चीन के कृत्रिम सूरज की सच्चाई
आपने चीन के बने चाइना फोन के बारे में तो सुना ही होगा। कई बार स्वयं भी इसके उपयोगकर्ता बने होंगे और अनुभव काफी कष्टकारी भी रहा होगा। चीन के उत्पादों की गुणवत्ता आज किसी से छिपी नहीं है। लेकिन इस बार तो चीन ने हद ही कर दी है। कहा जा रहा है कि चीन ने अपना खुद का कृत्रिम सूरज बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है। पिछले लंबे समय से चीन कृत्रिम सूरज के साथ प्रयोग कर रहा है, जिसे दुनिया के कई वैज्ञानिकों ने पूरी दुनिया के लिए ही खतरनाक बताया है और चीन के इस कृत्रिम सूरज के औचित्य पर सवाल उठाए है। दरअसल, चीन ने अपना यह कृत्रिम सूरज हेफेई में स्थित न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर में तैयार किया है और करीब 17 मिनट तक इस न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर से 7 करोड़ डिग्री सेल्सियस ऊर्जा निकलती रही, जो असली सूरज से निकलने वाली ऊर्जा से भी ज्यादा है। वास्तविक सूर्य अपने मूल में लगभग 15 मिलियन डिग्री का तापमान पैदा करता है। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने कृत्रिम सूरज के साथ यह प्रयोग बीते 30 दिसम्बर को किया है और ऐसा पहली बार हुआ है जब इतनी ज्यादा देर के लिए परमाणु फ्यूजन रिएक्टर से इतनी ज्यादा ऊर्जा निकलती रही। चीन ने इससे पहले अपने कृत्रिम सूरज से करीब 1.2 करोड़ डिग्री ऊर्जा निकाली थी और अब उसने अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन का कृत्रिम सूरज अपनी नई तकनीकी के इस्तेमाल से 20 मिनट तक के लिए चला। इस दौरान उसका तापमान 70 लाख डिग्री तक चला गया। यानी कहा जाए तो असली सूरज से पांच गुना ज्यादा गर्म हो गया। हालांकि रिपोर्ट्स के मुताबिक वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस मशीन से न्यूक्लियर फ्यूजन की शक्ति का इस्तेमाल करने में मदद मिलेगी। चीन ने इस प्रोजेक्ट की शुरूआत वर्ष 2006 में की थी। चीन ने कृत्रिम सूरज को एचएल2एम नाम दिया है, इसे चाइना नेशनल न्यूक्लियर कॉरपोरेशन के साथ साउथ वेस्टर्न इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स के वैज्ञानिकों ने मिलकर तैयार किया है। इस तकनीक को कृत्रिम सूरज इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह परमाणु संलयन प्रतिक्रिया की नकल करता है जो असली सूर्य की शक्ति देता है। जो ईधन के रूप में हाइड्रोजन और ड्यूटेरियम गैसों का उपयोग करता है। जानकारों के मुताबिक शोधकर्ताओं ने कृत्रिम सूर्य को 70 मिलियन डिग्री पर 1,056 सेकंड या 17 मिनट, 36 सेकंड तक चलाने में कामयाब रहे।
कृत्रिम सूरज बनाने के लिए 10,000 से अधिक चीनी और विदेशी वैज्ञानिक शोधकर्ताओं ने बहुत मेहनत की। हाइड्रोजन आइसोटोप को प्लाज्मा में उबालने, उन्हें एक साथ फ्यूज करने और पावर छोड़ने के लिए अत्यधिक उच्च तापमान का इस्तेमाल किया। आपको बता दें कि प्लाज्मा वो है, जिसे अक्सर ठोस, तरल और गैस के बाद पदार्थ की चौथी अवस्था के रूप में संदर्भित किया जाता है और यह तब उत्पन्न होता है जब गैस में परमाणु आयोनाइज्ड गैस बनती है। चीन ने एक्सपेरिमेंटल एडवांस्ड सुपरकंडक्टिंग टोकामक हीटिंग सिस्टम प्रोजेक्ट (ईस्ट) शुरू किया है, जिसके तहत उसने कृत्रिम सूरज तैयार किया है। इसमें हैवी हाइड्रोजन की मदद से हीलियम पैदा किया जाता है। अपने इस प्रोजेक्ट पर चीन ने पानी की तरह पैसा बहाया है। चीन पहले ही इस परियोजना पर करीब 701 मिलियन पाउंड खर्च कर चुका है। हेफेई इंस्टीटयूट ऑफ फिजिकल साइंस के उप निदेशक सोंग यूंताओ ने कहा कि उन्हें 2040 तक इससे बिजली पैदा करने की उम्मीद है।
अब यह भी समझ लें कि जिस कृत्रिम सूरज की बात की जा रही है वह आसमान में दिखने वाले सूरज जैसा नहीं है। इसकी कहानी अलग है। यह किसी ग्रह की तरह नहीं है कि उसके ताप से पृथ्वी पर रोशनी आ जाएगी। दरअसल, सोशल मीडिया पर जिस सूरज की बात की जा रही है वह फ्यूजन एनर्जी रिएक्टर है। इसे ही मानव निर्मित सूर्य भी कहा जाता है, इसलिए यह सूरज के नाम से चर्चा में है। इसे सूरज मानने का कारण है सूरज की तरह ही यह रिएक्टर भी न्यूक्लियर फ्यूजन के सिद्धांत पर आधारित है और इसलिए ये इतने ज्यादा गर्म होते हैं। इसमें ईंधन के तौर पर हाइड्रोजन और ड्यूटीरियम का प्रयोग किया जाता है। इसके पीछे चीन के वैज्ञानिक लंबे समय से लगे हैं और उनके पीछे ये करने का कारण एक ऊर्जा का भंडार इकट्ठा करना है।
चीन इस पर इसलिए काम कर रहा है, क्योंकि इससे पेट्रोल डीजल आदि का विकल्प तलाशा जा सके। अभी इसका तापमान 70 मिलियन सेल्सियस है और जल्दी ही इसे 100 मिलियन तक पहुँचाना है। अगर ऐसा हो जाता है तो चीन ऊर्जा के मामले में काफी आगे निकल जाएगा। चीनी वैज्ञानिक इसे मनुष्य के लिए गर्मी और प्रकाश की जरूरतों को पूरा करने वाला एक बेहतरीन प्रोजेक्ट बता रहे हैं। एक तरफ चीन ने दावा किया है कि उसका मकसद स्वच्छ ऊर्जा है, ताकि ग्रीन हाउस गैसों को खत्म करने में मदद मिले। लेकिन चीन के हाथ लगने वाली इस अपार शक्ति ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को तनाव में ला दिया है। चीन के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी टेक्नोलॉजी हासिल कर ली है, जो उसे बाकी देशों से काफी आगे ले जाता है, जिसे बनाने में अभी भी विश्व के सभी संपन्न देश संघर्ष कर रहे हैं। वहीं एक्सपर्ट्स का कहना है कि चीन के हाथ में ये बहुत बड़ी कामयाबी लगी है और अब चीन को देखकर अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों को भी इस टेक्नोलॉजी में रिसर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। बहरहाल, हमें चीन के नकली सूरज से सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि कोरोना वायरस को लेकर खबरें आई थीं कि इसका जन्म चीन के ही लैब में हुआ था, जो आज पूरी दुनिया के लिए खतरा बना हुआ है। कहीं ऐसा न हो कि चीन इसके जरिए भारत और पूरी दुनिया के लिए खतरा बन जाए।
-- -देवेन्द्रराज सुथार, जालौर