बढ़ता मोटापा
एक ऐसी दुनिया में जहां खाना मिलना मुश्किल है, वहां यह आश्चर्य की बात नहीं है कि मोटापे को समृद्धि की निशानी माना जाता है। लेकिन आज स्थिति अलग है। मोटापा अब एक बीमारी बन चुका है। लेंसेट द्वारा जारी नए अध्ययन से पता चलता है कि 2022 मैं दुनिया में 1 अरब से अधिक लोग अब मोटापे के साथ जी रहे हैं। दुनिया भर में वयस्कों में मोटापा 1990 के बाद से दोगुना से अधिक हो गया है और बच्चों और किशोरों (5 से 19 वर्ष की आयु) में यह चार गुना हो गया है। आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 2022 में 43 प्रतिशत वयस्क अधिक वजन वाले थे।
जहां अक्सर मोटापे पर सारा ध्यान केंद्रित किया जाता है, वहां यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि कुपोषण विभिन्न रूपों में मौजूद है, जिसमें अल्पपोषण और अतिपोषण दोनों शामिल हैं। लैंसेट अध्ययन विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया और उप-सहारा अफ्क्रीका जैसे क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में अल्पपोषण की निरंतरता पर प्रकाश डालता है। चिंताजनक रूप से मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के साथ-साथ प्रशांत और कैरेबियन में द्वीप राष्ट्रों ने 2022 में कम वजन और मोटापे की उच्चतम संयुक्त दर प्रदर्शित की, जो कुपोषण के वैश्विक बोझ की जटिल प्रकृति को रेखांकित करती है। कुपोषण, चाहे अल्पपोषण के माध्यम से हो या मोटापे के माध्यम से, स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है। 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में अल्पपोषण मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण बना हुआ है, जो इस आयु वर्ग में होने वाली सभी मीतों में से आधी के लिए जिम्मेदार है। इसके विपरीत मोटापा हृदय रोग, मधुमेह और कुछ प्रकार के कैंसर सहित कई गैर-संचारी रोगों से जुड़ा हुआ है, जो दुनिया भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां पैदा करता है।
लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार मोटापे का सबसे ज्यादा असर भारत पर हुआ है। खासकर युवा पीढ़ी पर सर्वविदित है कि भारत में 50 प्रतिशत से अधिक आबादी की उम्र 25 साल से कम है। वहीं 65 प्रतिशत आबादी ऐसी है जिसकी उम्र 35 साल से कम है। लैंसेट की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 1990 में 2 लाख युवा लड़के मोटापे से जूझ रहे थे। 2022 में ये संख्या 73 लाख हो चुकी है। लड़कियों में भी ये संख्या 2 लाख के आस-पास थी। अब ये नंबर 52 लाख हो चुका है। वयस्कों की बात करें तो 1990 में जहां 11 लाख पुरुष भारत में मोटापे का शिकार थे, 2022 में वही संख्या 2.6 करोड़ हो गई है। महिलाओं में 1990 में 24 लाख महिलाएं मोटापे का शिकार थीं। 2022 में ये नंबर 4.4 करोड़ पहुंच गया है। ये आंकड़े व्यक्तिगत रूप से तो परेशानी में डालने वाले हैं ही, साथ ही देश के तौर पर भी ये एक गंभीर खतरे की तरफ इशारा कर रहे हैं।
दरअसल, मोटापा एक जटिल दीर्घकालिक बीमारी है। इसके कारणों को अच्छी तरह से समझा जाता है, साथ ही संकट को रोकने के लिए आवश्यक हस्तक्षेपों को लागू भी किया जाता है। हालांकि, उन पर अमल नहीं किया जाता। 2022 में विश्व स्वास्थ्य सभा में सदस्य देशों ने मोटापे को रोकने के लिए डब्ल्यूएचओ एक्सेलेरेशन योजना को अपनाया, जो 2030 तक देश स्तरीय कार्रवाई का समर्थन करता है। आज 31 सरकारें इस योजना को लागू करके मोटापे की महामारी पर अंकुश लगाने का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं। बहरहाल, तमाम प्रयासों के बावजूद मोटापे से निपटने के उपायों का कार्यान्वयन एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है। प्रभावी हस्तक्षेप में बाधाएं सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और सांस्कृतिक मानदंडों से लेकर नीतिगत जड़ता और व्यावसायिक हितों तक होती हैं। मोटापे की महामारी से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो व्यक्तिगत, सामुदायिक और सामाजिक स्तर पर मोटापे के अंतर्निहित निर्धारकों को संबोधित करें। व्यक्तिगत स्तर पर स्वस्थ खानपान की आदतों, नियमित शारीरिक गतिविधि और तनाव प्रबंधन रणनीतियों को बढ़ावा देना मोटापे की रोकथाम और प्रबंधन के महत्त्वपूर्ण घटक हैं नागरिकों को अपने स्वास्थ्य के बारे में सूचित विकल्प चुनने के लिए सशक्त बनाना और किफायती, पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक पहुंच प्रदान करना मोटापे से निपटने के लिए आवश्यक कदम हैं।
इसके अलावा स्वस्थ जीवन के लिए सहायक वातावरण बनाने के उद्देश्य से नीतिगत हस्तक्षेप अनिवार्य हैं। इसमें अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के विपणन को सीमित करने के लिए नियमों को लागू करना, शहरी नियोजन रणनीतियों को बढ़ावा देना जो चलने योग्य समुदायों और हरे स्थानों तक पहुंच को प्राथमिकता देते हैं और स्वस्थ खाद्य पदार्थों के उत्पादन और खपत को प्रोत्साहित करना शामिल है। गरीबी, असमानता और भेदभाव जैसे स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों को संबोधित करना भी मोटापे की महामारी से निपटने का अभिन्न अंग है। हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक-आर्थिक अवसरों में निवेश करने से मोटापे की व्यापकता में असमानताओं को दूर करने और स्वास्थ्य समानता को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
पौष्टिक भोजन का सेवन करने से न सिर्फ हम शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी तंदुरुस्त रह सकते हैं। अच्छा व स्वस्थ पोषण ही एक अच्छी जीवनशैली का प्रतीक होता है। इसलिए स्वस्थ रहने के लिए सही खाने के साथ सक्रिय रहना और स्वच्छता का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञों के अनुसार सभी के लिए स्वस्थ आहार की किफायती पहुंच सुनिश्चित करने और सभी के लिए शारीरिक गतिविधि और समग्र स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने वाले वातावरण बनाने के उद्देश्य से नीतियों को लागू करने में महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं। लिहाजा देशों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि स्वास्थ्य प्रणालियां मोटापे की रोकथाम और प्रबंधन को सेवाओं के बुनियादी पैकेज में एकीकृत करें। अल्पपोषण से निपटने के लिए कृषि, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य में बहुक्षेत्रीय कार्रवाई की आवश्यकता है, ताकि खाद्य असुरक्षा को कम किया जा सके, स्वच्छ पानी और स्वच्छता तक पहुंच में सुधार किया जा सके और आवश्यक पोषण हस्तक्षेपों तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित की जा सके।
-- -देवेन्द्रराज सुथार, जालौर