मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम
भगवान् राम सनातन संस्कृति के प्रतीक हैं। श्री राम को परब्रह्म का अवतार माना गया है, जो इस धरा धाम पर मर्यादाओं की रक्षा के लिए अवतरित हुए। धर्म की स्थापना और सदाचार संस्थापन ही उनका मुख्य उद्देश्य था । भारतीय जन जीवन में 'राम' नाम उसी प्रकार अनुस्यूत है, जिस प्रकार दुग्ध में धवलता धर्म, आदर्श और चरित्र की त्रिवेणी के वे मूर्तिमान स्वरूप हैं।
भारतीय आर्ष मेधा ने 'अमूर्त धर्म' का मूर्त रूप भगवान श्री राम को प्रतिपादित करते हुए कहा है- " रामो विग्रहःवान् धर्मः' उनका चरित मानव मात्र के लिए तेजोमय स्तम्भ है। श्री राम परिपूर्णतम ईश्वर तो हैं ही साथ ही पूर्ण मानव भी हैं। उनके लीला चरित्र में अगणित परस्पर विरोधी भावों और गुणों का युगपद् विलास दृष्टिगोचर होता है। जैसे- भगवत तत्त्व के लीला विलास के साथ मानवता का परमोत्कर्ष प्रकाश, अनन्त ऐश्वर्य के साथ असीम माधुर्य, वज्रवत न्याय कठोरता के साथ कुसुमवत प्रेम कोमलता, समस्त विषमताओं के साथ नित्य सहज समता आदि ।
सनातन आर्ष साहित्य वेद-पुराण और इतिहास में भगवान राम की कथाओं और लीलाओं का वर्णन विशद् रूप में हैं। उनके जीवन चरित्र की घटनाएं, लीला स्थल, लक्षण और चिह्न जिनका वर्णन शास्त्रों में उपलब्ध है आज भी जन मानस को प्रेरणा प्रदान करते हैं। अतः राम का अवतार व लीलाएं और कथाएं भारतीय जनमानस की सर्वाधिक श्रद्धा की प्रतीक हैं।
लोक मर्यादा के आदर्श भगवान् श्री राम का जीवन मर्यादाओं के प्रति सतत् जागरूकता और निष्ठा का प्रतीक है। वे कर्त्तव्य बुद्धि से सदैव मर्यादा का निर्वाह करते थे। श्री राम जैसे आदर्श चरित्रों के आचरण द्वारा ही मानवता का मार्ग प्रशस्त होता है।
गीता में भगवान कृष्ण ने कहा भी है:-
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः ।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ।। गीता 3-21
अर्थात् श्रेष्ठ व्यक्ति जो आचरण करते हैं, अन्य पुरुष भी वैसा- वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है।
जीवन में कई बार ऐसे अवसर आते हैं, जब व्यक्ति अपना विवेक खोकर लोक मर्यादा का उल्लंघन करने के लिए तत्पर हो जाता है अथवा कभी-कभी अपनी दुर्बलता छिपाने के लिए लोक मर्यादा को, शास्त्र मर्यादा को ही छिन्न-भिन्न करने का प्रयास करता है, परन्तु श्री राम कर्तव्य निष्ठा के प्रति सदैव आस्थावान् रहे, उन्होंने कभी भी लोकमर्यादा के प्रति दुर्बलता नहीं प्रकट होने दी। वनगमन के पूर्व का समय उनकी मर्यादा निष्ठा का सबसे कठिन परीक्षा स्थल था। यदि वे चाहते तो पुरवासियों और मंत्रियों के समर्थित सहयोग से सहज ही इसे प्राप्त कर सकते थे, किन्तु उन्होंने लोक मर्यादा का पालन करते हुए वन गमन को ही स्थान दिया।
भगवान श्री राम के समान मर्यादा रक्षक आज तक कोई दूसरा नहीं हुआ। उन्होंने धर्म की रक्षा और लोगों के उद्धार के लिए स्वयं को एक आदर्श सदाचारी मानव के रूप में ही प्रस्तुत किया। उनके आदर्श लीला चरित्रों को पढ़ने, सुनने और स्मरण करने से अत्यन्त पवित्र भावों का उदय होता है। उनके पवित्र कर्म अनुकरणीय हैं। श्री राम सद्गुणों के समुद्र हैं। सत्य, सौहार्द, दया, क्षमा, मृदुता, धीरता, वीरता, गम्भीरता, पराक्रम, निर्भयता, विनय, अपरिमित शांति, तितिक्षा, संयम, निःसपृहता, नीतिज्ञता, तेज, प्रेम, त्याग, एक पत्नी व्रत, प्रजारञ्जकता, मातृपितृ भक्ति, गुरु भक्ति, मातृ प्रेम, मैत्री, शरणागत वत्सलता, सरलता, व्यवहार कुशलता, दुष्टों का दलन, साधु रक्षण, निर्वेरता, लोकप्रियता, धर्म परायणता आदि अनन्त गुणों का मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम में समावेश था। ये सभी सद्गुण संसार के किसी एक व्यक्ति में प्राप्त होना संभव नहीं है माता-पिता, बन्धु- मित्र, स्त्री-पुत्र, सेवक प्रजा आदि के साथ उनके जैसा आदर्श व्यवहार वर्तमान में बहुत कम दृष्टिगोचर होता है।
राम राज्य का महान् आदर्श : भगवान श्री राम के गुण और चरित्र इतने प्रभाव पूर्ण हैं कि वे सम्पूर्ण प्रजा पर अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं। इसीलिए राम राज्य सुख-शांति का एक आदर्श प्रतीक है। मानस में रामराज्य का वर्णन इस प्रकार किया गया है-
दैहिक दैविक भौतिक तापा राम राज नहीं काहुहि व्यापा।। सब नर करहिं परस्पर प्रीती । चलहि स्वधर्म निरत श्रुतिनीती ।। राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी।। अल्प मृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा ।। नहिं दरिद्र कोड दुखी न दीना। नहिं कोड अबुध न लच्छन हीना ।। सब निर्दभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुनी ।। सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी सब कृतग्य नहीं कपट सयानी।।
अर्थात् भय, शोक, रोग तथा दैहिक, दैविक और भौतिक ताप कहीं नहीं है। राग-द्वेष, काम-क्रोध, लोभ-मोह, झूठ-कपट, प्रमाद- आलस्य आदि दुर्गुण देखने को भी नहीं मिलते। सब लोग परस्पर प्रेम करते हैं और स्वधर्म में दृढ़ हैं। धर्म के चारों चरणों सत्य, शौच, दया और दान से जगत् परिपूर्ण है। स्वप्न में भी कभी पाप नहीं है। स्त्री-पुरुष सभी राम भक्त हैं और सभी परमगति के अधिकारी हैं। प्रजा में न छोटी उम्र में किसी की मृत्यु होती है। दरिद्र, दुखी, दीन और मूर्ख कोई भी नहीं है। सभी नर-नारी दम्भ रहित, धर्म परायण, अहिंसा परायण, चतुर, गुणवान, गुणों का आदर करने वाले, पंडित, ज्ञानी और कृतज्ञ हैं।
सभी उदार, परोपकारी, दूसरों की सेवा में रत और तन-मन- वचन से एक पत्नी व्रती हैं, स्त्रियाँ सभी पतिव्रता है। ईश्वर की भक्ति और धर्म में सभी नर-नारी ऐसे संलग्न हैं मानो भक्ति और धर्म साक्षात् मूर्तिमान होकर उनमें निवास कर रहे हों। पशु-पक्षी सभी सुन्दर और सुखी हैं। भूमि सदा हरी-भरी रहती है और वृक्षादि सभी फले-फूले रहते हैं। सूर्य-चन्द्रमादि देवता बिना ही मांगे समस्त सुखदायी वस्तुएं प्रदान करते हैं। सारे देश में सुख-शांति का साम्राज्य व्याप्त है।
राम राज्य की यह व्यवस्था महान् आदर्श है। आज भी संसार में जब कोई किसी राज्य की प्रशंसा करता है तो वह सर्वोच्च प्रशंसा में यही कहता है कि बस, यहाँ तो राम राज्य है जिनके गुणों से प्रभावित राज्य में प्रजा भी इतनी गुणवान् हों, उनके अपने गुण और चरित्र कैसे होंगे, इसका अनुमान करने मात्र से हृदय में एक पावन स्फुरणा और प्रेरणा का संचार होता है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य सदाचार, संयम, स्वार्थ त्याग, माता- पिता, गुरुजनों की सेवा और सम्मान, परस्पर प्रेम सौहार्द तथा प्राणिमात्र में भगवद्बुद्धि की भावना और उनकी सेवा हमारी संस्कृति और धर्म के आधार स्तम्भ हैं।
वर्तमान परिस्थितियों का चिंतन करने पर प्रतीत होता है कि इन सभी आदर्श गुणों का ह्रास हो रहा है। यदि इसका कारण खोजा जाए तो विदित होगा कि सर्वत्र मर्यादाहीनता, उच्छृंखलता, अनाचार, दुराचार, अत्याचार, भ्रष्टाचार एवं व्यभिचार का बोलबाला है। सत्यनिष्ठ, ब्रह्मचर्य एवं मर्यादित जीवन का लोप सा हो रहा है। भोग प्रधान जीवनशैली अमर्यादित से बढ़ रही है। परस्पर विद्वेष व कलह, मुकदमेबाजी, चोरी-डकैती, मार-काट, जीव हिंसा, रिश्वत खोरी एवं स्वार्थ परायणता सीमा को पार कर चुके हैं। युवकों एवं विद्यार्थियों में अनुशासन हीनता, गुरुजनों के प्रति अवज्ञा एवं उद्दण्डता स्वाभावगत हो चुकी है। आए दिन प्राकृतिक प्रकोप होते रहते हैं।
इस सारी सोचनीय हास की गति को रोकने के लिए भगवान श्री राम के आदर्श चरित्र और लीला कथा का स्मरण, चिन्तन-मनन और पठन की नितान्त आवश्यकता है। श्री राम हमारी अध्यात्म प्रधान संस्कृति के प्रकाश पुंज हैं, उनकी आराधना और उपासना हर आस्तिक के घर में होती है। भगवान राम का मर्यादा रक्षक व्यक्तित्व और उनके प्रति अनन्य निष्ठा वर्तमान समस्याओं के निदान में महत्त्वपूर्ण आधार हैं।
राम अनुज आदरश अति, राम भक्त सुख सार है।
राम चरित पावन परम, होवे सुनि भव पार है।
-- डॉ. गुरुदत्त शर्मा, ब्यावर