वृद्ध माता-पिता और दादा-दादी की सेवा कौन कर सकता है?
दुःखी माता-पिता और दादा दादी की सेवा करने की समस्या आज की ज्वलन्त समस्या है। आज घर-घर में वृद्ध लोग दुःखी है। कोई सम्पन्न बेटा अपने बाप दादा की सेवा नहीं कर सकता है तो उनको वृद्धाश्रम में भेज देता है। कुछ बूते लोग दुःखी होकर अपने आप आश्रमों में चले जाते है। कुछ लोग अपने बूढ़े बाप को हरिद्वार भिजवा देते हैं। यह बीमारी ग्रामीण अंचलों में भी आ गई है। बूढ़े बाप या दादा को मकान के बाहरी हिस्से में पोली में बैठा देते हैं। बूढ़ा सेवा के लिए चिल्लाता रहता है, परन्तु आज की संस्कारहीन युवा पीढ़ी कोई सुनाई नहीं करती है। सबसे ज्यादा दुर्दशा उन लोगों की होती है जो विकलांग हैं या पक्षाघात से पीड़ित है। कोमा में पड़े व्यक्ति को देखकर हमारा हृदय दयाद हो जाता है। उनको कोई करवट भी नहीं बदलाता है। उनकी पीठ पर घाव पड़ जाते है। घर वाले उनके मरने की माला जपते रहते हैं।
यह स्थिति क्यों बनी? इसके दोषी घर वाले हैं। हमने हमारे बच्चों को संस्कार नहीं दिये। बड़े बूढों का मान-सम्मान करना नहीं सिखाया। इसलिए युवा पीढ़ी संस्कारहीन हो गई है। बच्चे और किशोर सारे दिन मोबाइल पर खेल खेलते रहते हैं। लड़कियां और बहुएं भी मोबाइल पर अंगुलियां चलाती रहती हैं चाहे घर में दूध उफन जावे, चाहे सब्जी जल जावे। जवान लोग अर्थ प्राप्ति के लिए दौड़ते रहते हैं इसलिए सेवा कौन करें? वृद्ध लोगों की सेवा करना क्यों आवश्यक है?
वृद्धावस्था जरावस्था है। इसलिए सारे अंग शिथिल पड़ जाते हैं, बूढ़ा पराधीन हो जाता है। वह अपनी दैनिक क्रियाएँ भी ढंग से नहीं कर पाता है। उसको सहारे की आवश्यकता भी होती है। किसी के कान खराब हो जाते हैं तो किसी की आँखें खराब हो जाती है। अधिकतर लोगों के घुटने खराब हो जाते हैं इसलिए वे शैय्या पकड़ लेते हैं। दस बीस प्रतिशत लोग विक्षिप्त या संज्ञाहीन हो जाते हैं। इसलिए वे बिस्तर पर ही मल मूत्र करते है। ऐसे लोगों की सेवा बड़ी दुष्कर होती है। उनकी भी लोग मुक्तिधाम जाने की ईश्वर से कामना करते हैं। वृद्ध लोगों की सेवा कौन कर सकता है?
सेवा करने के लिए सेवा करने वाले में मानवीय गुण होने चाहिए। ऐसे गुण उन्हीं लोगों में मिलते है जिनको उनके माता पिता ने संस्कार दिये है। सेवा करने वाले व्यक्तियों में निम्नलिखित गुण होने चाहिए -
(1) श्रद्धावान होना आवश्यक है- श्रद्धा वही रख सकता है जिसके दिल में बूढ़े बुजुर्गों के प्रति मान सम्मान है। जो अपने माता, पिता, दादा, दादी को पूजनीय और आदरणीय मानता है।
(2) सेवक आस्थावान हो- हम हमारे आराध्य देव की पूजा अर्चना इसलिए करते है कि हमारे दिल में देव के प्रति प्रगाढ़ी आस्था है। जो व्यक्ति नास्तिक है जो भगवान के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता है वह नास्तिक बन जाता है। उसी प्रकार बेटा पोता भी यह समझ लेता है कि पेड़ पौधों को कौन पालता है? जानवर भी अपने बच्चों की सेवा करते है। इसमें माता पिता ने कौनसी बड़ी बात कर दी है। ऐसे लोग कभी सेवा नहीं कर सकते हैं।
(3) जिस के दिल में घृणा का भाव न हो-वृद्ध की सेवा में वृद्ध को शौच, मूत्र, स्नान, भोजन आदि करवाना पड़ता है। यानि सेवा करने वाला घृणा रखता है तो वह वृद्ध के समीप ही नहीं जावेगा। बेचारा बूढा शक्तिहीन होने से क्रियाएँ नहीं कर पाता है। वृद्ध चलते समय कांपते है और खाना खाते समय हाथ कंपकपाते हैं। वह क्या कर सकता है? शैय्या पर पड़े वृद्ध की सेवा तो सफाई कर्मचारी की तरह ही होती है। यदि ठीक से सेवा न की जावे तो वातावरण दुर्गन्ध युक्त हो जाता है। दूसरा व्यक्ति पास नहीं बैठ सकता है।
(4) सेवा करने वाला संस्कारवान हो- जिस व्यक्ति में मानवीय गुण होते हैं जिसके आचरण में संस्कार है, वही व्यक्ति माता पिता के प्रति कृतज्ञ हो सकता है। वह तो अपने जीवन में मानवीय गुणों को बढ़ाता है और अवगुणों को छोड़ता है। वह अपने को माता पिता का आत्मज समझता है माता, पिता के ऋण से उऋण होना चाहता है।
(5) जिसके दिल में दया धर्म हो- दया ही धर्म का मूल है। इसमें हमारा कौनसा बड़प्पन है कि हमारे माता, पिता, दादा, दादी पीड़ा भोग रहे हैं और हम आनन्द भोग रहे हैं। जिसके हृदय में करूणा प्रवाहित होती है वहीं अपने माता, पिता, दादा, दादी के दु:खों को दूर करने का भरसक प्रयास करता है।
(6) जिसके हृदय में माता पिता के प्रति अटूट विश्वास हो आध्यात्मिक विचारधारा रखने वाला व्यक्ति यह सोचता है मेरे बुजुर्गों की सेवा मैं करूंगा तो मुझे उनके अन्तस से आशीर्वाद मिलेगा जिससे मेरा कल्याण होगा। मेरे जीवन में सुख, शान्ति और समृद्धि रहेगी। बूढ़े मां बाप को तो घर बैठे तीर्थ मानना चाहिए।
निष्कर्ष- बूढ़े माता पिता और दादा दादी की सेवा करना हमारा परम कर्तव्य है। जो माता पिता हमारा पालन पोषण करते है, हमें शिक्षा दीक्षा दिलवाते हैं, रोजगार युक्त बनाते हैं। हमें संस्कार देते हैं, हमारे गृहस्थ जीवन की शुरूआत करवाते हैं, हमारे छोटे बच्चों को लाड़ प्यार से रखते हैं उनको कष्ट देना, कष्टों में पीड़ित होते देखते रहना इसे बड़ी घृष्टता क्या हो सकती है? यह निश्चित बात है कि जो बेटा पोता अपने माता, पिता, दादा.दादी को कष्ट देता है उनकी सेवा नहीं करता है, तो उनके बच्चे भी ये सारी बातें देखते हैं और परिणाम स्वरूप बुढ़ापे में उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार होता है।
-- छाजूलाल जांगिड (से.नि. व्याख्याता) , नवलगढ़