सामाजिक चेतना के चितेरे कथाशिल्पी प्रेमचंद
हिन्दी और उर्दू के महनीय कथाकार प्रेमचंद ने समाज में हाशिए पर खड़े लोगों को अपनी रचना के केन्द्र में रखा है। स्त्रियों और दलितों के प्रति उनका अलग नज़रिया है। प्रेमचंद की रचनाओं में दलितों और स्त्रियों के प्रति उनकी संवेदना को हम ठाकुर का कुआं' कहानी या फिर 'कर्मभूमि' और 'गोदान' उपन्यासों में देख सकते हैं। प्रेमचंद का साहित्यिक योगदान भारत ही नहीं विश्व पटल पर रहा है। जिस समय भारत में प्रेमचंद अपनी लेखनी से समकालीन परिदृश्यों को लोगों के सामने अभिव्यक्त कर रहे थे, उसी समय विश्व पटल पर लियो टॉलस्टॉय, मैक्सिम गोर्की उनके समकालीन थे। इन तीनों ने वार एंड पीस, द मदर और गोदान जैसी कालजयी रचनाएं विश्व साहित्य को दी। प्रेमचंद इन तीनों में इसलिए खास है, क्योंकि इन्होंने अपनी रचनाओं में किसान-मजदूरों की स्थिति का यथार्थपूर्ण चित्रण किया है।
उपन्यास के क्षेत्र में प्रेमचंद के अवदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह माने जाते हैं। कहा जाता है कि अगर भारत के इतिहास की पुस्तकें खो जाएं तो प्रेमचंद के साहित्य के आधार पर दोबारा भारत का इतिहास लिखा जा सकता है। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी को तिलस्म और जादूगरी की दुनिया से निकाल कर आम आदमी की भाषा बना दिया। इसलिए उनकी प्रत्येक कहानी व उपन्यास अपने समय व समाज से जुड़ी है। प्रेमचंद को पढ़ना पूरे युग को पढ़ना है। उनकी पहली रचना (कहानीसंग्रह) सोजे-वतन से लेकर अंतिम पूर्ण रचना गोदान तक की यात्रा भारतीय समाज से परत दर परत साक्षात्कार की यात्रा है। औपनिवेशिक सत्ता और उसकी टकराहट के साथ-साथ उन्होंने भारतीय समाज की अंतर्निहित कमजोरियों पर करारी चोट की है। हालांकि सिर्फ सामाजिक ताने-बाने में प्रेमचंद को रखना उन्हें सीमित करना है। 'ईदगाह' जैसी कहानी जहाँ बाल मनोविज्ञान पर प्रकाश डालती है, वहीं 'बड़े भाई साहब' जैसी कहानी शिक्षा-व्यवस्था और परीक्षा-पद्धति पर व्यंग्य करती है। प्रेमचंद के गोदान का होरी आज भी खेतिहर की उस स्थिति को दर्शाता है जहाँ सैंकड़ों किसान आत्महत्या करने को विवश हो रहे हैं। प्रेमचंद का होरी आज भी उन्हीं सवालों को झेल रहा है, जिनके लिए वो शोषक ढांचे की क्रूरता को प्रेमचंद के गोदान के समय में झेलता था। गोदान में जब होरी का बेटा गोबर अपनी गर्भवती प्रेमिका के साथ गांव में रहने का साहस नहीं जुटा पाता तो लखनऊ भागकर अंतत: चीनी मिल में काम करने लगता है। गोबर के चरित्र में आज हम भारत के उस श्रमिक वर्ग को देख सकते हैं, जो नौकरी की तलाश में दूसरे क्षेत्र की ओर पलायन करते हैं। यह वह श्रमिक हैं जिनका आर्थिक और सामाजिक रूप से शोषण किया जाता है और रोजी-रोटी के नाम पर कुछ पैसे थमा दिए जाते हैं।
एक महान कथाशिल्पी युगद्रष्टा होता है। वह ऐसे चरित्रों का निर्माण करता है, जिसकी मिसालें आने वाली कई पीढ़ियों में पाई जाती है। उदाहरण के रूप में प्रेमचंद की कहानी 'कफन' की यदि बात करें तो उनके घीसू और माधव निकम्मे, कामचोर, निठल्ले जरूर हैं, परंतु वह अकारण नहीं हैं। प्रेमचंद उसका तर्कसंगत कारण भी पेश करते हैं। वे लिखते हैं 'जिस समाज में रात-दिन मेहनत करने वालों की हालत उनकी हालत से कुछ बहुत अच्छी न थी और किसानों के मुकाबले में वे लोग जो किसानों की दुर्बलताओं से लाभ उठाना जानते थे, कहीं ज्यादा सम्पन्न थे, वहाँ इस तरह की मनोवृत्ति का पैदा हो जाना कोई अचरज की बात न थी। आज भी ऐसे लोग भरे पड़े हैं जो दूसरों के श्रम का शोषण कर अपना महल बना चुके हैं। घीसू और माधव ऐसे शोषकों के लिए मुंह तोड़ जवाब है। सोजे-वतन की कहानियों की मार्फत प्रेमचंद प्रस्तावित करते हैं कि देश राजा से नहीं बल्कि रिआया से चलता है।
प्रेमचंद का हर वर्ग के पात्रों विशेषकर गरीब पात्रों से कितना लगाव था इसका एक रोचक उदाहरण यह कि एक बार वे महादेवी वर्मा जी के घर गए तोमहादेवीकी काम करने वाली बाई ने बताया कि वे विश्राम कर रही हैं। प्रेमचंद जी ने बाई से कहा कि महादेवी जी को वे विश्राम करने दे तथा विश्राम में अकारण विघ्न न डाले। तब तक प्रेमचंद जी आंगन में उस बाई के साथ फर्श पर बैठे गाँव-खेत की असंख्य बातें करते रहे। महादेवी जी की आंख खुली और उन्होंने प्रेमचंद जी को बाहर आंगन में बैठा पाया तो बाई से गस्से से बोली'तुमने मुझे जगाकर बताया क्यों नहीं कि प्रेमचंद जी आए हुए हैं। इस पर प्रेमचंद जी मुस्कुरा कर महादेवी जी से बोले कि आपके न जागने से मुझे बहुत लाभ हुआ। मुझे इस महिला व इसके गाँव के लोगों की कई बातें पता चली जो मेरे लेखन में बहुत उपयोगी होंगी। प्रेमचंद समाज के हर पात्र, चाहे वह निम्न वर्ग का हो या राजसी ठाट-बाट वाला, को नजदीक से जानने में एक अनूठा आनंद महसूस करते थे व उसे अपरिहार्य भी समझते थे और यही उनकी मौलिकता भी थी और लेखन-शक्ति भी।
आम आदमी के दुःख-दर्द, संवेदनाओं को शाब्दिक जीवंत अभिव्यक्ति देने वाले कलम के सिपाही प्रेमचंद के साहित्य में समाज का जो चित्रण है वह समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र के सार को समेटे हुए हैं। इन शास्त्रों में सिर्फ मूल्य और सिद्धांत हैं, प्रेमचंद के उपन्यासों और कहानियों में जो एहसास है इसकी पीड़ा को समझने के लिए यह आवश्यक है। यह अंतर इसलिए भी है क्योंकि प्रेमचंद ने इन एहसासों को खुद जिया और महसूस किया है। मानवीय संवेदनाओं के सभी आयामों को चित्रित करती उनकी कहानियाँ उद्वेलित और आंदोलित करती है तथा शासक वर्ग को दर्पण दिखाती है। प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों में पात्रों की प्रस्तुति किसी को भी प्रभावित किए बिना नहीं रहती। प्रेमचंद ने अपने साहित्य में सभी पात्रों को बहुत ही जीवंत के निकट रखा है इसलिए यह कोई नहीं कह सकता कि इनमें से सबसे अच्छा पात्र कौन है। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में जनसाधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है। उनकी कृतियाँ भारत के सर्वाधिक वृहद और विस्तृत वर्ग की कृतियाँ हैं।
-- -देवेन्द्रराज सुथार, जालौर