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Chahju Lal Jangid

आज के युवकों की मानसिकता क्या है?

युवा पीढ़ी हमारे राष्ट्र की आन, बान और शान की प्रतीक हैं। जिस राष्ट्र के युवक खड़े हैं तो वह देश खड़ा है। यदि राष्ट्र के युवक सोते हैं तो वह राष्ट्र सोता है। राष्ट्र के युवक जाग्रत हैं तो राष्ट्र जागता है। यदि युवक राष्ट्र के प्रति सजग प्रहरी है और उसकी आन, बान और शान के लिए मर मिटने के लिए तैयार है तो दूसरे राष्ट्र उसकी ओर आँख उठाकर नहीं देखते हैं। जिन युवकों के रगो में राष्ट्र भक्ति और राष्ट्र प्रेम का रक्त प्रवाहित होता है तो वह राष्ट्र विश्व के समक्ष शान से खड़ा होता है। युवक ही राष्ट्र की ऊर्जा है। जिस देश के युवक नवीन आविष्कारों और सृजन के नवीन साधनों की खोज करते हैं, वह राष्ट्र विश्व में अग्रणी होता है। यदि राष्ट्र के युवक पथ भ्रष्ट हो जाते हैं तो पेड़-पौधों की तरह लहलहाते राष्ट्र की जड़ में दीमक लग जाती है और वह राष्ट्र पतन के कगार पर चला जाता है।
एक अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकला है कि देश में प्रखर प्रज्ञा शक्ति वाले युवक केवल 5 से 10 प्रतिशत तक ही होते हैं। प्रतिभाशाली युवक डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, समाज को नई दिशा देने वाले होते हैं। देश में 10 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो अभावों में जीते हैं, जिनके पास दो जून की रोटी भी नहीं है। इसलिए उदरपूर्ति के लिए किसी न किसी रूप में कमाते हैं। 20 प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जो नौकरी करते हैं, जिनमें उच्च, मध्यम, सहायक कर्मचारी के रूप में कार्य करते हैं। बाकी 60 प्रतिशत लोगों में उच्च, मध्यम वर्ग, निम्न वर्ग के लोग हैं जो अपने व्यवसाय, धन्धों से कमाकर खाते हैं और अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हैं। उनके जीवन को बनाने का भरसक प्रयत्न करते हैं। ऐसे युवकों पर दृष्टि डालते हैं तो उनका जीवन बहुत विचारणीय है, मन मायूस हो जाता है। युवकों के जीवन को गहराई से देखते हैं तो ज्ञात होता है कि अधिकतर युवकों की मानसिकता विकृत हो चुकी है। इसका मुख्य कारण है कि परिवारों और समाज में अनियंत्रण का वातावरण है। घर में लड़के-लड़कियाँ बेकाबू है। दूषित समाज का प्रभाव युवकों पर पड़े बिना नहीं रह सकता है। आज के युवकों की मानसिकता यह है।
मोबाईल, मोटरसाइकिल और मनी की मांग : अधिकतर माता-पिता इन माँगों से दुःखी हैं। मैं यह नहीं कहता कि ये चीजें गलत हैं। इन यंत्रों का दुरुपयोग गलत है। ये यंत्र ज्ञानार्जन और सुविधाओं के लिए बने हैं। आज के युवक मारधाड़ और प्रेम प्रसंगों से युक्त फिल्में देखते हैं। पोर्न वीडियो देखते हैं। लड़कियाँ पलायन कर जाती हैं। द्रुतगति वाली मोटर साइकिल चलाते हैं। कानों में ईयरफोन लगा लेते हैं। एक्सीडेंट में मर जाते हैं। औरतों की चैन तोड़ते हैं। बाइक से उड़ान भरते हैं। मनी का उपयोग मौज-मस्ती मारने में करते हैं। युवक नए नए बहाने बनाकर घरवालों से पैसा ऐंठते हैं। होटलों में पैसे का दुरुपयोग करते हैं।
कमाकर खाने की नीयत नहीं है : पढ़ाई पूर्ण होने के बाद युवकों का कर्तव्य है कि मेहनत कर कमाई करें। सब युवकों को कुर्सी चाहिए। सरकार के पास इतनी कुर्सियाँ नहीं है, जो उनको बैठा सके। सिंधी का बच्चा कमाकर खाता है। युवकों को चाहिए कि रोजगार के साधन स्वयं जुटाकर कमाए। रोजगार के अनेक साधन होते हैं।
चोरी, डाका, छीना-झपटी, धोखाधड़ी की ओर उन्मुख : जितने भी ऐसे अपराध होते हैं उनमें युवक ही पकड़े जाते हैं। जेब कतरी, बाईक चुराना, बैंकों में छीना-झपटी करना, ए.टी.एम. से पैसे निकालना आदि कार्य युवक ही करते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इनमें इंजीनियरिंग करने वाले, मेडिकल के छात्र भी पकड़े गए हैं। पढ़े-लिखे युवक सायबर ठगी भी करते हैं।
80 प्रतिशत युवक नशा करते हैं: आज के युवक शराब, खैनी, जर्दा, ड्रग्स का सेवन करते हैं। मदहोश युवक अपराध करते हैं। नशे में छोटे-बड़े का कोई ज्ञान नहीं होता है। साख सम्बंधों को त्याग देता है। मुख से अपशब्द निकलते हैं। वे बेताज बादशाह बन जाते हैं। जब विद्यार्थी जीवन में ही नशा करने लग जाते हैं, तो आगे क्या हाल होगा? धर्मपत्नी के साथ दुर्व्यव्यवहार करेंगें।
कुसंगति की ओर उन्मुख : कुसंगति की बीमारी ऐसी बीमारी है, जो युवकों का जीवन बर्बाद कर देती है। कुसंगति में पड़े युवक ही नए-नए अपराध करते हैं। फैशन की पूर्ति के लिए कुसंगति में पड़कर ही चोरी, डाका, धोखाधड़ी, ठगी सीखते हैं। बढ़ती कामी प्रवृत्ति : ऐसा कोई दिन नहीं जिस दिन दुष्कर्म के केस न आते हों। देश इतना दुष्कर्मी हो गया है कि एक वर्ष की बालिका से लेकर 70 वर्ष की नारी का दुष्कर्म हो चुका है। ऐसे अपराधों में जीवन पर्यन्त की जेल तथा फांसी की सजा भी सुनाई जा चुकी है, परन्तु दुष्कर्म का दौर नहीं थम रहा। युवकों की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है।
अहंकार और क्रोध की पराकाष्ठा : आज के युवकों में सहनशीलता घट गई है और अहंकार बढ़ता ही जा रहा है। आज के युवक अपने माता-पिता बड़ों का भी कहना नहीं मानते हैं। उनके दिल में अपने पूजनीय लोगों के प्रति कोई मान-सम्मान नहीं है। माता-पिता की चरण वन्दना करने में भी उनको शर्म आती है। मनमानी करना, मरने की धमकी देना जैसी बातें सुनने में आती है। कई तो मनमानी पूर्ण न होने पर फांसी लगा लेते हैं।
दाढ़ी बढ़ाने की बढ़ती फैशन : आजकल युवकों में दाढ़ी बढ़ाने का शौक बढ़ रहा है। दाढ़ी बढ़ाने से मुख मण्डल का सौष्ठव छिप जाता है। कोई हैदरअली सा, कोई औरंगजेब और कोई अकबर सा लगता है। पता नहीं यह क्रान्ति कहाँ से आई है। जब विवाह होता है, तो युवक का पीठी लगाकर उबटन होता है। रूप में निखार लाया जाता है, अब तो सब विराट कोहली बने हुए हैं।
समाधान : सब लोग कहते हैं कि पेड़ की कोमल शाखा को जैसा मोड़ा जावे वह मुड़ जाती है। इसलिए युवकों को भी बचपन से ही अच्छी आदतें सिखाई जावे। अच्छी आदतें ही चरित्र बनाती है। समय पर सोना, समय पर जागना, सभी दैनिक क्रियाएं, नियत समय पर ही होनी चाहिए। बचपन से ही बच्चों को राष्ट्र भक्ति, राष्ट्र प्रेम की फिल्में दिखानी चाहिए। हम आध्यात्मिक जीवन से दूर हो गये हैं, इसीलिए समाज में अपराध पनप रहे हैं। प्रत्येक परिवार में सुबह-सायं भगवान की पूजा-अर्चना आरती होनी चाहिए। धार्मिक पर्वो को आस्था से मनाना चाहिए। सांस्कृतिक मूल्यों से बच्चों को जोड़े रखना चाहिए।
सबसे बड़ी बात यह है कि हमारा युवकों पर नियन्त्रण नहीं है। आज के युवक भय-मुक्त हैं। घर-परिवार, समाज, गुरु संस्कार किसी का भी भय नहीं है। हमने पैसे को अधिक महत्व दिया, संस्कारों से बिछुड़ते गए। इसीलिए खेल बिगड़ता जा रहा है।

-- छाजूलाल जांगिड (से.नि. व्याख्याता) , नवलगढ़