महिमा मण्डल मंत्र
सृजनहार नियामक ब्रह्मा ने मानव की संरचना शायद इसलिए की होगी कि वह अपने बौद्धिक बल से अन्य समस्त प्राणियों को पराजित कर अपना दास बना सके। इसीलिए मानव जल, थल और नभ पर अपने साम्राज्य का विस्तार करता जा रहा है। परन्तु मानव के मस्तिष्क में एक दुर्बल पक्ष भी रख दिया, जिससे वह ठगा सा रह जाता है। वह पक्ष उसको वश में करने का वशीकरण मंत्र है जिसका नाम 'महिमा मण्डन मंत्र' है। मानव की कितनी बड़ी दुर्बलता है कि वह आत्मश्लाघा, प्रशंसा और यशोगान चाहता है। अपनी औकात से उसको बढ़ा-चढ़ाकर बता दे तो वह सहर्ष स्वीकार कर लेता है। यद्यपि यह उसको मालूम भी है जो कुछ भी उसका महिमा मण्डन और यशोगान किया जा रहा है वह उसके योग्य नहीं है। फिर भी उसको यथार्थ मान लेता है। पर यह यथार्थ केवल छलावा है, दिखावा है। इसमें उसके स्वार्थ की गंध भी है। फिर भी उसका मन सुमन खिल जाता है। एक कम्पाउण्डर को डॉक्टर जी, मुंशी को थानेदार जी, प्रथम सहायक अध्यापक को हैडमास्टर जी, वरिष्ठ बाबू को ओ. ए. साहब, सिपाही को हवलदार जी कहना अच्छा लगता है। इस ठकुरसुहाती से वह प्रफुल्लित हो उठता है। इस मंत्र से न होने वाला कार्य भी संभव हो जाता है।
मनुष्य की मंशा रहती है कि मेरे नाम का गुणगान हो। मेरी कीर्ति की पताका चारों ओर फैले। संसार में ऐसे लाखों लोग मिल जायेंगे जिनकी यश की दुंदुभि बजा दीजिए बड़े पोस्टरों पर उनके उद्घाटन समारोह का प्रचार-प्रसार कर दीजिए, मंच पर उनसे उद्घाटन करा दीजिए, अखबारों में उनका नाम और फोटो खिंचवा दीजिए इतने में वे फूला न समावेंगे। इस बात पर अपने खजाने का द्वार खोल देंगे और लाखों करोड़ों का दान करने के लिए तैयार हो जायेंगे।
इस मंत्र का उपयोग करने हेतु वाकचातुर्य और शब्द भण्डार की आवश्यकता होती है। चापलूसी की भाषा सीखनी होगी। अलंकारिक भाषा से सृजित कर अपनी भाषा को बोझिल बना दीजिए इतने में ही आप दूसरे के दिल को जीतने के सफल हो जायेंगे। एक कठोर दिल वाले श्रेष्ठी के पास एक शाला प्रबंधक यह प्रस्ताव लेकर गया कि अमुक शाला में पंखों की आवश्यकता है, इसलिए कृपा दृष्टि कीजिए। सेठ साहब का निष्ठुर हृदय नहीं पिघला । परन्तु प्रबंधक ने उनकी मृतक पत्नी को धर्म परायणी, पतिव्रता, दयावती, दानों की हितेषी जैसे गुणों का गानकर प्रार्थना पत्र जब उनके कर कमलों में थमाया तो प्रार्थना पत्र को पढ़कर इतने द्रवित हुए कि उनके नयनों से अश्रुधारा बहने लगी सचमुच जैसे उनका दिल पिघल गया हो। पत्नी वियोग में रोते हुए अपनी धर्मपत्नी की स्मृति में पंखों का दान कर दिया।
महिमा मण्डन का क्षेत्र बड़ा विशाल है। यह मनुष्य तो क्या देवता तक को वशीभूत कर लेता है। कृपानिधान, दीनबन्धु, संकटमोचन बनाकर देव प्रतिमा के समक्ष लोग घण्टों इसलिए बैठे रहते हैं कि देव उन पर कृपा दृष्टि डालेंगे और उनकी मनोकामना पूर्ण करेंगे। कार्य सिद्धि होने पर लोग मंदिरों का अभिवर्धन कर देते हैं। विभिन्न मेवा मिष्ठानों का भण्डारा कर देते हैं। देव को प्रसन्न करते हैं।
आइये तशरीफ लाइये। आपके दौलत खाने की तो क्या कहें यह तो राजा का महल है। मेरा गरीबखाना तो इसके समक्ष कुछ भी नहीं है। आपने जो तोहफा भेंट किया वह तो अनुपम है आदि लफ्जों का प्रयोग कर लोगों को रिझाते रहते हैं अन्नदाता, साब, सर, राव साहब, राजाजी, दानवीर, पहलवान जी, दादा साहब, कलेक्टर साहब, थानेदार साहब, ठेकेदार जी, उस्ताद जी, नेताजी, मिनिस्टर साहब आदि सैकण्डों नामों से विभूषित कर कुछ लोग उनकी गौरव गाथा गाते रहते हैं। अपना कार्य बनाते रहते हैं। राज तंत्र में कवि और चारण लोग राजा महाराजा, वीरों और उनके पुरखों की वीरता की कहानी का बखान कर उनको हमेशा युद्ध करने के लिए तैयार करते रहते थे। इस महिमा मण्डन से उनकी भुजाएँ फड़क उठती थी ।
महिमा मण्डन और खण्डन एक-दूसरे के विपरीत पहलू हैं, किसी का एक बार महिमा मण्डन हो जाता है तो उसके श्रद्धालु और चाटुकार उसका महिमा खण्डन नहीं होने देते हैं। यदि उनका कोई महिमा खण्डन करते हैं तो फिर उनको चाहने वाले लोग शब्दों का मुलम्मा चढ़ाते रहते हैं। किसी चल बल वाले नेता अफसर का प्रश्रय लेकर उनका महिमा मण्डन कर चापलूस लोग शीघ्र ही अपनी पदोन्नति करा लेते हैं। इतना ही नहीं किसी स्वर्गवासी राजनेता, राजा, सेठ साहूकार को भी कई लोग कई दिनों तक इसलिए जिन्दा रखते हैं कि उनके महिमा मण्डन से उनको कुछ न कुछ मिलता रहता है। उनकी जयन्ती, निर्वाण तिथि बड़े जोर-शोर से मनाते हैं। इन दिनों निठल्ले कवि और साहित्यकारों की मांग बढ़ जाती है। क्योंकि उन दिवंगत नेता के जीवन की वृत्त कथा कविता, नाटक के माध्यम से रेडियो, टेलीविजन पर उद्घोषित और अभिनीत की जाती है। किसी महिमा मण्डन वाले पात्र, नेता को उसके शत्रु का महिमा खण्डन अच्छा लगता है। इस जन तंत्र में तो मण्डन और खण्डन की होड़ और प्रतिस्पर्धा लगी रहती है। इस विवाद पर संसद में और विधान सभाओं में चप्पल, जूते और कुर्सियाँ फेंक दी जाती हैं। इस महिमा मण्डन और खण्डन से तो लोग चुनाव तक जीत जाते हैं। एक दल अपने किये गये समाजोपयोगी कार्यों का बखानकर इस मण्डन विधि से वरिष्ठ नेता को चमत्कृत कर देते हैं और कीर्ति के उत्तुंग शिखर पर विराजमान कर देते हैं। परन्तु दूसरी ओर उसका विरोधी दल अपनी खण्डन विधि से
उनको लुढ़काने में लग जाते हैं। एक परम मित्र और श्रद्धेय पुरुष का महिमा मण्डन बड़ा कर्ण प्रिय लगता है, शत्रु और विद्रोही के महिमा खण्डन से आनन्द की अनुभूति होती है। इस महिमा मण्डन और खण्डन की दुनिया बड़ी विशाल है। संसार के साहित्य मण्डन और खण्डन से भरे पड़े हैं। यदि इनको निकाल दिया जावे तो साहित्य में क्या बचेगा? कोई रस नहीं रहेगा और कोई आनन्द नहीं रहेगा। वह पंगु बनकर रह जावेगा। महिमा मण्डन और खण्डन में मानव की बुद्धि का चमत्कार है। मनुष्य को कीर्तिमान बनाना और मानव को बदनाम करने में भी मण्डन और खण्डन का चमत्कार है। किसी को मनाने के लिए उसके मनभावन पक्ष को टटोलिए और उसकी दुखती नस को टटोलकर उसके मालिस करिये वह अपना सारा दुखड़ा रो देगा और वह अपना हो जावेगा। सुख में भी शरीक होकर एकाकार हो जाइये। उसका महिमा मण्डन करिये अपना हो जावेगा।
-- छाजूलाल जांगिड (से.नि. व्याख्याता) , नवलगढ़