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नाता प्रथा : संबंधों की सौदेबाजी जायज नहीं

हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने नाता प्रथा को खत्म करने की अपील करते हुए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय समेत चार राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात (जहां इस कुप्रथा का चलन है) को इस मामले पर अब तक हुई कार्रवाई के संबंध में आठ हफ्तों में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। उल्लेखनीय है कि आयोग द्वारा यह कदम राजस्थान में नाता मामले की एक शिकायत मिलने के बाद उठाया गया है, जहां एक नाबालिग लड़की को उसके पिता ने 2.5 लाख रुपये में बेच दिया। 11 जुलाई 2019 को लेन-देन की औपचारिकता पूरी हो गई, लेकिन दूल्हा पूरी रकम का भुगतान करने में विफल रहा। उसके बाद पिता ने लड़की को पुनः 32000 रुपये में बेचने का प्रयास किया। लड़की ने इसका विरोध किया और पुलिस से मदद मांगी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। वह 16 जून 2020 को मृत पाई गई।
क्या है नाता प्रथा जीवनसाथी के नाखुश होने या उनमें से किसी एक की मृत्यु हो जाने पर किसी अन्य व्यक्ति के साथ रहने की नाता या नातरा प्रथा पिछले कुछ शताब्दियों से प्रचलित है। इस प्रथा में परंपरागत रूप से संबंध बनाने वाले पुरुष और महिला दोनों विवाहित या विधवा होते हैं, लेकिन अब इसमें अविवाहित को भी शामिल किया जाता है। नाता शब्द का अर्थ है संबंध इस प्रथा के तहत साथ रहने के लिए किसी औपचारिक विवाह समारोह की आवश्यकता नहीं होती है। जोड़े विवाह किए बिना पति और पत्नी के सभी दायित्वों का पालन कर सकते हैं। इसमें पुरुष को अपनी पसंद की महिला के साथ रहने के लिए पैसे देने पड़ते हैं। जब महिला का पहला पति शादी से तलाक ले लेता है, जबरन छोड़ देता या फिर उसकी मृत्यु हो जाती है तो पैसे के बदले में पत्नी को दूसरे आदमी को सौंप दिया जाता है। इसकी रकम खाप पंचायत, समुदाय के सदस्यों या बिचौलियों द्वारा तय होती है, जिसमें उनका भी मोटा हिस्सा होता है। संबंधित व्यक्ति की भुगतान क्षमता के आधार पर यह रकम हजार से लाख रुपये तक हो सकती है। दिलचस्प बात यह है कि पुरुष कभी-कभी इस रकम का इस्तेमाल अपने लिए नई पत्नियां खरीदने के लिए करते हैं।
नाता प्रथा का नासूर झेलते बच्चे बाल विवाह, तलाक, वेश्यावृत्ति, शादी के बाद पति द्वारा पत्नी के साथ दुर्व्यवहार और शारीरिक हिंसा इस प्रथा के प्रमुख दुष्परिणाम हैं। इस घृणित प्रथा में बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, क्योंकि यदि कोई महिला नाता (संबंध) बनाती है तो उसे अपने पहले विवाह से हुए बच्चों को अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं होती। यूनिसेफ के सहयोग से देश में नाता प्रथा का अध्ययन करने वाली एक सामाजिक संस्था की रिपोर्ट बताती है कि पिछले वर्षों में 4 - 14 वर्ष की आयु के 35 लाख आदिवासी बच्चों में से 2 प्रतिशत नाता प्रथा से प्रभावित हुए हैं। आदिवासी समुदायों में नाता प्रथा के तहत परित्यक्त बच्चे शारीरिक और मानसिक शोषण के मामले में सबसे असुरक्षित हैं। ज्यादातर मामलों में नाता प्रथा के तहत जब परिवार में नई मां आती है तो पूर्व मां के बच्चों को उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। अध्ययन में शामिल 38 प्रतिशत परित्यक्त बच्चों का घरेलू काम के लिए शोषण किया जाता है या उनके साथ मारपीट की जाती है। लगभग 13 प्रतिशत बच्चों को स्कूलों और समाज में अपमान का सामना करना पड़ता है। उनमें से 6 प्रतिशत ने कथित तौर पर दुर्व्यवहार (मौखिक और शारीरिक) का सामना किया है। सामाजिक उदासीनता का स्तर इतना अधिक है कि ऐसे 50 प्रतिशत बच्चों का कोई दोस्त नहीं है, क्योंकि उन्हें समाज में सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है। कुल मिलाकर यह स्थिति उनकी शिक्षा और मानसिक विकास को प्रभावित करती है।
निजी स्वार्थ की भेंट चढ़ती वधुएं नाता के तहत महिला अपनी शादी टूटने के बाद किसी दूसरे पुरुष से शादी कर सकती है। यह सुधारवादी लगता है, सिवाय इसके कि ज्यादातर मामलों में पति ही शादी तोड़ता है और पैसे के बदले में अपनी पत्नी को किसी और को सौंप देता है। नाता में पैसे की अहम भूमिका होती है। कुछ मामलों में तो महिला का पिता भी उसे एक के बाद एक शादी करने के लिए मजबूर करता है, जिससे हर सौदे से उसे पैसे मिलते हैं। विवाह को तोड़ना और तय करना एक आकर्षक प्रस्ताव है, कई लोग विवाह को तोड़ने और दुल्हन की कीमत में हिस्सा पाने के लिए नई शादी तय करने की कोशिश करते हैं। लड़कियों के परिवारों द्वारा पुरुषों पर दहेज और यातना के झूठे मामले दर्ज करवाना भी आम बात है, ताकि उनकी पत्नियों की अगली शादी में उन्हें दुल्हन की कीमत में हिस्सा न मिले।
कानून का अभाव : यह भी एक तथ्य है कि दुर्व्यवहार करने वाले पतियों की पत्नियां सबसे ज्यादा नाता प्रथा कर रही हैं। यह प्रथा कुछ जातियों में विवाह का विकल्प है। समाज भी इस प्रथा को विवाह के ही रूप में मान्यता देता है। अगर सरकारी या कानूनी मान्यता की बात करें तो कानूनी तौर पर नाता प्रथा जैसी कोई चीज नहीं है। ऐसे में नाता करने वाले पुरुष-महिला इसे विवाह के रूप में पंजीकृत करवाते हैं। आधार कार्ड से लेकर वोटर कार्ड तक में नाता करने वाले पुरुष- महिला का रिश्ता पति-पत्नी के तौर पर दर्ज होता है। नाता प्रथा के जरिए लाई गई पत्नी को पति की संपत्ति पर अधिकार होता है, लेकिन भारतीय कानून और विवाह अधिनियमों में नाता प्रथा का कोई उल्लेख नहीं है और न ही कोई संस्था ऐसे विवाहों का पंजीकरण करती है, इसलिए कानूनी जानकार इसे विवाह का दर्जा नहीं देते हैं।
आगे की राह नाता प्रथा एक गहरी जड़ें जमाए बैठी प्रथा है जो महिलाओं और बच्चों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। एनएचआरसी का हस्तक्षेप इसके उन्मूलन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि इस प्रथा को समाप्त करने तथा महिलाओं और बच्चों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा के लिए कानूनी प्रवर्तन, सामुदायिक सहभागिता और सहायता प्रणालियों से जुड़े निरंतर प्रयास आवश्यक हैं। पीड़ितों के लिए आश्रय, परामर्श और कानूनी सहायता सहित सहायता प्रणालियां स्थापित की जानी चाहिए। इस प्रथा के कानूनी और नैतिक निहितार्थों के बारे में समुदायों को शिक्षित किया जाना जरूरी है।

-- -देवेन्द्रराज सुथार, जालौर