेत किया है, सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात मा ब्रूयात अप्रियं सत्यं। साचुं बोलो, मीठु (मधुर) बोलो, कडवुं साचुं ना बोलो। चक्षु से अंध को अंधा न कहकर 'सूरदास' संबोधन शोभनीय है। मानव के लिए गरीब का प्रयोग कैसे कर सकते हैं। उसमें सत्यरूप नारायण विद्यमान है, वह दरिद्र नारायण है। भगवान ने स्वयं दीनानाथ नाम स्वीकार किया है। अतः सत्य सापेक्ष होता है। उसे समझकर व्यवहार में लाना है। 'सत्य सनातन सुन्दर श्याम' श्रीकृष्ण ने सापेक्ष सत्य धर्मराज से उच्चरित करवाकर धर्म - सत्य की विजय करवायी। अधर्म का नाश हुआ। 'अश्वत्थामा हन्तो, नरोकुंजरोवा' घोषणा में अश्वत्थामा हाथी भीम द्वारा मारा गया था। सत्य था। द्रोण ने अपना पुत्र समझा, वह हताश हो गया।
मां की पिटाई में सत्य है, मास्टर की सजा में भी सच्चाई है, लेकिन टॉफी खिलाकर बेहोश करने वाले मवाली में असत्य है, कपट है।
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप, जाके हिरदय सांच है, ताके हिरदय आप ||
विचारक (कवि) ने सांच को तप से बढ़कर बताया है और स्वयं भगवान् ही बताया है। भगवान हृदयस्थ है यह 101% सत्य है।
कहते हैं विश्वामित्र ने सत्य की कसौटी के लिए राजा हरिश्चन्द्र से स्वप्न में आकर राज्यादि मांग कर ले लिया था । सवेरे वही दृश्य आने पर हरिश्चन्द्र ने स्वप्न को सत्य स्वीकार कर सब कुछ त्याग कर क्षण भर में प्रस्थान कर दिया। आज के सत्ता और वित्त के, वैभववान को क्या इससे प्रेरणा लेनी चाहिए ? महात्मा गांधी ने हरिश्चन्द्र का नाटक देखकर सत्य मन्त्र स्वीकार कर लिया। देश की आजादी में 'सत्याग्रह' दर्शन बन गया। गाँधी दर्शन का सूत्रपात हुआ । विश्व में गांधी महात्मा गांधी हो गया। सत्य को जीवन में आत्मसात् करने पर ही निखार आता है। सत्य जीवन में पचाना पड़ता है। 'मेहंदी (हीना) रंग लाती है, पत्थर पे पिस जाने के बाद' क्या हमारी नई पीढ़ी को शिक्षा और संस्कार के द्वारा ऐसे मूल्यों का सींचन करना चाहिए? विचारणीय है।
कक्षा दशम् में अंग्रेजी में एक कहानी पढ़ी थी, पढ़ाई थी। एक व्यक्ति Oracle नामक विचारक के पास गया। उसने अपना भविष्य पढ़ने के लिए विचारक से निवेदन किया। उसने व्यक्ति को बताया, तेरी मृत्यु सिर पर घर पड़ने से होगी। व्यक्ति चला गया। वह आकाश के नीचे खुले में ही रहता, खाता, सोता, काम करता। घर में नहीं जाता था। वह मर गया। उसके परिजन विचारक की घोषणा के विरोध में शिकायत करने गये। व्यक्ति के मरने का कारण बताया कि उसके सिर पर ऊपर चील के पंजों से कछुआ फिसल कर गिरने से हुई। Oracle ने कयास लगाकर कहा, कछुआ का शरीर भी घर ही था Oracle Never tells lie.
यह पाश्चात्य कहानी है। क्या यह सत्य था या कयास, अटकल ?
यूरोप में रेनेसा, रिवोलुशन और रिफॉर्मेशन जैसी क्रांति से पूर्व पृथ्वी को चपटी और स्थिर बताते थे। मरने पर धर्माधिकारी (पोप) से पास लेकर स्वर्ग-नरक में जाने का निश्चय किया जाता था । गैलेलियो आदि विज्ञान विचारकों ने असत्य के खिलाफ आवाज उठाई। प्रयोग कर बताया कि पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूर्णन करती है। सत्य के मसीहाओं को यातनाएं दीं। वे समाप्त हो गए परंतु सत्य का सिद्धांत निरूपण होकर ही रहा। सत्यमेव जयते।
आज हमारे देश में कृष्ण की गीता पर हाथ रखवाकर कठघरे में खड़ा करके न्यायालयों में सत्य की कसौटी की जाती है। कितना सत्य प्रकट होता है ? होता भी होगा। अधिकतर लोगों ने सुना, देखा और भुगता भी होगा। आज सत्याचरण का सनक या पागलपन माना जाने लगा है, परंतु 'सत्य का बोलबाला और झूठे का मुँह काला' ही रहेगा।
आज शिक्षण, शासन, कार्यालय, व्यापार, मजदूरी, ज्योतिष, सब्जी वाले, कान्ट्रेक्टर्स में कितना सत्याचरण हो रहा है? न्यूनाधिक सब जानते हैं। घर पर लोन उगाई वाला आता है तो बच्चे को कहते हैं। बोलो 'पापा घर में नहीं है।' बच्चा भी सच्चा है। कहता है, 'पापा कहते हैं, पापा घर में नहीं है।' क्या मखौल है ? जन्मते ही झूठ की छुट्टी। देश का क्या होगा ? मानवता का क्या होगा ?
30-35 वर्ष पूर्व की सत्य घटना है एक विश्वकर्मा गेंती फैक्ट्री को रेलवे ने गेंती का टेण्डर दिया। रेलवे तकनिकी आया। 500 पीस थे। एक-एक पीस को दोनों सिरों से निहाई पर चोट करवा कर जांच रहा था। जब तक अंतिम गेंती की कसौटी नहीं हुई वह डटा रहा। मध्याह्न का भोजन भी बाद में किया। सारे पीस खरे निकले। वह फैक्ट्री अभी भी चल रही है।
माल और सेम्पल (वस्तु) निर्माण और टेण्डर में कितना सत्य पालन हो रहा है। आर्किटेक्ट और उत्पादक विश्वकर्मा बंधु एप्रूव्ड सामान के बारे में सोचते हैं? शायद नहीं। यदि सोचें तो दूसरों की तुलना न कर सत्य स्वीकारने का संकल्प लें। उनके घर और घर में सत्य का श्री गणेश पक्का है। देखें, बीड़ा कौन उठाता है और सत्याचरण को कटिबद्ध होता है। विश्वकर्मा भगवान शक्ति, समझ और प्रेरणा प्रदान करें ।
इतिशुभम् ।

- हेमाराम वी. सुथार, रेवदर