सत्यमेव जयते और हर्षोल्लास का प्रतीक - दीपमालिका
जब भगवान राम अधर्म का नाश कर धर्म की विजय प्राप्त कर देवगण सहित माता सीता को लेकर अयोध्या पधारे थे। तब अयोध्या वासियों के मन हर्षोल्लास से भर गए थे। घर-घर दीप प्रज्वलित हो उठे थे। ये खुशियाँ राम, लक्ष्मण और वानर रूप में लड़ने वाले देवगणों की वीरता, त्याग, तपस्या और अदम्य साहस के फलस्वरूप राक्षस राज्य की समाप्ति के पश्चात् प्राप्त हुई थी।
त्रेता युग आध्यात्मिक उन्नति और दिव्य शक्तियाँ प्राप्त करने का स्वर्णिम युग था । वनों में विश्वामित्र, वशिष्ठ, भारद्वाज, वाल्मीकि, अगस्त्य, च्यवन ऋषि-मुनियों जैसे अनेक ऋषियों के आश्रम थे। जिनमें वेद, वेदान्त, उपनिषद, दर्शन आदि का अध्ययन अध्यापन होता था। आश्रमों में जप-तप, यज्ञ, हवन आदि बड़े-बड़े धार्मिक अनुष्ठान होते थे। इन अनुष्ठानों से उनको ज्ञान, विज्ञान और दिव्य शक्तियों की सिद्धियाँ प्राप्त होती थी। दूसरी ओर लंका के राजा रावण ने तपस्या कर भगवान ब्रह्मा और शिव से यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि देव, दानव, किन्नर, गंधर्व, नाग आदि उसे नहीं मार सकेंगे। मनुष्य और वानर जाति को तो वह कीट-पतंगों की तरह समझता था। वह निर्भय होकर अधर्म की राह पर चल पड़ा। जगह-जगह धार्मिक अनुष्ठानों का विध्वंस किया। पृथ्वी पर पापाचार और अत्याचार फैल गया। राक्षसों ने ऋषि-मुनियों को मार-मार उनकी अस्थियों के ढेर लगा दिए । इन्द्र का सिंहासन हिल उठा। उसको मारने वाला कोई न था।
इन राक्षसों से भयभीत होकर स्वयं ब्रह्मा, शिवजी, इन्द्रदेव, गुरु बृहस्पति, पृथ्वी, समस्त देवगण आर्तनाद करते हुए भगवान विष्णु की शरण में गए। सबने रक्षा की याचना की। भगवान विष्णु ने आश्वासन दिया कि रावण के वरदान में उसके विनाश का बीज छुपा हुआ है। उसने नर और वानर का वरदान तो मांगा नहीं था। मैं मनुष्य के रूप में राजा दशरथ के घर जन्म लूंगा। राजा दशरथ निःसन्तान थे। ऋषि वशिष्ठ के परामर्श से राजा दशरथ ने पुत्र कामेष्टि यज्ञ करवाया। भगवान अग्नि देव प्रकट हुए और राजा दशरथ को खीर का एक पात्र दिया। तीनों रानियों ने खीर को बाँटकर खाया। तीनों रानियों के राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न जैसे प्रतापी पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई।
राजा दशरथ से विश्वामित्र द्वारा राम, लक्ष्मण को माँगना, कैकेयी का वरदान मांगना राम लक्ष्मण और सीता का वन गमन । रावण द्वारा सीता का अपहरण होना, शूर्पणखा का नाक कटना, सुग्रीव से मित्रता होना, विभीषण का राम की शरण में आना, राम सेतु का निर्माण होना, ऋषि-मुनियों से दिव्य अस्त्रों का प्राप्त होना, वानरी सेना का सहयोग मिलना, हनुमानजी के पराक्रम का सहयोग मिलना, रावण के काल के कारण बने ।
यह विजय सत्य की असत्य पर धर्म की अधर्म पर, न्याय की अन्याय पर देव की दानव पर हुई जिस रावण को अपनी वीरता, वरदान और अमोध दिव्य अस्त्रों पर अहंकार था, वह अहंकार का पुतला रावण भगवान राम के अग्नि बाणों से भस्मीभूत हो गया। यह दीपमालिका भगवान राम के अयोध्या आगमन के दिवस से अब तक मानव मन को हुलसित करती आ रही है। दीन की झोंपड़ी से लेकर बड़े-बड़े गगनचुम्बी भवनों, राज्य प्रासादों, बड़े-बड़े प्रतिष्ठानों, धार्मिक स्थलों, भीड़ भरे बाजारों, दुकानों में बड़े हर्ष से मनाई जाती है। चारों ओर दीपशिखाओं की ज्योति जगमगा उठती है।
सभी स्थानों पर स्वच्छता का साम्राज्य जाता है। महालक्ष्मी का अवतरण होता है। हम आपसी भेदभावों को भुलाकर बड़े लोगों की चरण वन्दना करते हैं। बड़े छोटों को दिल खोलकर आशीर्वाद देते हैं, परन्तु हमारे दिल में एक दर्द छुपा हुआ है। कभी-कभी धार्मिक स्थलों, राज भवनों, भीड़ भाड़ वाले बाजारों में अचानक धमाकों से निर्दोष लोगों की जाने जाती है। इस कारूणिक दृश्य को देखकर हमारा दिल दहल उठता है। हृदय द्रवित होकर दुःख से भर जाता है। वह दिन कब आएगा जिस दिन इस निष्ठुर इंसान के दिल में मानवता का विवेक जाग्रत होगा। ईश्वरीय शक्ति ऐसे लोगों को सद्बुद्धि प्रदान करे, जिससे हम सब सुख चैन से जी सके।
-- छाजूलाल जांगिड (से.नि. व्याख्याता) , नवलगढ़