परजीवी
सृजनहार ब्रह्मा ने करोड़ों पशु-पक्षी, जीव-जन्तुओं की रचना की है। ये समस्त प्राणी लाखों वर्षों से जन्म लेते आ रहे हैं और समाप्त भी होते जा रहे हैं। इनमें से कुछ पशु-पक्षियों की योनियां समाप्त हो गई। जैसे डायनासोर, चील और गिद्ध आदि समाप्त हो गए। कुछ पशु-पक्षी समाप्त होने की कगार पर हैं, जैसे- मोर, चिड़िया, कबूतर और कौआ । संसार में कुछ पेड़-पौधे ऐसे हैं जो दूसरे पेड़-पौधों पर अपना जीवन यापन करते हैं, जैसे- अमरबेल । अमर बेल के जड़ नहीं होती, वह दूसरे पौधे पर ही हरी-भरी रहती है। नीमगिलोय का छोटा-सा डंठल जमीन में लगाने पर वह नीम के चारों ओर इतनी फेल जाती है कि सर्प की तरह पेड़ पर चारों ओर आटे लगा लेती है और वह नीम का सारा रस सोख लेती है।
परजीवी इंसान परजीवी इंसान भी दूसरों के जीवन पर आधारित होते हैं, ऐसे इंसान जन्म से या तो अंग भंग होते हैं या विकलांग होते हैं। वे मंदबुद्धि के होते हैं ऐसे इंसान माँ-बाप, भाई- बंधु और सगे-संबंधी पर भार होते हैं। ममता के कारण माँ-बाप को ऐसे इंसानों का पालन-पोषण करना पड़ता है। ऐसे इंसानों में कुछ बड़े हो जाते हैं, कुछ मर जाते हैं। जिन लोगों की शादी विवाह हो जाते हैं, वे अकर्मण्य होते हैं। मंदबुद्धि के कारण वे कोई कर्म नहीं कर पाते हैं। वे दूसरों पर ही निर्भर रहते हैं।
ऐसे लोग भारत में लाखों की संख्या में हैं। यह भी देखने में आया है। कि जो लोग इनका पालन-पोषण करते हैं, उनके ही शत्रु बन जाते हैं। एक बड़ा नेता अपने छोटे भाई की मदद करता था। छोटा भाई बड़े भाई को बार-बार बुलाता था। बड़ा भाई कभी कारणवश नहीं आ पाता था। छोटे भाई को क्रोध आया और उसने बड़े के गोली मार दी और बड़े भाई की मृत्यु हो गई। छोटा भाई पकड़ा गया और जेल में ही मर गया। यह परजीवी इंसान या तो भिखारी बन जाते हैं या साधु बन जाते हैं। देश में ऐसे बहुत लोग हैं, जो बड़े दानवीर हैं, जो ट्रस्ट चलाते हैं। ट्रस्ट के द्वारा परजीवी इंसानों के लिए भण्डारा चलता है। सहयोग व्यवस्था होती है। ऐसे भण्डारों में भिखारी, साधु और पराधीन लोग दोनों समय खाना खाते हैं कुछ परजीवी इतने गद्दार होते हैं, वे माँ-बाप, भाई-बंधु से पालन-पोषण की याचना नहीं करते बल्कि अधिकार मांगते हैं। अर्थात् जबरदस्ती करते हैं और जीवन भर परेशान करते हैं और कष्ट देते हैं।
निष्कर्ष : ईश्वर सभी प्राणियों को और पशु-पक्षियों को बुद्धि देता है। कुछ लोगों को अधिक बुद्धि देता है कुछ को कम। माता- पिता को पता तो चल ही जाता है कि मेरी संतान कैसी है। जिस व्यक्ति की जैसी बुद्धि है, उसके अनुसार किसी हाथ के काम में पारंगत करना चाहिए, जिससे खुद के पैरों पर खड़ा हो सके और दूसरों पर भार ना बने कुछ मंदबुद्धि के लोग भी कई कामों में दक्ष बन जाते हैं। मशीनों को अच्छी तरह चला लेते हैं। अधिकतर लोग ऐसे परजीवी इंसानों के लिए कर्मों का खेल मानते हैं। कुछ विकलांग लोग भी देखने में आए हैं, जो अद्भुत कामों को करते हैं और हमें आश्चर्य चकित कर देते हैं। भगवान से यही प्रार्थना है कि कोई परजीवी पैदा ना करे जो दूसरों पर निर्भर रहे।
-- छाजूलाल जांगिड (से.नि. व्याख्याता) , नवलगढ़